Adhyay 4

अध्याय ४ शलोक १

अध्याय ४  शलोक १ The Gita – Chapter 4 – Shloka 1 Shloka 1  श्रीभगवान् बोले —- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वांकु से कहा ।। १ ।। Lord Krishna continued: I taught this immortal, everlasting “Yoga faction” (Karmayoga) to the Sun God Vivaswan. Vivaswan taught this knowledge to his son Manu and Manu taught this knowledge to his son Ikswaku.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २

अध्याय ४  शलोक २ The Gita – Chapter 4 – Shloka 2 Shloka 2  हे परंतप अर्जुन ! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किंतु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्त प्राय हो गया ।। २ ।। By handing down this knowledge of Yoga from generation to generation this knowledge slowly deteriorated, and finally disappeared.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ३

अध्याय ४  शलोक ३ The Gita – Chapter 4 – Shloka 3 Shloka 3  तू मेरा भक्त्त और प्रिय सखा है, इसलिये वही यह पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा है ; क्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है अर्थात् गुप्त रखने योग्य विषय है ।। ३ ।। O Arjuna, I reveal this ancient and most important secret of Yoga unto you because you are My dear devotee and friend.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ४

अध्याय ४  शलोक ४ The Gita – Chapter 4 – Shloka 4 Shloka 4  अर्जुन बोले —- आपका जन्म तो अर्वाचीन —-अभी हाल का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है अर्थात् कल्प के आदि में हो चुका था ; तब मैं इस बात को कैसे समझूं कि आप ही ने कल्प के आदि में सूर्य से यह योग कहा था ।। ४ ।। Arjuna asked Lord Krishna: Dear Lord, your birth on earth is very recent. The Sun however, took birth an extremely long time ago. I find it difficult then to understand how you could have told this ancient secret to Vivaswan the Sun God.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ५

अध्याय ४  शलोक ५ The Gita – Chapter 4 – Shloka 5 Shloka 5  श्रीभगवान् बोले —- हे परंतप अर्जुन ! मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं । उन सब को तू नहीं जानता, किंतु मैं जानता हूँ ।। ५ ।। The Lord looked upon Arjuna and replied: Arjuna, the answer to your question is simple. You are forgetting, O Son of Kunti, the both you and I have taken many births in this world together. However, only I, Lord, can remember this; you cannot.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ६

अध्याय ४  शलोक ६ The Gita – Chapter 4 – Shloka 6 Shloka 6  मैं अजन्मा और अविनाशी स्वरूप होते हुए भी तथा समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योग माया से प्रकट होता हूँ ।। ६ ।। O Arjuna, although birth and death do not exist for Me, since I am the immortal Lord, I appear on earth, by my Divine powers and ability, keeping My nature (Maya) under control.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ७

अध्याय ४  शलोक ७ The Gita – Chapter 4 – Shloka 7 Shloka 7  हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्बि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ।। ७ ।। The Lord declared solemnly unto Arjuna: O Arjuna, whenever good is overcome by evil, or whenever evil manifests itself throughout the world in such a way that good no longer exists. I will always appear on earth.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ८

अध्याय ४  शलोक ८ The Gita – Chapter 4 – Shloka 8 Shloka 8  साधु पुरुषों का उद्बार करने के लिये, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिये और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिये मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ ।। ८ ।। O Arjuna, I appear on earth from time to time for three main purposes. The first is for the protection and preservation of all that represents good, and of all those pure and saintly people on earth. The second purpose for which I appear on earth is for the destruction and removed and wrong-doers. The third purpose is, of course, for the establishment and creation (or recreation) of Dharma (Righteousness or reinstating moral values among people on earth.)   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ९

अध्याय ४  शलोक ९ The Gita – Chapter 4 – Shloka 9 Shloka 9  हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात् निर्मल और अलौकिक हैं —- इस प्रकार जो मनुष्य तत्त्व से जान लेता है, वह शरीर को त्याग कर फिर जन्म को प्राप्त नहीं होता, किंतु मुझे ही प्राप्त होता है ।। ९ ।। O Arjuna, I was born divinely, all my action (Karma) are divine. The one who knows and understands this fully in reality, is not born again after leaving the body. He comes to me in Heaven for eternity.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक १०

अध्याय ४  शलोक १० The Gita – Chapter 4 – Shloka 10 Shloka 10  पहले भी, जिनके राग, भय और क्रोध सर्वथा नष्ट हो गये थे और जो मुझ में अनन्य प्रेम पूर्वक स्थिर रहते थे, ऐसे मेरे आश्रित रहने वाले बहुत से भक्त्त उपर्युक्त्त ज्ञान रूप ताप से पवित्र होकर मेरे स्वरूप को प्राप्त हो चुके हैं ।। १० ।। O Arjuna, if one really to seek refuge and be one with Me, he must totally free himself from passion, fear and anger, seek my protection only, and purify himself with the fire of Gyan (knowledge). If one manages to accomplish these thing, he will be able to become one with Me in mind and body.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ११

अध्याय ४  शलोक ११ The Gita – Chapter 4 – Shloka 11 Shloka 11  हे अर्जुन ! जो भक्त्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उन को उसी प्रकार भजता हूँ ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं ।। ११ ।। O Arjuna, those people who love, trust and worship Me receive the same love, trust and worship from Me. All wise men follow Me in all respects. They follow my every path.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक १२

अध्याय ४  शलोक १२ The Gita – Chapter 4 – Shloka 12 Shloka 12  इस मनुष्य लोक में कर्मों के फल को चाहने वाले लोग देवताओं का पूजन किया करते हैं ; क्योंकि उनको कर्मों से उत्पन्न होने वाली सिद्भि शीघ्र मिल जाती है ।। १२ ।। O Arjuna, those who do actions or Karma for the fulfillment of their desires and goals and those who worship deities (gods and god desses) for their prosperity, they will undobtedly achieve success quickly.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक १३

अध्याय ४  शलोक १३ The Gita – Chapter 4 – Shloka 13 Shloka 13  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र —- इन चार वर्णों का समूह, गुण और कर्मों के विभाग पूर्वक मेरे द्वारा रचा गया है, इस प्रकार उस सृष्टि-रचनादि कर्म का कर्ता होने पर भी मुझ अविनाशी परमेश्वर को तू वास्तव में अकर्ता ही जान ।। १३ ।। I, the Lord, O Arjuna, am the creator of the four castes (namely, Brahmin, Ksatriya, Vaishya and Sudra). You must understand Arjuna, that I who created these four orders of society, am a non-doer.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक १४

अध्याय ४  शलोक १४ The Gita – Chapter 4 – Shloka 14 Shloka 14  कर्मों के फल में मेरी स्पृहा नहीं है, इसलिये मुझे कर्म लिप्त नहीं करते —- इस प्रकार जो मुझे तत्त्व से जान लेता है, वह भी कर्मों से नहीं बंधता ।। १४ ।। The Lord continued: O Arjuna, since I, the immortal Lord, have no cravings for the fruits of action, I do not desire the reward of Karma. Therefore those who know me well are not affected or bound by Karma (action).   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक १५

अध्याय ४  शलोक १५ The Gita – Chapter 4 – Shloka 15 Shloka 15  पूर्व काल में मुमुक्षुओं ने भी इस प्रकार जानकर ही कर्म किये हैं । इसलिये तू भी पूर्वजों द्वारा सदा से किये जाने वाले कर्मों को ही कर ।। १५ ।। The Lord continued: O Arjuna, ancient wise men who were searching for salvation in me, knew the facts well. However they even performed actions. Therefore O Arjuna, continue performing your actions doing your Karma as your ancestors once did in the past.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक १६

अध्याय ४  शलोक १६ The Gita – Chapter 4 – Shloka 16 Shloka 16  कर्म क्या है ? और अकर्म क्या है ? — इस प्रकार इसका निर्णय करने में बुद्भिमान् पुरुष भी मोहित हो जाते हैं । इसलिये वह कर्म तत्त्व मैं तुझे भली भाँति समझा कर कहूँगा, जिसे जान कर तू अशुभ से अर्थात् कर्म बन्धन से मुक्त्त हो जायगा ।। १६ ।। Even the wise men are confused about Karma (action) and Akarma (inaction). I shall now explain to you the truth about Karma. Knowing the truth, O Arjuna, you will be released from the bondage of Karma.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक १७

अध्याय ४  शलोक १७ The Gita – Chapter 4 – Shloka 17 Shloka 17  कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिये और अकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिये तथा विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए ; क्योंकि कर्म की गति गहन है ।। १७ ।। One should know the principle of Karma (action) Akarma (inaction) and forbidden Karma, (forbidden action). The philosophy behind Karma is very deep and mysterious. So listen closely.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक १८

अध्याय ४  शलोक १८ The Gita – Chapter 4 – Shloka 18 Shloka 18  जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखता है और जो अकर्म में कर्म देखता है, वह मनुष्यों में बुद्भिमान है और वह योगी समस्त कर्मों को करने वाला है ।। १८ ।। One who sees action (Karma) in inaction (Akarma), and inaction in action, is a wise man and a great sage. That man who has accomplished all actions is a Yogi.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक १९

अध्याय ४  शलोक १९ The Gita – Chapter 4 – Shloka 19 Shloka 19  जिसके सम्पूर्ण शास्त्र सम्मत कर्म बिना कामना और संकल्प के होते हैं तथा जिसके समस्त कर्म ज्ञान रूप अग्नि के द्वारा भस्म हो गये हैं, उस महापुरुष को ज्ञानी जन भी पण्डित कहते हैं ।। १९ ।। One who does all Karma without desire or attachment for the fruits of his Karma and one whose actions are burnt up in the of Gyan or wisdom, is regarded by even the wise men as a sage.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २०

अध्याय ४  शलोक २० The Gita – Chapter 4 – Shloka 20 Shloka 20  जो पुरुष समस्त कर्मों में और उनके फल में आसक्त्ति का सर्वथा त्याग करके संसार के आश्रय से रहित हो गया है और परमात्मा में नित्य तृप्त है, वह कर्मों में भली भाँति बर्तता हुआ भी वास्तव में कुछ भी नहीं करता ।। २० ।। The Lord proclaimed: He who is totally unattached to the rewards of action, is forever happy and satisfied, who depends on nobody in this world, and is constantly involved in action, is really performing no action at all.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २१

अध्याय ४  शलोक २१ The Gita – Chapter 4 – Shloka 21 Shloka 21  जिसका अन्त:करण और इन्द्रियों के सहित शरीर जीता हुआ है और जिसने समस्त भोगों की सामग्री का परित्याग कर दिया है, ऐसा आशा रहित पुरुष केवल शरीर सम्बन्धी कर्म करता हुआ भी पापों को नहीं प्राप्त होता ।। २१ ।। That person, O Arjuna, who has conquered his body and mind, who has given up all enjoyments and pleasures of the world, and who performs action only for the sake of maintaining his body, does not encounter or subiect himself to sin.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २२

अध्याय ४  शलोक २२ The Gita – Chapter 4 – Shloka 22 Shloka 22  जो बिना इच्छा के अपने आप प्राप्त हुए पदार्थ में सदा संतुष्ट रहता है, जिसमें ईष्र्या का सर्वथा अभाव हो गया है जो हर्ष-शोक आदि द्बन्द्बों से सर्वथा अतीत हो गया है —- ऐसा सिद्भि और असिद्भि में सम रहने वाला कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी उनसे नहीं बंधता ।। २२ ।। A person who is content with what he has who has no feeling of desire for other things, or uncertainty of any type, who has shed his envious feelings and who is above all even-minded in success and failure, such a person is no longer bound by Karma even if he still performs Karma.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २३

अध्याय ४  शलोक २३ The Gita – Chapter 4 – Shloka 23 Shloka 23  जिसकी आसक्त्ति सर्वथा नष्ट हो गयी है, जो देहाभिमान और ममता से रहित हो गया है, जिसका चित्त निरन्तर परमात्मा के ज्ञान में स्थित रहता है — ऐसा केवल यज्ञ सम्पादन के लिये कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म भली भाँति विलीन हो जाते हैं ।। २३ ।। Lord Krishna continued: A person who has no attachment to anything whatsoever in this world, whose heart is set on acquiring Gyan (wisdom), who works for the sake of sacrifice, and is a totally liberated person from the world, all actions for this person melt away and are meaningless.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २४

अध्याय ४  शलोक २४ The Gita – Chapter 4 – Shloka 24 Shloka 24  जिस यज्ञ में अर्पण अर्थात् स्त्रुवा आदि भी ब्रह्म है और हवन किये जाने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है तथा ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा ब्रह्मरूप अग्नि में आहुति देना रूप क्रिया भी ब्रह्म है —- उस ब्रह्म कर्म में स्थित रहने वाले योगी द्वारा प्राप्त किये जाने योग्य फल भी ब्रह्म ही है ।। २४ ।। The offerings in a sacrifice are Brahma (God), the sacrificial fire is Brahma (God), the one who performs the sacrifice is Brahma, the sacrifice itself is Brahma, the person performing the action of sacrifice is placed in Brahma and will reach Brahma, the ultimate goal of sacrifice.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २५

अध्याय ४  शलोक २५ The Gita – Chapter 4 – Shloka 25 Shloka 25  दूसरे योगी जन देवताओं के पूजन रूप यज्ञ का ही भली भांति अनुष्ठान किया करते हैं और अन्य योगी जन पर ब्रह्म परमात्मा रूप अग्नि में अभेद दर्शन रूप यज्ञ के द्वारा ही आत्म-रूप यज्ञ का हवन किया करते हैं* ।। २५ ।। The Lord continued: Some Yogis prefer to perform sacrifice through the worship of deities (gods and god esses): other Yogis perform sacrifice to Brahma in the form of fire.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २६

अध्याय ४  शलोक २६ The Gita – Chapter 4 – Shloka 26 Shloka 26  अन्य योगी जन श्रोत्र आदि समस्त इन्द्रियों को संयम रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं और दूसरे योगी लोग शब्दादि समस्त विषयों का इन्द्रिय रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं ।। २६ ।। Some offer, in the fire of self-control, one of their senses such as their hearing. (This signifies that the signifies has no attachment to any of his senses.) Others offer sensual objects (objects of perception), such as sound, in the fire of controlled senses. Signifying that the sacrificer has the will-power and restraint not to let his senses be influenced by evil, sin, or sensual objects of destruction.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २७

अध्याय ४  शलोक २७ The Gita – Chapter 4 – Shloka 27 Shloka 27  दूसरे योगी जन इन्द्रियों की सम्पूर्ण क्रियाओं को और प्राणों की समस्त क्रियाओं को ज्ञान से प्रकाशित आत्म संयम योग रूप अग्नि में हवन किया करते हैं ।। २७ ।। Some Yogis sacrifice all the functions of their senses ans all their vital functions of life, into the fire of Yoga, in the shape of self control, which is kindled by Gyan (wisdom). (This signifies the sacrificer’s one-mindedness with the Lord, the Supreme Goal).   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २८

अध्याय ४  शलोक २८ The Gita – Chapter 4 – Shloka 28 Shloka 28  कई पुरुष द्रव्य सम्बन्धी यज्ञ करने वाले हैं, कितने ही तपस्या रूप यज्ञ करने वाले हैं, तथा दूसरे कितने ही योगरूप यज्ञ करने वाले हैं, कितने ही अहिंसादि तीक्ष्ण व्रतों से युक्त्त यत्नशील पुरुष स्वाध्याय रूप ज्ञान यज्ञ करने वाले हैं ।। २८ ।। Sacrifices come in many forms. Giving away material wealth for charity is a sacrifice. Austerity is a sacrifice. Yoga is a sacrifice. Making vows and promises involve sacrifice. Even self-study is a sacrifice.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक २९,३०

अध्याय ४  शलोक २९,३० The Gita – Chapter 4 – Shloka 29,30 Shloka 29,30  दूसरे कितने ही योगी जन अपान वायु में प्राणवायु को हवन करते हैं । वैसे ही अन्य योगी जन प्राणवायु में अपान वायु को हवन करते हैं तथा अन्य कितने ही नियमित आहार करने वाले प्राणायाम परायण पुरुष प्राण और अपान की गति को रोक कर प्राणों को प्राणों में ही हवन किया करते है । ये सभी साधक यज्ञों द्वारा पापों का नाश कर देने वाले और यज्ञों को जानने वाले हैं ।। २९ – ३० ।। Other Yogis (wise men) perform sacrifice by controlling the amount of breaths they take. By holding in their breath for a long periond of time while pronouncing My name, they increase their life’s longevity. This act is known as PRANAYAM. Others perform sacrifice by controlling what they eat,(fasting). Those whose sins have been destroyed by sacrifice, understand the power and importance of sacrifice.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ३१

अध्याय ४  शलोक ३१ The Gita – Chapter 4 – Shloka 31 Shloka 31  हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन ! यज्ञ से बचे हुए अमृत का अनुभव करने वाले योगी जन सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं और यज्ञ न करने वाले पुरुष के लिये तो यह मनुष्य लोक भी सुखदायक नहीं है, फिर परलोक कैसे सुखदायक हो सकता है ।। ३१ ।। O Arjuna, only those people who have sacrificed to achieve wisdom and knowledge of Gyan, go to Brahma, (the creator of all beings and God of Wisdom in the World). Without performing some sort of sacrifice in life, one cannot possibly remain happy in this world, not to mention the afterworld.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ३२

अध्याय ४  शलोक ३२ The Gita – Chapter 4 – Shloka 32 Shloka 32  इसी प्रकार और भी बहुत तरह के यज्ञ वेद की वाणी में विस्तार से कहे गये हैं । उन सब को तू मन, इन्द्रिय और शरीर की क्रिया द्वारा सम्पन्न होने वाले जान, इस प्रकार तत्त्व से जान कर उनके अनुष्ठान द्वारा तू कर्म बन्धन से सर्वथा मुक्त्त हो जायगा ।। ३२ ।। The Lord continued: O Arjuna, many sacrifices are mentioned extensively throughout the Vedas. All of these sacrifices involve some sort of action or Karma to be performed. With this knowledge in mind, you will achieve the state of unattached Karma, or action done without the expectation of any results.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ३३

अध्याय ४  शलोक ३३ The Gita – Chapter 4 – Shloka 33 Shloka 33  हे परंतप अर्जुन ! द्रव्य मय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञान यज्ञ अत्यन्त श्रेष्ठ है तथा यावन्मात्र सम्पूर्ण कर्म ज्ञान में समाप्त हो जाते हैं ।। ३३ ।। O Arjuna, sacrifice of wisdom (Gyan) is always better than sacrifice of material objects because all actions end with Gyan.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ३४

अध्याय ४  शलोक ३४ The Gita – Chapter 4 – Shloka 34 Shloka 34  उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भली भाँति दण्डवत्-प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलता पूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्मा तत्त्व को भली भाँति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्व ज्ञान का उपदेश करेंगे ।। ३४ ।। The Lord advised: O Arjuna, learn the principles of Gyan and ask questions about Gyan respectfully and with determination, from those who fully understand the principles of Gyan. Thay will explain “Gyan” to you. Knowing Gyan, you will never be in the confused state as you are in now.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ३५

अध्याय ४  शलोक ३५ The Gita – Chapter 4 – Shloka 35 Shloka 35  जिसको जान कर फिर तू इस प्रकार मोह को नहीं प्राप्त होगा तथा हे अर्जुन ! जिस ज्ञान के द्वारा तू सम्पूर्ण भूतों को नि:शेष भाव से पहले अपने में और पीछे मुझ सच्चिदानन्दधन परमात्मा में देखेगा ।। ३५ ।। The Lord continued: O Arjuna, through Gyan, you will see all beings within yourself, and thereafter, all beings in Me.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ३६

अध्याय ४  शलोक ३६ The Gita – Chapter 4 – Shloka 36 Shloka 36  यदि तू अन्य सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, तो भी तू ज्ञान रूप नौका द्वारा नि:संदेह सम्पूर्ण पाप समुद्र से भली भाँति तर जायगा ।। ३६ ।। O Arjuna, even if you are the greatest sinner in the world, this river of sins can be crossed with the boat of Gyan.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ३७

अध्याय ४  शलोक ३७ The Gita – Chapter 4 – Shloka 37 Shloka 37  क्योंकि हे अर्जुन ! जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधनों को भस्ममय कर देता है, वैसे ही ज्ञान रूप अग्नि सम्पूर्ण कर्मों को भस्ममय कर देता है ।। ३७ ।। O Arjuna, as the burnig fire reduces fuel to ashes, in this same way, Karma (attached Karma binding a person to the material world), is burnt down with the fire of Gyan.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ३८

अध्याय ४  शलोक ३८ The Gita – Chapter 4 – Shloka 38 Shloka 38  इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला नि:संदेह कुछ भी नहीं है । उस ज्ञान को कितने ही काल से कर्मयोग के द्वारा शुद्बान्त:करण हुआ मनुष्य अपने आप ही आत्मा में पा लेता है ।। ३८ ।। In this world, O Arjuna, there is no greater purifier than Gyan or wisdom itself. The person who has mastered Yoga to perfection feels wisdom in his soul at the proper time.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ३९

अध्याय ४  शलोक ३९ The Gita – Chapter 4 – Shloka 39 Shloka 39  जितेन्द्रिय साधन परायण और श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है तथा ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलम्ब के — तत्काल ही भगवत्प्राप्ति रूप परम शान्ति को प्राप्त हो जाता है ।। ३९ ।। To abtain Gyan, one must conquer the senses, and develop a real devotion and faith towards the Lord. When one obtains Gyan, he has discovered the key to Supreme peace.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ४०

अध्याय ४  शलोक ४० The Gita – Chapter 4 – Shloka 40 Shloka 40  विवेकहीन और श्रद्बारहित संशययुक्त्त मनुष्य परमार्थ से अवश्य भ्रष्ट हो जाता है । ऐसे संशययुक्त्त मनुष्य के लिये न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है ।। ४० ।। If a person is ignorant of the Knowledge of God, the person who lacks faith in God and the one who is full of doubts in his own self, will undoubtedly be destroyed. If one has doubts, he can never achieve peace and Bliss in the world, nor in the after-world.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ४१

अध्याय ४  शलोक ४१ The Gita – Chapter 4 – Shloka 41 Shloka 41  हे धनञ्जय ! जिसने कर्मयोगी की विधि से समस्त कर्मों को परमात्मा में अर्पण कर दिया है और जिसने विवेक द्वारा समस्त संशयों का नाश कर दिया है, ऐसे वश में किये हुए अन्त:करण वाले पुरुष को कर्म नहीं बाँधते ।। ४१ ।। One who has rid himself of attached Karma by practising Yoga and one who has rid himself of doubts by achieving Gyan, he is a self-realized person and is not bound by attached Karma.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ४ शलोक ४२

अध्याय ४  शलोक ४२ The Gita – Chapter 4 – Shloka 42 Shloka 42  इसलिये हे भरतवंशी अर्जुन ! तू ह्रदय में स्थित इस अज्ञान जनित अपने संशय का विवेक ज्ञान रूप तलवार द्वारा छेदन करके समत्व रूप कर्मयोग में स्थित हो जा ।। ४२ ।। Hence, be established in yoga by cutting the ignorance born doubt about the self with the sword of knowledge. Stand up, O Bharata.   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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