श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १० शलोक ८

अध्याय १० शलोक ८ The Gita – Chapter 10 – Shloka 8 Shloka 8  मैं वासुदेव ही सम्पूर्ण जगत्त् की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझ से ही सब जगत्त् चेष्टा करता है, इस प्रकार समझ कर श्रद्भा और भक्त्ति से युक्त्त बुद्भिमान् भक्त्तजन मुझ परमेश्वर को निरन्तर भजते है ।। ८ ।। Arjuna, recognize Me […]

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अध्याय १० शलोक ७

अध्याय १० शलोक ७ The Gita – Chapter 10 – Shloka 7 Shloka 7  जो पुरुष मेरी इस परमेश्वर्य रूप विभूति को और योग शक्त्ति को तत्व जानता है, वह निश्चल भक्त्ति योग से युक्त्त हो जाता है—इसमे कुछ भी संशय नहीं है ।। ७ ।। He who fully understands my Supreme Glories and the

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अध्याय १० शलोक ६

अध्याय १० शलोक ६ The Gita – Chapter 10 – Shloka 6 Shloka 6  सात महषिजन, चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनकादि स्वयम्भुव आदि चौदह मनु —-ये मुझ में भाव वाले सब-के-सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए है, जिनकी संसार में यह सम्पुर्ण प्रजा है ।। ६ ।। The seven great sages (wisemen), their

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अध्याय १० शलोक ४,५

अध्याय १० शलोक ४,५ The Gita – Chapter 10 – Shloka 4,5 Shloka 4,5  निश्चय करने की शक्त्ति, यथार्थ ज्ञान,  असम्मूढता, क्षमा, सत्य, इन्द्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख-दुःख, उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय तथा अहिंसा, समता, संतोष, तप, दान, कीर्ति और अपकीर्ति–ऎसे ये प्राणियो के नाना प्रकार के भाव मुझ से ही

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अध्याय १० शलोक ३

अध्याय १० शलोक ३ The Gita – Chapter 10 – Shloka 3 Shloka 3  जो मुझको अजन्मा  अर्थात्त् वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान ईश्वर तत्व से जानना है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरुष सम्पूर्ण पापो से मुक्त्त हो जाता है ।। ३ ।। The Blessed Lord declared: He who fully understands ME

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अध्याय १० शलोक २

अध्याय १० शलोक २ The Gita – Chapter 10 – Shloka 2 Shloka 2  मेरी उत्पति को अर्थात्त् लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते है और न महषि जन ही जानते है; क्योंकि मै सब प्रकार से देवताओ का और महषियों का भी आदिकारण हूँ ।। २ ।। Even the Deities and the

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अध्याय १० शलोक १

अध्याय १० शलोक १ The Gita – Chapter 10 – Shloka 1 Shloka 1  श्रीभगवान् बोले—- हे महाबाहो ! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभाव युक्त्त वचन को सुन, जिसे मै तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिये हित की इच्छा से कहूँगा ।। १ ।। Arjuna, my dear devotee, hear and understand these

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अध्याय ९ शलोक ३४

अध्याय ९  शलोक ३४ The Gita – Chapter 9 – Shloka 34 Shloka 34  मुझ मे मन वाला हो, मेरा भक्त्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर । इस प्रकार आत्मा को मुझ मे नियुक्त्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा ।। ३४ ।। Arjuna, fix your mind only on

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अध्याय ९ शलोक ३३

अध्याय ९  शलोक ३३ The Gita – Chapter 9 – Shloka 33 Shloka 33  फिर इसमे कहना ही क्या है, जो पुण्य शील ब्राह्मण तथा राजषि भक्त्त जन मेरी शरण होकर परम गति को प्राप्त होते है । इसलिये तू सुखरहित और क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरन्तर मेरा ही भजन कर ।। ३३ ।। O

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अध्याय ९ शलोक ३२

अध्याय ९  शलोक ३२ The Gita – Chapter 9 – Shloka 32 Shloka 32  हे अर्जुन ! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पाप योनि— चाण्डालादि जो कोई भी हो, मेरे शरण होकर परम गति को ही प्राप्त होते है ।। ३२ ।। Dear Arjuna, by taking refuge in Me, (the true path to bliss and joy), a sinful

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