श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १७ शलोक  ३

अध्याय १७ शलोक  ३ The Gita – Chapter 17 – Shloka 3 Shloka 3  हे भारत ! सभी मनुष्यों की श्रद्बा उनके अन्त:करण के अनुरूप होती है, यह पुरुष श्रद्बामय है, इसलिये जो पुरुष जैसी श्रद्बा वाला है, वह स्वयं भी वही है ।। ३ ।। The faith of every individual on earth O Arjuna […]

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अध्याय १७ शलोक  २

अध्याय १७ शलोक  २ The Gita – Chapter 17 – Shloka 2 Shloka 2  श्री भगवान् बोले —– मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्बा सात्विको और राजसी तथा तामसी —–ऐसे तीनों प्रकार की होती है । उसको तू मुझ से सुन ।। २ ।। The Blessed Lord said: O

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अध्याय १७ शलोक  १

अध्याय १७ शलोक  १ The Gita – Chapter 17 – Shloka 1 Shloka 1  अर्जुन बोले —–हे कृष्ण ! जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्याग कर श्रद्बा से युक्त्त हुए देवादि का पूजन करते हैं, उनकी स्थिति फिर कौन से है ? सात्विकी है ; अथवा राजसी किंवा तामसी ।। १ ।। Arjuna asked the

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अध्याय १६ शलोक २४

अध्याय १६ शलोक  २४ The Gita – Chapter 16 – Shloka 24 Shloka 24  इससे तेरे लिये इस कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है । ऐसा जानकर तू शास्त्र विधि से नियत कर्म ही करने योग्य है ।। २४ ।। Therefore, O Pandava, regard the Holy Vedas as a guide to

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अध्याय १६ शलोक २३

अध्याय १६ शलोक  २३ The Gita – Chapter 16 – Shloka 23 Shloka 23  जो पुरुष शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्भि को प्राप्त होता है, न परम गति को और न सुख को ही ।। २३ ।। But, he who rejects and chooses not to

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अध्याय १६ शलोक २२

अध्याय १६ शलोक  २२ The Gita – Chapter 16 – Shloka 22 Shloka 22  हे अर्जुन ! इन तीनों नरक के द्वार से मुक्त्त पुरुष अपने कल्याण का आचरण करता है, इससे वह परम गति को जाता है अर्थात् मुझको प्राप्त हो जाता है ।। २२ ।। O son of Kunti, should a man free

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अध्याय १६ शलोक २१

अध्याय १६ शलोक  २१ The Gita – Chapter 16 – Shloka 21 Shloka 21  काम, क्रोध तथा लोभ — ये तीन प्रकार के नरक के द्वार आत्मा का नाश करने वाले अर्थात् उसको अधोगति में ले जाने वाले हैं । अतएव इन तीनों को त्याग देना चाहिये ।। २१ ।। O Arjuna, there are three

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अध्याय १६ शलोक  २०

अध्याय १६ शलोक  २० The Gita – Chapter 16 – Shloka 20 Shloka 20  हे अर्जुन ! वे मूढ़ मुझको न प्राप्त होकर ही जन्म-जन्म में आसुरी योनियों को प्राप्त होते हैं, फिर उससे भी अति नीच गति को प्राप्त होते हैं अर्थात् घोर नरकों में पड़ते हैं ।। २० ।। Furthermore, they are reborn

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अध्याय १६ शलोक  १९

अध्याय १६ शलोक  १९ The Gita – Chapter 16 – Shloka 19 Shloka 19  मैं द्बेष करने वाले  पापाचारी और कूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूँ ।। १९ ।। These devilish people who are cruel, whose soul is filled with hate, and who are among the worst men

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अध्याय १६ शलोक  १८

अध्याय १६ शलोक  १८ The Gita – Chapter 16 – Shloka 18 Shloka 18  वे अहंकार, बल, घमण्ड, कामना और क्रोधादि के परायण और दूसरों की निन्दा करने वाले पुरुष अपने और दूसरे के शरीर में स्थित मुझ अन्तर्यामी से द्बेष करने वाले होते हैं ।। १८ ।। These evil beings are bound forever to

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