अध्याय १७

अध्याय १७ शलोक  ८

अध्याय १७ शलोक  ८ The Gita – Chapter 17 – Shloka 8 Shloka 8  आयु, बुद्भि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले रस युक्त्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय —- ऐसे आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ सात्विक पुरुष को प्रिय होते हैं ।। ८ ।। […]

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अध्याय १७ शलोक  ७

अध्याय १७ शलोक  ७ The Gita – Chapter 17 – Shloka 7 Shloka 7  भोजन भी सबको अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का प्रिय होता है । और वैसे ही यज्ञ, तप और दान भी तीन-तीन प्रकार के होते हैं । उनके इस पृथक्-पृथक् भेद को तू मुझसे सुन ।। ७ ।। O Arjuna,

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अध्याय १७ शलोक  ६

अध्याय १७ शलोक  ६ The Gita – Chapter 17 – Shloka 6 Shloka 6  जो शरीर रूप से स्थित भूत समुदाय को और अन्त:करण में स्थित मुझ परमात्मा को भी कृश करने वाले हैं, उन अज्ञानियों को तू असुर स्वभाव वाले जान ।। ६ ।। …and those who foolishly suppress the pure and natural life-giving

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अध्याय १७ शलोक  ५

अध्याय १७ शलोक  ५ The Gita – Chapter 17 – Shloka 5 Shloka 5  जो मनुष्य शास्त्र विधि से रहित केवल मन:कल्पित घोर तप को तपते हैं तथा दम्भ और अहंकार से युक्त्त एवं कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त्त हैं ।। ५ ।। Those men who are selfish, corrupt, conceited, and

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अध्याय १७ शलोक  ४

अध्याय १७ शलोक  ४ The Gita – Chapter 17 – Shloka 4 Shloka 4  सात्विक पुरुष देवों को पूजते हैं, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसों को तथा अन्य जो तामस मनुष्य हैं, वे प्रेत और भूत गणों को पूजते हैं ।। ४ ।। Beings who are pure in heart and mind, who are good- natured

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अध्याय १७ शलोक  ३

अध्याय १७ शलोक  ३ The Gita – Chapter 17 – Shloka 3 Shloka 3  हे भारत ! सभी मनुष्यों की श्रद्बा उनके अन्त:करण के अनुरूप होती है, यह पुरुष श्रद्बामय है, इसलिये जो पुरुष जैसी श्रद्बा वाला है, वह स्वयं भी वही है ।। ३ ।। The faith of every individual on earth O Arjuna

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अध्याय १७ शलोक  २

अध्याय १७ शलोक  २ The Gita – Chapter 17 – Shloka 2 Shloka 2  श्री भगवान् बोले —– मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्बा सात्विको और राजसी तथा तामसी —–ऐसे तीनों प्रकार की होती है । उसको तू मुझ से सुन ।। २ ।। The Blessed Lord said: O

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अध्याय १७ शलोक  १

अध्याय १७ शलोक  १ The Gita – Chapter 17 – Shloka 1 Shloka 1  अर्जुन बोले —–हे कृष्ण ! जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्याग कर श्रद्बा से युक्त्त हुए देवादि का पूजन करते हैं, उनकी स्थिति फिर कौन से है ? सात्विकी है ; अथवा राजसी किंवा तामसी ।। १ ।। Arjuna asked the

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