अध्याय १०

अध्याय १० शलोक ११

अध्याय १० शलोक ११ The Gita – Chapter 10 – Shloka 11 Shloka 11  हे अर्जुन ! उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिये उनके अन्तः -करण में स्थित हुआ मै स्वयं ही उनके अज्ञान जनित अन्धकार को प्रकाश मय तत्व ज्ञान रूप दीपक के द्बारा नष्ट कर देता हूँ ।। ११ ।। While dwelling in the hearts […]

अध्याय १० शलोक ११ Read More »

अध्याय १० शलोक १०

अध्याय १० शलोक १० The Gita – Chapter 10 – Shloka 10 Shloka 10  उन निरन्तर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेम पूर्वक भजने वाले भक्त्तों को मैं वह. तत्व ज्ञान रुप योग देता हूँ. जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं ।। १० ।। My true devotees are constantly attached to ME

अध्याय १० शलोक १० Read More »

अध्याय १० शलोक ९

अध्याय १० शलोक ९ The Gita – Chapter 10 – Shloka 9 Shloka 9  निरन्तर मुझ मे मन लगाने वाले और मुझ में ही प्राणो को अर्पण करने वाले* भक्त्त जन मेरी भक्त्ति की चर्चा के द्भारा आपस मे मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरन्तर

अध्याय १० शलोक ९ Read More »

अध्याय १० शलोक ८

अध्याय १० शलोक ८ The Gita – Chapter 10 – Shloka 8 Shloka 8  मैं वासुदेव ही सम्पूर्ण जगत्त् की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझ से ही सब जगत्त् चेष्टा करता है, इस प्रकार समझ कर श्रद्भा और भक्त्ति से युक्त्त बुद्भिमान् भक्त्तजन मुझ परमेश्वर को निरन्तर भजते है ।। ८ ।। Arjuna, recognize Me

अध्याय १० शलोक ८ Read More »

अध्याय १० शलोक ७

अध्याय १० शलोक ७ The Gita – Chapter 10 – Shloka 7 Shloka 7  जो पुरुष मेरी इस परमेश्वर्य रूप विभूति को और योग शक्त्ति को तत्व जानता है, वह निश्चल भक्त्ति योग से युक्त्त हो जाता है—इसमे कुछ भी संशय नहीं है ।। ७ ।। He who fully understands my Supreme Glories and the

अध्याय १० शलोक ७ Read More »

अध्याय १० शलोक ६

अध्याय १० शलोक ६ The Gita – Chapter 10 – Shloka 6 Shloka 6  सात महषिजन, चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनकादि स्वयम्भुव आदि चौदह मनु —-ये मुझ में भाव वाले सब-के-सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए है, जिनकी संसार में यह सम्पुर्ण प्रजा है ।। ६ ।। The seven great sages (wisemen), their

अध्याय १० शलोक ६ Read More »

अध्याय १० शलोक ४,५

अध्याय १० शलोक ४,५ The Gita – Chapter 10 – Shloka 4,5 Shloka 4,5  निश्चय करने की शक्त्ति, यथार्थ ज्ञान,  असम्मूढता, क्षमा, सत्य, इन्द्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख-दुःख, उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय तथा अहिंसा, समता, संतोष, तप, दान, कीर्ति और अपकीर्ति–ऎसे ये प्राणियो के नाना प्रकार के भाव मुझ से ही

अध्याय १० शलोक ४,५ Read More »

अध्याय १० शलोक ३

अध्याय १० शलोक ३ The Gita – Chapter 10 – Shloka 3 Shloka 3  जो मुझको अजन्मा  अर्थात्त् वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान ईश्वर तत्व से जानना है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरुष सम्पूर्ण पापो से मुक्त्त हो जाता है ।। ३ ।। The Blessed Lord declared: He who fully understands ME

अध्याय १० शलोक ३ Read More »

अध्याय १० शलोक २

अध्याय १० शलोक २ The Gita – Chapter 10 – Shloka 2 Shloka 2  मेरी उत्पति को अर्थात्त् लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते है और न महषि जन ही जानते है; क्योंकि मै सब प्रकार से देवताओ का और महषियों का भी आदिकारण हूँ ।। २ ।। Even the Deities and the

अध्याय १० शलोक २ Read More »

अध्याय १० शलोक १

अध्याय १० शलोक १ The Gita – Chapter 10 – Shloka 1 Shloka 1  श्रीभगवान् बोले—- हे महाबाहो ! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभाव युक्त्त वचन को सुन, जिसे मै तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिये हित की इच्छा से कहूँगा ।। १ ।। Arjuna, my dear devotee, hear and understand these

अध्याय १० शलोक १ Read More »

Scroll to Top