श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १७ शलोक २३

अध्याय १७ शलोक  २३ The Gita – Chapter 17 – Shloka 23 Shloka 23  ओउम्, तत्, सत् —- ऐसे यह तीन प्रकार का सच्चिदानन्दधन ब्रह्म का नाम कहा है ; उसी से सृष्टि के आदि काल में ब्राह्मण और वेद तथा यज्ञादि रचे गये ।। २३ ।। AUM, TAT, SAT (literal translation: the Lord who […]

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अध्याय १७ शलोक २२

अध्याय १७ शलोक  २२ The Gita – Chapter 17 – Shloka 22 Shloka 22  जो दान बिना सत्कार के एवं तिरस्कार पूर्वक अयोग्य देश काल में और कुपात्र के प्रति दिया जाता है, वह दान तामस कहा गया है ।। २२ ।। A gift that is given to an unworthy (evil) person, at an improper

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अध्याय १७ शलोक २१

अध्याय १७ शलोक  २१ The Gita – Chapter 17 – Shloka 21 Shloka 21  किंतु जो दान क्लेश पूर्वक तथा प्रत्युपकार के  प्रयोजन से अथवा फल को दृष्टि में रख कर फिर दिया जाता है, वह दान राजस कहा गया है ।। २१ ।। However Arjuna, when the gift is given with the expectation of

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अध्याय १७ शलोक २०

अध्याय १७ शलोक  २० The Gita – Chapter 17 – Shloka 20 Shloka 20  दान देना ही कर्तव्य है —- ऐसे भाव से जो दान देश तथा काल और पात्र के प्राप्त होने पर उपकार न करने वाले के प्रति दिया जाता है, वह दान सात्विक कहा गया है ।। २० ।। O Arjuna, hear

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अध्याय १७ शलोक १९

अध्याय १७ शलोक  १९ The Gita – Chapter 17 – Shloka 19 Shloka 19  जो तप मूढ़ता पूर्वक हठ से, मन, वाणी और शरीर की पीड़ा के सहित अथवा दूसरे के अनिष्ट करने के लिये किया जाता है —- वह तप तामस कहा गया है ।। १९ ।। When self-control is incorrectly performed by a

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अध्याय १७ शलोक १८

अध्याय १७ शलोक  १८ The Gita – Chapter 17 – Shloka 18 Shloka 18  जो तप सत्कार, मान और पूजा के लिये तथा अन्य किसी स्वार्थ के लिये भी स्वभाव से या पाखण्ड से किया जाता है, वह अनिश्चित एवं क्षणिक फल वाला तप यहाँ राजस कहा गया है ।। १८ ।। However, My best

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अध्याय १७ शलोक १७

अध्याय १७ शलोक  १७ The Gita – Chapter 17 – Shloka 17 Shloka 17  फल को न चाहने वाले योगी पुरुषों द्वारा परम श्रद्बा से किये हुए उस पूर्वोक्त्त तीन प्रकार के तप को सात्विक कहते हैं ।। १७ ।। If these three types of harmony are practised with supreme faith, a pure heart, truthful

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अध्याय १७ शलोक १६

अध्याय १७ शलोक  १६ The Gita – Chapter 17 – Shloka 16 Shloka 16  मन की प्रसन्नता, शान्त भाव, भगवच्चिन्तन करने का स्वभाव, मन का निग्रह, और अन्त:करण के भावों की भली भाँति पवित्रता —-इस प्रकार यह मन सम्बन्धी तप कहा जाता है ।। १६ ।। Peace and tranquility of the mind, harmony and confidence

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अध्याय १७ शलोक १५

अध्याय १७ शलोक  १५ The Gita – Chapter 17 – Shloka 15 Shloka 15  जो उद्बेग न करने वाला, प्रिय और हित कारक एवं यथार्थ भाषण है तथा जो वेद शास्त्रों के पठन का एवं परमेश्वर के नाम जप का अभ्यास है —– वही वाणी सम्बन्धी तप कहा जाता है ।। १५ ।। Speaking only

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अध्याय १७ शलोक १४

अध्याय १७ शलोक  १४ The Gita – Chapter 17 – Shloka 14 Shloka 14  देवता, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा —–यह शरीर सम्बन्धी तप कहा जाता है ।। १४ ।। The worship of the Gods of Light; of the twice-born; worship and respect given to the religious teacher and

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