श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १ शलोक ३२

अध्याय १ शलोक ३२ The Gita – Chapter 1 – Shloka 32 Shloka 32 हे कृष्ण ! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही । हे गोविन्द ! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है ? ।। ३२ […]

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अध्याय १ शलोक ३१

अध्याय १ शलोक ३१ The Gita – Chapter 1 – Shloka 31 Shloka 31 हे केशव ! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता ।। ३१ ।। I cannot see any good in slaughtering and killing my friends and relatives in battle. O

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अध्याय १ शलोक ३०

अध्याय १ शलोक ३० The Gita – Chapter 1 – Shloka 30 Shloka 30 हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिये मै खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ ।। ३० ।। I can no longer stand; my knees are

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अध्याय १ शलोक २९

अध्याय १ शलोक २९ The Gita – Chapter 1 – Shloka 29 Shloka 29 अर्जुन बोले —– हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है

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अध्याय १ शलोक २७,२८

अध्याय १ शलोक २७,२८ The Gita – Chapter 1 – Shloka 27,28 Shloka 27,28 उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वे कुन्तीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले ।। २७, ।। अर्जुन बोले —– हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर

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अध्याय १ शलोक २६

अध्याय १ शलोक २६ The Gita – Chapter 1 – Shloka 26 Shloka 26 इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों-पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुह्रदों को भी देखा  ।। २६ ।। ARJUNA, gazed upon the army

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अध्याय १ शलोक २४,२५

अध्याय १ शलोक २४,२५ The Gita – Chapter 1 – Shloka 24-25 Shloka 24 25 संजय बोले —– हे धृतराष्ट्र ! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्रीकृष्णचन्द्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा कर के इस प्रकार कहा की

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अध्याय १ शलोक २३

अध्याय १ शलोक २३ The Gita – Chapter 1 – Shloka 23 Shola 23 दुर्बुद्भि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहनेवाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आये हैं, इन युद्ध करनेवालों कों मैं देखूंगा ।। २३ ।। I desire to see all of those great warrior kings who have gathered here to fight

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अध्याय १ शलोक २२

अध्याय १ शलोक २२ The Gita – Chapter 1 – Shloka 22 Shloka 22 और जब तक की मैं युद्धक्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख लू कि इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन-किनके साथ युद्ध करना योग्य है, तब तक उसे खड़ा रखिये ।। २२ ।।

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अध्याय १ शलोक २०,२१

अध्याय १ शलोक २०,२१ The Gita – Chapter 1 – Shloka 20-21 Shloka 20  21 हे राजन् ! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-सम्बन्धियों को देखकर उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर ह्रषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा —— हे अच्युत ! मेरे रथको दोनों सेनाओं के

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