श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय २  शलोक ४८

अध्याय २  शलोक ४८   The Gita – Chapter 2 – Shloka 48 Shloka 48  हे धनञ्जय ! तू आसक्त्ति को त्याग कर तथा सिद्भि और असिद्भि में समान बुद्भि वाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व ही योग कहलाता है ।। ४८ ।। The Divine Lord said: O ARJUNA, perform all […]

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अध्याय २ शलोक ४७

अध्याय २ शलोक ४७ The Gita – Chapter 2 – Shloka 47 Shloka 47  तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं । इसलिये तू कर्मों के फल का हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्त्ति न हो ।। ४७ ।। O ARJUNA, always remember what I

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अध्याय २ शलोक ४६

अध्याय २ शलोक ४६ The Gita – Chapter 2 – Shloka 46 Shloka 46  सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है, ब्रह्म को तत्व से जानने वाले ब्राह्मण का समस्त वेदों में उतना ही प्रयोजन रह जाता है ।। ४६ ।। O ARJUNA,

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अध्याय २ शलोक ४५

अध्याय २ शलोक ४५ The Gita – Chapter 2 – Shloka 45 Shloka 45  हे अर्जुन ! वेद उपर्युक्त्त प्रकार से तीनों गुणों के कार्य रूप समस्त भोगों एवं उनके साधनों का प्रति पादन करने वाले हैं ; इसलिये तू उन भोगों एवं उनके साधनों में आसक्त्तिहीन, हर्ष-शोकादि द्वन्दो से रहित, नित्य वस्तु परमात्मा में स्थित,

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अध्याय २ शलोक ४२,४३,४४

अध्याय २ शलोक ४२,४३,४४ The Gita – Chapter 2 – Shloka 42,43,44 Shloka 42,43,44  हे अर्जुन ! जो भोगों में तन्मय हो रहे हैं, जो कर्मफल के प्रशंसक वेदवाक्यों में ही प्रीति रखते हैं, जिनकी बुद्भि में स्वर्ग ही परम प्राप्य वस्तु है और जो स्वर्ग से बढ़कर दूसरी कोई वस्तु ही नहीं है —–

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अध्याय २ शलोक ४१

अध्याय २ शलोक ४१ The Gita – Chapter 2 – Shloka 41 Shloka 41  हे अर्जुन ! इस कर्मयोग में निश्चयात्मिका बुद्भि एक ही होती है ; किंतु अस्थिर विचार वाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्दि निश्चय ही बहुत भेदों वाली और अनन्त होती हैं ।। ४१ ।। Those with a firm mind, O ARJUNA, are

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अध्याय २ शलोक ४०

अध्याय २ शलोक ४० The Gita – Chapter 2 – Shloka 40 Shloka 40  इस कर्मयोग में आरम्भ का अर्थात् बीज का नाश नहीं है और उल्टा फलरूप दोष भी नहीं है, बल्कि इस कर्मयोग रूप धर्म का थोड़ा-सा भी साधन जन्म मृत्युरूप, महान् भय से रक्षा कर लेता है ।। ४० ।। When one

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अध्याय २ शलोक ३९

अध्याय २ शलोक ३९ The Gita – Chapter 2 – Shloka 39 Shloka 39  हे पार्थ ! यह बुद्भि तेरे लिये ज्ञानयोग के विषय में कही गयी और अब तू इसको कर्मयोग के विषय में सुन —– जिस बुद्बि से युक्त्त हुआ तू कर्मों के बन्धन को भलीभाँति त्याग देगा अर्थात् सर्वथा नष्ट कर डालेगा

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अध्याय २ शलोक ३८

अध्याय २ शलोक ३८ The Gita – Chapter 2 – Shloka 38 Shloka 38  जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःखों को समान समझकर उसके वाद युद्ध के लिये तैयार हो जा : इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा ।। ३८ ।। The Blessed Lord spoke unto Arjuna: O ARJUNA, by considering victory

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अध्याय २ शलोक ३७

अध्याय २ शलोक ३७ The Gita – Chapter 2 – Shloka 37 Shloka 37  या तो तू युद्ध में मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा संग्राम में जीतकर पृथ्वी का राज्य भोगेगा । इस कारण हे अर्जुन ! तू युद्ध के लिए निश्चित करके खड़ा हो जा ।। ३७ ।। O ARJUNA, if you

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