श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय ४ शलोक १४

अध्याय ४  शलोक १४ The Gita – Chapter 4 – Shloka 14 Shloka 14  कर्मों के फल में मेरी स्पृहा नहीं है, इसलिये मुझे कर्म लिप्त नहीं करते —- इस प्रकार जो मुझे तत्त्व से जान लेता है, वह भी कर्मों से नहीं बंधता ।। १४ ।। The Lord continued: O Arjuna, since I, the immortal […]

अध्याय ४ शलोक १४ Read More »

अध्याय ४ शलोक १३

अध्याय ४  शलोक १३ The Gita – Chapter 4 – Shloka 13 Shloka 13  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र —- इन चार वर्णों का समूह, गुण और कर्मों के विभाग पूर्वक मेरे द्वारा रचा गया है, इस प्रकार उस सृष्टि-रचनादि कर्म का कर्ता होने पर भी मुझ अविनाशी परमेश्वर को तू वास्तव में अकर्ता ही जान

अध्याय ४ शलोक १३ Read More »

अध्याय ४ शलोक १२

अध्याय ४  शलोक १२ The Gita – Chapter 4 – Shloka 12 Shloka 12  इस मनुष्य लोक में कर्मों के फल को चाहने वाले लोग देवताओं का पूजन किया करते हैं ; क्योंकि उनको कर्मों से उत्पन्न होने वाली सिद्भि शीघ्र मिल जाती है ।। १२ ।। O Arjuna, those who do actions or Karma for

अध्याय ४ शलोक १२ Read More »

अध्याय ४ शलोक ११

अध्याय ४  शलोक ११ The Gita – Chapter 4 – Shloka 11 Shloka 11  हे अर्जुन ! जो भक्त्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उन को उसी प्रकार भजता हूँ ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं ।। ११ ।। O Arjuna, those people who love, trust

अध्याय ४ शलोक ११ Read More »

अध्याय ४ शलोक १०

अध्याय ४  शलोक १० The Gita – Chapter 4 – Shloka 10 Shloka 10  पहले भी, जिनके राग, भय और क्रोध सर्वथा नष्ट हो गये थे और जो मुझ में अनन्य प्रेम पूर्वक स्थिर रहते थे, ऐसे मेरे आश्रित रहने वाले बहुत से भक्त्त उपर्युक्त्त ज्ञान रूप ताप से पवित्र होकर मेरे स्वरूप को प्राप्त हो

अध्याय ४ शलोक १० Read More »

अध्याय ४ शलोक ९

अध्याय ४  शलोक ९ The Gita – Chapter 4 – Shloka 9 Shloka 9  हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात् निर्मल और अलौकिक हैं —- इस प्रकार जो मनुष्य तत्त्व से जान लेता है, वह शरीर को त्याग कर फिर जन्म को प्राप्त नहीं होता, किंतु मुझे ही प्राप्त होता है ।। ९

अध्याय ४ शलोक ९ Read More »

अध्याय ४ शलोक ८

अध्याय ४  शलोक ८ The Gita – Chapter 4 – Shloka 8 Shloka 8  साधु पुरुषों का उद्बार करने के लिये, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिये और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिये मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ ।। ८ ।। O Arjuna, I appear on earth

अध्याय ४ शलोक ८ Read More »

अध्याय ४ शलोक ७

अध्याय ४  शलोक ७ The Gita – Chapter 4 – Shloka 7 Shloka 7  हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्बि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ।। ७ ।। The Lord declared solemnly unto Arjuna: O Arjuna, whenever

अध्याय ४ शलोक ७ Read More »

अध्याय ४ शलोक ६

अध्याय ४  शलोक ६ The Gita – Chapter 4 – Shloka 6 Shloka 6  मैं अजन्मा और अविनाशी स्वरूप होते हुए भी तथा समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योग माया से प्रकट होता हूँ ।। ६ ।। O Arjuna, although birth and death do not exist for Me,

अध्याय ४ शलोक ६ Read More »

अध्याय ४ शलोक ५

अध्याय ४  शलोक ५ The Gita – Chapter 4 – Shloka 5 Shloka 5  श्रीभगवान् बोले —- हे परंतप अर्जुन ! मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं । उन सब को तू नहीं जानता, किंतु मैं जानता हूँ ।। ५ ।। The Lord looked upon Arjuna and replied: Arjuna, the answer to your

अध्याय ४ शलोक ५ Read More »

Scroll to Top