श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय ४ शलोक २४

अध्याय ४  शलोक २४ The Gita – Chapter 4 – Shloka 24 Shloka 24  जिस यज्ञ में अर्पण अर्थात् स्त्रुवा आदि भी ब्रह्म है और हवन किये जाने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है तथा ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा ब्रह्मरूप अग्नि में आहुति देना रूप क्रिया भी ब्रह्म है —- उस ब्रह्म कर्म में स्थित रहने वाले […]

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अध्याय ४ शलोक २३

अध्याय ४  शलोक २३ The Gita – Chapter 4 – Shloka 23 Shloka 23  जिसकी आसक्त्ति सर्वथा नष्ट हो गयी है, जो देहाभिमान और ममता से रहित हो गया है, जिसका चित्त निरन्तर परमात्मा के ज्ञान में स्थित रहता है — ऐसा केवल यज्ञ सम्पादन के लिये कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म भली भाँति

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अध्याय ४ शलोक २२

अध्याय ४  शलोक २२ The Gita – Chapter 4 – Shloka 22 Shloka 22  जो बिना इच्छा के अपने आप प्राप्त हुए पदार्थ में सदा संतुष्ट रहता है, जिसमें ईष्र्या का सर्वथा अभाव हो गया है जो हर्ष-शोक आदि द्बन्द्बों से सर्वथा अतीत हो गया है —- ऐसा सिद्भि और असिद्भि में सम रहने वाला कर्मयोगी

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अध्याय ४ शलोक २१

अध्याय ४  शलोक २१ The Gita – Chapter 4 – Shloka 21 Shloka 21  जिसका अन्त:करण और इन्द्रियों के सहित शरीर जीता हुआ है और जिसने समस्त भोगों की सामग्री का परित्याग कर दिया है, ऐसा आशा रहित पुरुष केवल शरीर सम्बन्धी कर्म करता हुआ भी पापों को नहीं प्राप्त होता ।। २१ ।। That person,

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अध्याय ४ शलोक २०

अध्याय ४  शलोक २० The Gita – Chapter 4 – Shloka 20 Shloka 20  जो पुरुष समस्त कर्मों में और उनके फल में आसक्त्ति का सर्वथा त्याग करके संसार के आश्रय से रहित हो गया है और परमात्मा में नित्य तृप्त है, वह कर्मों में भली भाँति बर्तता हुआ भी वास्तव में कुछ भी नहीं करता

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अध्याय ४ शलोक १९

अध्याय ४  शलोक १९ The Gita – Chapter 4 – Shloka 19 Shloka 19  जिसके सम्पूर्ण शास्त्र सम्मत कर्म बिना कामना और संकल्प के होते हैं तथा जिसके समस्त कर्म ज्ञान रूप अग्नि के द्वारा भस्म हो गये हैं, उस महापुरुष को ज्ञानी जन भी पण्डित कहते हैं ।। १९ ।। One who does all Karma

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अध्याय ४ शलोक १८

अध्याय ४  शलोक १८ The Gita – Chapter 4 – Shloka 18 Shloka 18  जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखता है और जो अकर्म में कर्म देखता है, वह मनुष्यों में बुद्भिमान है और वह योगी समस्त कर्मों को करने वाला है ।। १८ ।। One who sees action (Karma) in inaction (Akarma), and inaction in

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अध्याय ४ शलोक १७

अध्याय ४  शलोक १७ The Gita – Chapter 4 – Shloka 17 Shloka 17  कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिये और अकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिये तथा विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए ; क्योंकि कर्म की गति गहन है ।। १७ ।। One should know the principle of Karma (action) Akarma (inaction) and forbidden

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अध्याय ४ शलोक १६

अध्याय ४  शलोक १६ The Gita – Chapter 4 – Shloka 16 Shloka 16  कर्म क्या है ? और अकर्म क्या है ? — इस प्रकार इसका निर्णय करने में बुद्भिमान् पुरुष भी मोहित हो जाते हैं । इसलिये वह कर्म तत्त्व मैं तुझे भली भाँति समझा कर कहूँगा, जिसे जान कर तू अशुभ से अर्थात्

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अध्याय ४ शलोक १५

अध्याय ४  शलोक १५ The Gita – Chapter 4 – Shloka 15 Shloka 15  पूर्व काल में मुमुक्षुओं ने भी इस प्रकार जानकर ही कर्म किये हैं । इसलिये तू भी पूर्वजों द्वारा सदा से किये जाने वाले कर्मों को ही कर ।। १५ ।। The Lord continued: O Arjuna, ancient wise men who were searching

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