श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय ४ शलोक ३५

अध्याय ४  शलोक ३५ The Gita – Chapter 4 – Shloka 35 Shloka 35  जिसको जान कर फिर तू इस प्रकार मोह को नहीं प्राप्त होगा तथा हे अर्जुन ! जिस ज्ञान के द्वारा तू सम्पूर्ण भूतों को नि:शेष भाव से पहले अपने में और पीछे मुझ सच्चिदानन्दधन परमात्मा में देखेगा ।। ३५ ।। The […]

अध्याय ४ शलोक ३५ Read More »

अध्याय ४ शलोक ३४

अध्याय ४  शलोक ३४ The Gita – Chapter 4 – Shloka 34 Shloka 34  उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भली भाँति दण्डवत्-प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलता पूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्मा तत्त्व को भली भाँति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्व

अध्याय ४ शलोक ३४ Read More »

अध्याय ४ शलोक ३३

अध्याय ४  शलोक ३३ The Gita – Chapter 4 – Shloka 33 Shloka 33  हे परंतप अर्जुन ! द्रव्य मय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञान यज्ञ अत्यन्त श्रेष्ठ है तथा यावन्मात्र सम्पूर्ण कर्म ज्ञान में समाप्त हो जाते हैं ।। ३३ ।। O Arjuna, sacrifice of wisdom (Gyan) is always better than sacrifice of material objects

अध्याय ४ शलोक ३३ Read More »

अध्याय ४ शलोक ३२

अध्याय ४  शलोक ३२ The Gita – Chapter 4 – Shloka 32 Shloka 32  इसी प्रकार और भी बहुत तरह के यज्ञ वेद की वाणी में विस्तार से कहे गये हैं । उन सब को तू मन, इन्द्रिय और शरीर की क्रिया द्वारा सम्पन्न होने वाले जान, इस प्रकार तत्त्व से जान कर उनके अनुष्ठान

अध्याय ४ शलोक ३२ Read More »

अध्याय ४ शलोक ३१

अध्याय ४  शलोक ३१ The Gita – Chapter 4 – Shloka 31 Shloka 31  हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन ! यज्ञ से बचे हुए अमृत का अनुभव करने वाले योगी जन सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं और यज्ञ न करने वाले पुरुष के लिये तो यह मनुष्य लोक भी सुखदायक नहीं है, फिर परलोक कैसे

अध्याय ४ शलोक ३१ Read More »

अध्याय ४ शलोक २९,३०

अध्याय ४  शलोक २९,३० The Gita – Chapter 4 – Shloka 29,30 Shloka 29,30  दूसरे कितने ही योगी जन अपान वायु में प्राणवायु को हवन करते हैं । वैसे ही अन्य योगी जन प्राणवायु में अपान वायु को हवन करते हैं तथा अन्य कितने ही नियमित आहार करने वाले प्राणायाम परायण पुरुष प्राण और अपान की

अध्याय ४ शलोक २९,३० Read More »

अध्याय ४ शलोक २८

अध्याय ४  शलोक २८ The Gita – Chapter 4 – Shloka 28 Shloka 28  कई पुरुष द्रव्य सम्बन्धी यज्ञ करने वाले हैं, कितने ही तपस्या रूप यज्ञ करने वाले हैं, तथा दूसरे कितने ही योगरूप यज्ञ करने वाले हैं, कितने ही अहिंसादि तीक्ष्ण व्रतों से युक्त्त यत्नशील पुरुष स्वाध्याय रूप ज्ञान यज्ञ करने वाले हैं ।।

अध्याय ४ शलोक २८ Read More »

अध्याय ४ शलोक २७

अध्याय ४  शलोक २७ The Gita – Chapter 4 – Shloka 27 Shloka 27  दूसरे योगी जन इन्द्रियों की सम्पूर्ण क्रियाओं को और प्राणों की समस्त क्रियाओं को ज्ञान से प्रकाशित आत्म संयम योग रूप अग्नि में हवन किया करते हैं ।। २७ ।। Some Yogis sacrifice all the functions of their senses ans all their

अध्याय ४ शलोक २७ Read More »

अध्याय ४ शलोक २६

अध्याय ४  शलोक २६ The Gita – Chapter 4 – Shloka 26 Shloka 26  अन्य योगी जन श्रोत्र आदि समस्त इन्द्रियों को संयम रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं और दूसरे योगी लोग शब्दादि समस्त विषयों का इन्द्रिय रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं ।। २६ ।। Some offer, in the fire of self-control,

अध्याय ४ शलोक २६ Read More »

अध्याय ४ शलोक २५

अध्याय ४  शलोक २५ The Gita – Chapter 4 – Shloka 25 Shloka 25  दूसरे योगी जन देवताओं के पूजन रूप यज्ञ का ही भली भांति अनुष्ठान किया करते हैं और अन्य योगी जन पर ब्रह्म परमात्मा रूप अग्नि में अभेद दर्शन रूप यज्ञ के द्वारा ही आत्म-रूप यज्ञ का हवन किया करते हैं* ।। २५

अध्याय ४ शलोक २५ Read More »

Scroll to Top