श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय ६ शलोक ६

अध्याय ६  शलोक ६ The Gita – Chapter 6 – Shloka 6 Shloka 6  जिस जीवात्मा द्वारा मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह आप ही मित्र है, और जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिये वह आप ही शत्रु के सदृश शत्रुता में […]

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अध्याय ६ शलोक ५

अध्याय ६  शलोक ५ The Gita – Chapter 6 – Shloka 5 Shloka 5  अपने द्वारा अपना संसार समुद्र से उद्बार करे और अपने को अधोगति में न डाले ; क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है ।। ५ ।। Dear Arjuna, one should lift himself through his

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अध्याय ६ शलोक ४

अध्याय ६  शलोक ४ The Gita – Chapter 6 – Shloka 4 Shloka 4  जिस काल में न तो इन्द्रियों के भोगों में और न कर्मों में ही आसक्त्त होता है, उस काल में सर्व संकल्पों का त्यागी पुरुष योगारूढ़ कहा जाता है ।। ४ ।। When one is no longer attached to sensual objects or to

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अध्याय ६ शलोक ३

अध्याय ६  शलोक ३ The Gita – Chapter 6 – Shloka 3 Shloka 3  योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशील पुरुष के लिये योग की प्राप्ति में निष्काम भाव से कर्म करना ही  हेतु कहा जाता है और योगारूढ़ हो जाने पर उस योगारूढ़ पुरुष का जो सर्व संकल्पों का अभाव है, वही कल्याण

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अध्याय ६ शलोक २

अध्याय ६  शलोक २ The Gita – Chapter 6 – Shloka 2 Shloka 2  हे अर्जुन ! जिसको संन्यास ऐसा कहते हैं, उसी को तू योग जान । क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता ।। २ ।। O Arjuna, consider Sannyaas and Yoga as one and the same; just

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अध्याय ६  शलोक १

अध्याय ६  शलोक १ The Gita – Chapter 6 – Shloka 1 Shloka 1  श्रीभगवान् बोले —- जो पुरुष कर्म का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है ।। १

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अध्याय ५ शलोक २९

अध्याय ५  शलोक २९ The Gita – Chapter 5 – Shloka 29 Shloka 29  मेरा भक्त्त मुझको सब यज्ञ और तपों का भोगने वाला, सम्पूर्ण लोकों के ईश्वरों का भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण भूत प्राणियों का सुह्रद् अर्थात् स्वार्थ रहित दयालु और प्रेमी, ऐसा तत्त्व से जान कर शान्ति को प्राप्त होता है ।। २९ ।।

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अध्याय ५ शलोक २७,२८

अध्याय ५  शलोक २७,२८ The Gita – Chapter 5 – Shloka 27,28 Shloka 27,28  बाहर के विषय भोगों को न चिन्तन करता हुआ बाहर ही निकाल कर और नेत्रों की दृष्टि को भृकुटी के बीच में स्थित करके तथा नासिका में विचरने वाले प्राण और अपान वायु को सम करके जिसकी इन्द्रियाँ, मन और बुद्भि जीती

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अध्याय ५ शलोक २६

अध्याय ५  शलोक २६ The Gita – Chapter 5 – Shloka 26 Shloka 26  काम क्रोध से रहित, जीते हुए चित्त वाले परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किये हुए ज्ञानी पुरुषों के लिये सब ओर से शान्त परब्रह्म परमात्मा ही परिपूर्ण हैं ।। २६ ।। O Arjuna, all of those wise men (Yogis) who have learned to

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अध्याय ५ शलोक २५

अध्याय ५  शलोक २५ The Gita – Chapter 5 – Shloka 25 Shloka 25  जिनके सब पाप नष्ट हो गये हैं, जिनके सब संशय ज्ञान के द्वारा निवृत हो गये हैं, जो सम्पूर्ण प्राणियों के हित में रत हैं और जिनका जीता हुआ मन निश्चल भाव से परमात्मा में स्थित है, वे ब्रह्मवेत्ता पुरुष शान्त ब्रह्म

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