श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय ९ शलोक २१

अध्याय ९  शलोक २१ The Gita – Chapter 9 – Shloka 21 Shloka 21  वे उस विशाल स्वर्ग लोक को भोग कर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते है । इस प्रकार स्वर्ग के साधन रुप तीनो वेदो मे कहे हुए सकाम कर्म का आश्रय लेने वाले और भोगो की कामना वाले पुरुष […]

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अध्याय ९ शलोक २०

अध्याय ९  शलोक २० The Gita – Chapter 9 – Shloka 20 Shloka 20  तीनो वेदो मे विधान किये हुए सकाम कर्मो को करने वाले, सोम रस को पीने वाले, पाप रहित पुरुष* मुझको यज्ञो के द्वारा पूज कर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते है, वे पुरुष अपने पुण्यो के फल रुप स्वर्ग लोक को प्राप्त होकर

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अध्याय ९ शलोक १९

अध्याय ९  शलोक १९ The Gita – Chapter 9 – Shloka 19 Shloka 19  मै ही सुर्य रुप से तपता हूँ , वर्षा का आकर्षण करता हूँ , और उसे बरसाता हूँ । हे अर्जुन ! मै ही अमृत और मृत्त्यु हूँ और सत्त् असत्त् भी मै हूँ ॥१९॥ O Arjuna, I am the giver of

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अध्याय ९ शलोक १८

अध्याय ९  शलोक १८ The Gita – Chapter 9 – Shloka 18 Shloka 18  प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सब का स्वामी, शुभाशुभ को देखने वाला, सबका वास स्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पति प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान और अविनाशी कारण भी मै ही

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अध्याय ९ शलोक १७

अध्याय ९  शलोक १७ The Gita – Chapter 9 – Shloka 17 Shloka 17  इस सम्पूर्ण जगत्त् का धाता अर्थात धारण करने वाला एव कर्मॊ के फल देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद, और यजुर्वेद भी मै ही हू ।।१७॥ I am the sustainer, the father,mother, and grandfather of the

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अध्याय ९ शलोक १६

अध्याय ९  शलोक १६ The Gita – Chapter 9 – Shloka 16 Shloka 16  ऋतु मै हूँ, यज्ञ मै हूँ, स्वधा मै हूँ,  मन्त्र मै हूँ, धृत मै हूँ, अग्नि मै हूँ, और हवन रूप किया भी मै ही हूँ ।।१६॥ Arjuna, you must understand that I am everything in this world. I am the Vedic

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अध्याय ९ शलोक १५

अध्याय ९  शलोक १५ The Gita – Chapter 9 – Shloka 15 Shloka 15  दूसरे ज्ञान योगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्रा का ज्ञान यज्ञ के द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते है और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट् स्वरुप परमेश्वर का पृथक् भाव से उपासना करते है ॥१५॥ Several people

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अध्याय ९ शलोक १४

अध्याय ९  शलोक १४ The Gita – Chapter 9 – Shloka 14 Shloka 14  वे द्रढ निश्च्य वाले भक्क्त जन निरन्तर मेरे नाम और गुणो का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिये यत्न्न करते हुए और मुझको बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान मे युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते है

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अध्याय ९ शलोक १३

अध्याय ९  शलोक १३ The Gita – Chapter 9 – Shloka 13 Shloka 13  परन्तु हे कुन्ती पुत्र !देवी प्रक्रति के आश्रित महात्त्मा जन मुझको सब भुतो का सनातन कारण और नाशरहित अक्षर स्वरुप जान कर अनन्य मन से युक्त होकर निरन्तर भजते है ॥१३॥ But, Arjuna, always heed that all saints, Yogis and wise men,

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अध्याय ९ शलोक १२

अध्याय ९  शलोक १२ The Gita – Chapter 9 – Shloka 12 Shloka 12  वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वालॆ विक्षिप्त चित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रक्रति को ही धारण किये रहते है ॥१२॥ The Lord spoke onward: These ignorant people with futile hopes, vain actions (Karma), and false knowledge (spiritual and

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