श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १० शलोक १९

अध्याय १० शलोक १९ The Gita – Chapter 10 – Shloka 19 Shloka 19  श्रीभगवान् बोले—हे कुरूश्रेष्ठ ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियां हैं, उनको तेरे लिये प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अन्त नहीं है ।। १९ ।। The Blessed Lord said: You are blessed O Best of the KURUS; hence I will […]

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अध्याय १० शलोक १८

अध्याय १० शलोक १८ The Gita – Chapter 10 – Shloka 18 Shloka 18  हे जनार्दन ! अपनी योग शक्त्ति को और विभूति को फिर भी विस्तार पूर्वक कहिये; क्योकि आपके अमृत मय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात् सुनने की उत्कण्ठा बनी ही रहती है ।। १८ ।। Arjuna demanded further: Lord Krishna,

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अध्याय १० शलोक १७

अध्याय १० शलोक १७ The Gita – Chapter 10 – Shloka 17 Shloka 17  हे योगेश्वर ! मै किस प्रकार निरन्तर चिन्तन करता हुआ आपको जानूं और हे भगवन् ! आप किन-किन भावों में मेरे द्बारा चिन्तन करने योग्य हैं ? ।। १७ ।। Lord Krishna, please, fully describe to me, how I shall truly

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अध्याय १० शलोक १६

अध्याय १० शलोक १६ The Gita – Chapter 10 – Shloka 16 Shloka 16  इसलिये आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को सम्पूर्णता से कहने में समर्थ हैं, जिन विभूतियों के द्बारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करके स्थित हैं ।। १६।। Therefore, dear Lord, only You alone can describe to me,the divine glories

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अध्याय १० शलोक १५

अध्याय १० शलोक १५ The Gita – Chapter 10 – Shloka 15 Shloka 15  हें भूतों को उत्पन्न करने वाले ! हे भूतों के ईश्वर ! हे देवों के देव ! जगत्त् के स्वामी ! हे पुरुषोतम ! आप स्वयं ही अपने से अपने को जानते हैं ।।१५।। Arjuna continued: O Krishna, Originator of all,

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अध्याय १० शलोक १४

अध्याय १० शलोक १४ The Gita – Chapter 10 – Shloka 14 Shloka 14  हे केशव ! जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं, इस सब को मैं सत्य मानता हूँ । हे भगवन् ! आपके लीलामय, स्वरूप को न तो दानव जानते हैं और न देवता ही ।। १४ ।। Lord Krishna, I

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अध्याय १० शलोक १२,१३

अध्याय १० शलोक १२,१३ The Gita – Chapter 10 – Shloka 12,13 Shloka 12,13  अर्जुन बोले—-आप परम ब्रह्रा, परम धाम और परम पवित्र है ; क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन दिव्य पुरुष एवं देवों का भी आदिदेव, अजन्मा और सर्व व्यापी कहते हैं, वैसे ही देवषि नारद तथा असित और देवल ऋषि तथा महषि व्यास

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अध्याय १० शलोक ११

अध्याय १० शलोक ११ The Gita – Chapter 10 – Shloka 11 Shloka 11  हे अर्जुन ! उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिये उनके अन्तः -करण में स्थित हुआ मै स्वयं ही उनके अज्ञान जनित अन्धकार को प्रकाश मय तत्व ज्ञान रूप दीपक के द्बारा नष्ट कर देता हूँ ।। ११ ।। While dwelling in the hearts

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अध्याय १० शलोक १०

अध्याय १० शलोक १० The Gita – Chapter 10 – Shloka 10 Shloka 10  उन निरन्तर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेम पूर्वक भजने वाले भक्त्तों को मैं वह. तत्व ज्ञान रुप योग देता हूँ. जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं ।। १० ।। My true devotees are constantly attached to ME

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अध्याय १० शलोक ९

अध्याय १० शलोक ९ The Gita – Chapter 10 – Shloka 9 Shloka 9  निरन्तर मुझ मे मन लगाने वाले और मुझ में ही प्राणो को अर्पण करने वाले* भक्त्त जन मेरी भक्त्ति की चर्चा के द्भारा आपस मे मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरन्तर

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