श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय ११ शलोक १८

अध्याय ११ शलोक १८ The Gita – Chapter 11 – Shloka 18 Shloka 18  आप ही जानने योग्य परम अक्षर अर्थात् परब्रह्म परमात्मा हैं, आप ही इस जगत् के परम आश्रय हैं, आप ही अनादि धर्म के रक्षक है और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष हैं । ऐसा मेरा मत हैं ।। १८ ।। You […]

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अध्याय ११ शलोक १७

अध्याय ११ शलोक १७ The Gita – Chapter 11 – Shloka 17 Shloka 17  आप को मैं मुकुट युक्त्त, गदा युक्त्त और चक्र युक्त्त तथा सब ओर से प्रकाशमान तेज के पुञ्ज, प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सद्र्श ज्योति युक्त्त, कठिनता से देखे जाने योग्य और सब ओर से अप्रमेय स्वरूप देखता हूँ ।।  ।।

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अध्याय ११ शलोक १६

अध्याय ११ शलोक १६ The Gita – Chapter 11 – Shloka 16 Shloka 16  हे सम्पूर्ण विश्व के स्वामिन् ! आपको अनेक भुजा, पेट, मुख, और नेत्रों से युक्त्त तथा सब ओर से अनन्त रूपों वाला देखता हूँ । हे विश्व रूप ! मैं आपके न अन्त को देखता हूँ न मध्य को, और न

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अध्याय ११ शलोक १५

अध्याय ११ शलोक १५ The Gita – Chapter 11 – Shloka 15 Shloka 15  अर्जुन बोले—–हे देव ! मै आपके शरीर में सम्पूर्ण देवों कों तथा अनेक भूतों के समुदायों कों, कमल के आसन पर विराजित ब्रह्मा को, महादेव को और सम्पूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पो को देखता हूँ ।। १५ ।। O Lord,

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अध्याय ११ शलोक १४

अध्याय ११ शलोक १४ The Gita – Chapter 11 – Shloka 14 Shloka 14  उसके अनन्तर वे आश्चर्य से चकित और पुलकित शरीर अर्जुन प्रकाश मय विश्व रूप परमात्मा को श्रद्धा-भक्त्तिसहित सिर से प्रणाम करके हाथ जोड़ कर बोले —-।। १४ ।। After seeing this vision, Arjuna was extremely amazed and left in awe. He

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अध्याय ११ शलोक १३

अध्याय ११ शलोक १३ The Gita – Chapter 11 – Shloka 13 Shloka 13  पाण्डु पुत्र अर्जुन ने उस समय अनेक प्रकार से विभक्त्त अर्थात् पृथक्-पृथक् सम्पूर्ण जगत् को देवों के देव श्रीकृष्ण भगवान् के उस शरीर में एक जगह स्थित देखा ।।  ।। Here, the Pandava (Arjuna) saw the whole universe in its several

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अध्याय ११ शलोक १२

अध्याय ११ शलोक १२ The Gita – Chapter 11 – Shloka 12 Shloka 12  आकाश में हजार सूर्यो के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्व रूप परमात्मा के प्रकाश के सद्र्श कदाचित् ही हो ।। १२ ।। The divine radiance and beautiful light that was being emmitted by

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अध्याय ११ शलोक १०,११

अध्याय ११ शलोक १०,११ The Gita – Chapter 11 – Shloka 10,11 Shloka 10,11  अनेक मुख और नेत्रों से युक्त्त, अनेक अद्भ्रुत दर्शनों वाले, बहुत से दिव्य भूषणों से युक्त्त और बहुत से दिव्य शस्त्रों को हाथों में उठाये हुए, दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुए और दिव्य गन्ध का सारे शरीर में लेप किये हुए, सब

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अध्याय ११ शलोक ९

अध्याय ११ शलोक ९ The Gita – Chapter 11 – Shloka 9 Shloka 9  संजय बोले — हे राजन् ! महा योगेश्वर और सब पापों के नाश करने वाले भगवान् ने इस प्रकार कहकर उसके पश्चात् अर्जुन को परम ऐश्वर्य युक्त्त दिव्य स्वरूप दिखलाया ।। ९ ।। Sanjaya (narrator of the Geeta), further explained to

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अध्याय ११ शलोक ८

अध्याय ११ शलोक ८ The Gita – Chapter 11 – Shloka 8 Shloka 8  परन्तु मुझको तू इन अपने प्राकृत नेत्रों द्वारा देखने में निःसंदेह समर्थ नहीं है ; इसी से मैं तुझे दिव्य अर्थात् अलौकिक चक्षु देता हूँ ; इससे तू मेरी ईश्वरीय योग शक्त्ति को देख ।। ८ ।। However, Dear Arjuna, understand

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