श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय ११ शलोक ३९

अध्याय ११ शलोक ३९ The Gita – Chapter 11 – Shloka 39 Shloka 39  आप वायु, यमराज ; अग्नि, वरुण, चन्द्रमा, प्रजा के स्वामी ब्रह्मा और ब्रह्मा के भी पिता हैं । आपके लिये हजारों बार नमस्कार ! नमस्कार हो !! आपके लिये फिर भी बार-बार नमस्कार ! नमस्कार !! ।। ३९।। You are the […]

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अध्याय ११ शलोक ३८

अध्याय ११ शलोक ३८ The Gita – Chapter 11 – Shloka 38 Shloka 38  आप आदि देव और सनातन पुरुष हैं, आप इस जगत् के परम आश्रय और जानने वाले तथा जानने योग्य और परम धाम हैं । हे अनन्त रूप ! आप से यह सब जगत् व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण हैं ।। ३८ ।। You

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अध्याय ११ शलोक ३७

अध्याय ११ शलोक ३७ The Gita – Chapter 11 – Shloka 37 Shloka 37  हे महात्मन् ! ब्रह्मा के भी आदिकर्ता और सबसे बड़े आप के लिये वे कैसे नमस्कार न करें ; क्योकि हे अनन्त ! हे देवेश ! हे जगन्निवास ! जो सत्, असत् और उनसे परे अक्षर अर्थात् सच्चिदानन्धन ब्रह्मा है वह

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अध्याय ११ शलोक ३६

अध्याय ११ शलोक ३६ The Gita – Chapter 11 – Shloka 36 Shloka 36  अर्जुन बोले—-हे अन्तर्यामिन् ! यह योग्य ही है की आपके नाम, गुण और प्रभाव के कीर्तन से जगत् अति हर्षित हो रहा है और अनुराग को भी प्राप्त हो रहा है तथा भयभीत राक्षस लोग दिशाओं में भाग रहे है और

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अध्याय ११ शलोक ३५

अध्याय ११ शलोक ३५ The Gita – Chapter 11 – Shloka 35 Shloka 35  संजय बोले —– केशव भगवान् के इस वचन को सुन कर मुकुट धारी अर्जुन हाथ जोड़ कर काँपता हुआ नमस्कार करके, फिर भी अत्यन्त भयभीत होकर प्रणाम करके भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति गदगद वाणी से बोले —- ।। ३५ ।। Sanjaya

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अध्याय ११ शलोक ३४

अध्याय ११ शलोक ३४ The Gita – Chapter 11 – Shloka 34 Shloka 34  द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह तथा जयद्रथ और कर्ण तथा और भी बहुत से मेरे द्वारा मारे हुए शूर वीर, योद्धाओं को तू मार । भय मत कर । नि:संदेह तू युद्ध में बैरियों को जीतेगा । इसलिये युद्ध कर ।। ३४

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अध्याय ११ शलोक ३३

अध्याय ११ शलोक ३३ The Gita – Chapter 11 – Shloka 33 Shloka 33  अतएव तू उठ ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीत कर धन-धान्य सम्पन्न राज्य को भोग । ये सब शूर वीर पहले ही से मेरे द्वारा मारे हुए हैं  । हे सव्यसाचिन् ! तू तो केवल निमित्त मात्र बन जा

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अध्याय ११ शलोक ३२

अध्याय ११ शलोक ३२ The Gita – Chapter 11 – Shloka 32 Shloka 32  श्रीभगवान् बोले— मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ । इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिये प्रवृत हुआ हूँ । इसलिये  जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित योद्धा लोग हैं, वे सब तेरे बिना भी

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अध्याय ११ शलोक ३१

अध्याय ११ शलोक ३१ The Gita – Chapter 11 – Shloka 31 Shloka 31 मुझे बतलाइये कि आप उग्र रूप वाले कौन हैं ? हे देवों में श्रेष्ट ! आपको नमस्कार हो । आप प्रसन्न होईये । आदि पुरुष आपको मैं विशेष रूप से जानना चाहता हूँ ; क्योंकि मैं आपकी प्रवृति को नहीं जानता

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अध्याय ११ शलोक ३०

अध्याय ११ शलोक ३० The Gita – Chapter 11 – Shloka 30 Shloka 30  आप उन सम्पूर्ण लोकों को प्रज्वलित मुखों द्वारा ग्रास करते हुए सब ओर से बार- बार चाट रहे है, हे विष्णो ! आपका उग्र प्रकाश सम्पूर्ण जगत् को तेज के द्वारा परिपूर्ण करके तपा रहा हैं ।। ३० ।। The large fires that

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