श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय ११ शलोक ५०

अध्याय ११ शलोक ५० The Gita – Chapter 11 – Shloka 50 Shloka 50  संजय बोले ——-वासुदेव भगवान् ने अर्जुन के प्रति इस प्रकार कहकर फिर वैसे ही अपने चतुर्भुज रूप को दिखलाया और फिर महात्मा श्रीकृष्ण ने सौम्य मूर्ति होकर इस भयभीत अर्जुन को धीरज दिया ।। ५० ।। Sanjaya further recounted: Having said […]

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अध्याय ११ शलोक ४९

अध्याय ११ शलोक ४९ The Gita – Chapter 11 – Shloka 49 Shloka 49  मेरे इस प्रकार के इस विकराल रूप को देख कर तुझको व्याकुलता नहीं होनी चाहिये और मूढ़ भाव भी नहीं होना चाहिये । तू भय रहित और प्रीति युक्त्त मन वाला होकर उसी मेरे इस शंख-चक्र-गदा-पद्मयुक्त चतुर्भुज रूप को फिर देख

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अध्याय ११ शलोक ४८

अध्याय ११ शलोक ४८ The Gita – Chapter 11 – Shloka 48 Shloka 48  हे अर्जुन ! मनुष्य लोक में इस प्रकार विश्व रूप वाला मैं न वेद और यज्ञों के अध्ययन से, न दान से, न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही तेरे अतिरिक्त दूसरे के द्वारा देखा जा सकता हूँ ।।

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अध्याय ११ शलोक ४७

अध्याय ११ शलोक ४७ The Gita – Chapter 11 – Shloka 47 Shloka 47  श्रीभगवान् बोले ——-हे अर्जुन ! अनुग्रह पूर्वक मैंने अपनी योग शक्त्ति के प्रभाव से यह मेरा परम तेजोमय, सबका आदि और सीमा रहित विराट् रूप तुझको दिखलाया है, जिसे तेरे अतिरिक्त दूसरे किसी ने पहले नहीं देखा था ।। ४७ ।।

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अध्याय ११ शलोक ४६

अध्याय ११ शलोक ४६ The Gita – Chapter 11 – Shloka 46 Shloka 46  मैं वैसे ही आपको मुकुट धारण किये हुए तथा गदा और चक्र हाथ में लिये हुए देखना चाहता हूँ, इसलिये हे विश्व रूप ! हे सह्स्त्र्बाहो ! आप उसी चतुर्भुज रूप से प्रकट होइये  ।। ४६ ।। Dear Lord, I wish

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अध्याय ११ शलोक ४५

अध्याय ११ शलोक ४५ The Gita – Chapter 11 – Shloka 45 Shloka 45  मैं पहले न देखे हुए आपके इस आश्चर्य मय रूप को देख कर हर्षित हो रहा हूँ और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा हैं ; इसलिये आप उस अपने चतुर्भुज विष्णु रूप को ही मुझे दिखलाइये !

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अध्याय ११ शलोक ४४

अध्याय ११ शलोक ४४ The Gita – Chapter 11 – Shloka 44 Shloka 44  अतएव हे प्रभो ! मैं शरीर को भली भांति चरणों में निवेदित कर प्रणाम करके स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना करता हूँ, हे देव ! पिता जैसे पुत्र के, सखा जैसे सखा के और पति

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अध्याय ११ शलोक ४३

अध्याय ११ शलोक ४३ The Gita – Chapter 11 – Shloka 43 Shloka 43  आप इस चराचर जगत् के पिता और सबसे बड़े गुरु एवं अति पूजनीय हैं, हे अनुपम प्रभाव वाले ! तीनों लोकों में आपके समान भी दूसरा कोई नहीं है फिर अधिक तो कैसे हो सकता हैं ।। ४३ ।। Arjuna continued

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अध्याय ११ शलोक ४१,४२

अध्याय ११ शलोक ४१,४२ The Gita – Chapter 11 – Shloka 4142 Shloka 4142  आपके इस प्रभाव को न जानते हुए, आप मेरे सखा हैं ऐसा मानकर प्रेम से अथवा प्रमाद से भी मैने ‘हे कृष्ण !,’ हे यादव !,’ हे सखे !’ इस प्रकार जो कुछ बिना सोचे समझे ह्ठात् कहा हैं और हे

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अध्याय ११ शलोक ४०

अध्याय ११ शलोक ४० The Gita – Chapter 11 – Shloka 40 Shloka 40  हे अनन्त सामर्थ्य वाले ! आपके लिये आगे से और पीछे से भी नमस्कार ! हे सर्वात्मन् ! आपके लिये सब ओर से ही नमस्कार हो । क्योंकि अनन्त पराक्रमशाली आप समस्त संसार को व्याप्त किये हुए है, इससे आप ही

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