श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १२ शलोक ६

अध्याय १२ शलोक ६ The Gita – Chapter 12 – Shloka 6 Shloka 6  परन्तु जो मेरे परायण रहने वाले भक्त्त जन सम्पूर्ण कर्मो को मुझ में अर्पण करके मुझ सगुण रूप परमेश्वर को ही अनन्य भक्त्तियों से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं ।। ६ ।। But those who worship Me, dedicating all actions […]

अध्याय १२ शलोक ६ Read More »

अध्याय १२ शलोक ५

अध्याय १२ शलोक ५ The Gita – Chapter 12 – Shloka 5 Shloka 5  उन सच्चिदानन्दधन निराकार ब्रह्मा में आसक्त्त चित्त वाले पुरुषों के साधन में परिश्रम विशेष है ; क्योंकि देहाभिमानियों के द्वारा अव्यक्त्त विषयक गति दुःख पूर्वक प्राप्त की जाती हैं  ।। ५ ।। However, the worship of God without form is very

अध्याय १२ शलोक ५ Read More »

अध्याय १२ शलोक ३,४

अध्याय १२ शलोक ३,४ The Gita – Chapter 12 – Shloka 3,4 Shloka 3,4  परन्तु जो पुरुष इन्द्रियों के समुदाय को भली प्रकार वश में करके मन बुद्भि से परे, सर्वव्यापी अकथनीय स्वरूप और सदा एक रस रहने वाले, नित्य, अचल, निराकार’ अविनाशी, सच्चिदानन्दधन ब्रह्मा को निरन्तर एकीभाव से ध्यान करते हुए भजते हैं, वे

अध्याय १२ शलोक ३,४ Read More »

अध्याय १२ शलोक २

अध्याय १२ शलोक २ The Gita – Chapter 12 – Shloka 2 Shloka 2  श्रीभगवान् बोले —–मुझ में मन को एकाग्र करके निरन्तर मेरे भजन ध्यान में लगे हुए* जो भक्त्त जन अतिशय श्रेष्ट श्रद्बा से युक्त्त होकर मुझ सगुण रूप परमेश्वर को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं ।।

अध्याय १२ शलोक २ Read More »

अध्याय १२ शलोक १

अध्याय १२ शलोक १ The Gita – Chapter 12 – Shloka 1 Shloka 1  अर्जुन बोले ——-जो अनन्य प्रेमी भक्त्त जन पुर्वोक्त्त प्रकार से निरन्तर आपके भजन ध्यान में लगे रहकर आप सगुण रूप परमेश्वर को और दूसरे जो केवल अविनाशी सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्मा को ही अति श्रेष्ट भाव से भजते हैं ——उन दोनों प्रकार

अध्याय १२ शलोक १ Read More »

अध्याय ११ शलोक ५५

अध्याय ११ शलोक ५५ The Gita – Chapter 11 – Shloka 55 Shloka 55  हे अर्जुन ! जो पुरुष केवल मेरे ही लिये सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को करने वाला हैं, मेरे परायण है, मेरा भक्त्त हैं, आसक्तिरहित है और सम्पूर्ण भूत प्राणियों में वैर भाव से रहित है वह अनन्य भक्ति युक्त पुरुष मुझको ही

अध्याय ११ शलोक ५५ Read More »

अध्याय ११ शलोक ५४

अध्याय ११ शलोक ५४ The Gita – Chapter 11 – Shloka 54 Shloka 54  परन्तु हे परंतप अर्जुन ! अनन्य भक्क्ति के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुज रूप वाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिये, तत्व से जानने के लिये तथा प्रवेश करने के लिये अर्थात् एकीभाव से प्राप्त होने के लिये भी शक्य हूँ ।। ५४

अध्याय ११ शलोक ५४ Read More »

अध्याय ११ शलोक ५३

अध्याय ११ शलोक ५३ The Gita – Chapter 11 – Shloka 53 Shloka 53  जिस प्रकार तुमने मुझको देखा है —–इस प्रकार चतुर्भुज रूप वाला मैं न वेदों से, न तप से, न दान से और न यज्ञ से ही देखा जा सकता हूँ ।। ५३ ।। Not even with such religious acts as ritual

अध्याय ११ शलोक ५३ Read More »

अध्याय ११ शलोक ५२

अध्याय ११ शलोक ५२ The Gita – Chapter 11 – Shloka 52 Shloka 52  श्रीभगवान् बोले ——मेरा जो चतुर्भुज रूप तुमने देखा हैं, यह सुदुर्दर्श है अर्थात् इसके दर्शन बड़े ही दुर्लभ हैं । देवता भी सदा इस रूप के दर्शन की आकांक्षा करते रहते हैं  ।। ५२ ।। The Blessed lord said: Dear Arjuna,

अध्याय ११ शलोक ५२ Read More »

अध्याय ११ शलोक ५१

अध्याय ११ शलोक ५१ The Gita – Chapter 11 – Shloka 51 Shloka 51 अर्जुन बोले —–हे जनार्दन ! आपके इस अति शान्त मनुष्य रूप को देखकर अब मैं स्थिर चित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त हो गया हूँ ।। ५१ ।। Arjuna responded in relief: Now that I see your

अध्याय ११ शलोक ५१ Read More »

Scroll to Top