श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १२ शलोक १७

अध्याय १२ शलोक १७ The Gita – Chapter 12 – Shloka 17 Shloka 17  जो न कभी हर्षित होता है, न द्बेष करता हैं, न शोक करता हैं, न कामना करता हैं तथा जो शुभ और अशुभ कर्मो का संपूर्ण त्यागी हैं, वह भक्त्ति युक्त्त पुरुष मुझको प्रिय हैं ।। १७ ।। He who neither […]

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अध्याय १२ शलोक १६

अध्याय १२ शलोक १६ The Gita – Chapter 12 – Shloka 16 Shloka 16  जो पुरुष आकांक्षा से रहित, बाहर-भीतर से शुद्ध, चतुर, पक्षपात से रहित और दुःखों से छूटा हुआ हैं — वह सब आरम्भों का त्यागी मेरा भक्त्त मुझको प्रिय हैं ।। १६ ।। He who is free from desires, who is pure,

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अध्याय १२ शलोक १५

अध्याय १२ शलोक १५ The Gita – Chapter 12 – Shloka 15 Shloka 15  जिससे कोई भी जीव उद्बेग को प्राप्त नहीं होता और जो स्वयं भी किसी उद्बेग को प्राप्त नहीं होता, तथा जो हर्ष, अमर्ष, भय और उद्बेगादि से रहित हैं वह भक्त मुझ को प्रिय हैं ।। १५ ।। He who does

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अध्याय १२ शलोक १३,१४

अध्याय १२ शलोक १३,१४ The Gita – Chapter 12 – Shloka 13,14 Shloka 13,14  जो पुरुष सब भूतों द्बेष-भाव से रहित, स्वार्थ रहित सबका प्रेमी और हेतुरहित दयालु हैं तथा ममता से रहित, अहंकार से रहित सुख-दुःख़ों की प्राप्ति में सम और क्षमावान् हैं अर्थात् अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला हैं ;

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अध्याय १२ शलोक १२

अध्याय १२ शलोक १२ The Gita – Chapter 12 – Shloka 12 Shloka 12  मर्म को न जान कर किये हुए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ट है, ज्ञान से मुझ परमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ट है और ध्यान से भी सब कर्मो के फल का त्याग श्रेष्ट है ; क्योंकि त्याग से तत्काल ही परम

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अध्याय १२ शलोक ११

अध्याय १२ शलोक ११ The Gita – Chapter 12 – Shloka 11 Shloka 11  यदि मेरी प्राप्ति रूप योग के आश्रित होकर उपर्युक्त्त साधन को करने में भी तू असमर्थ है तो मनबुद्भि आदि पर विजय प्राप्त करने वाला होकर सब कर्मो के फल का त्याग कर ।। ११ ।। If you cannot do actions

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अध्याय १२ शलोक १०

अध्याय १२ शलोक १० The Gita – Chapter 12 – Shloka 10 Shloka 10  यदि तू उपर्युक्त्त अभ्यास में भी असमर्थ है तो केवल मेरे लिये कर्म करने के ही परायण हो जा । इस प्रकार मेरे निमित्त कर्मो को करता हुआ भी मेरी प्राप्ति रूप सिद्भि को ही प्राप्त होगा ।। १० ।। If

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अध्याय १२ शलोक ९

अध्याय १२ शलोक ९ The Gita – Chapter 12 – Shloka 9 Shloka 9  यदि तू मन को मुझ में अचल स्थापन करने के लिये समर्थ नहीं है तो हे अर्जुन ! अभ्यास रूप योग के द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिये इच्छा कर ।। ९ ।। If you are not able to set your

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अध्याय १२ शलोक ८

अध्याय १२ शलोक ८ The Gita – Chapter 12 – Shloka 8 Shloka 8  मुझ में मन को लगा और मुझ में ही बुद्भि को लगा ; इसके उपरान्त तू मुझ में ही निवास करेगा, इसमें कुछ भी संशय नहीं हैं ।। ८ ।। Therefore, fix your mind on Me alone, let your thoughts reside

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अध्याय १२ शलोक ७

अध्याय १२ शलोक ७ The Gita – Chapter 12 – Shloka 7 Shloka 7  हे अर्जुन ! उन मुझ में चित्त लगाने वाले प्रेमी भक्त्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार समुद्र से उद्बार करने वाला होता हूँ ।। ७ ।। These worshippers’ thoughts are set on Me; hence O Arjuna, I become their

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