श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १३ शलोक १७

अध्याय १३ शलोक १७ The Gita – Chapter 13 – Shloka 17 Shloka 17  वह परब्रह्म ज्योतियों का भी ज्योति एंव माया से अत्यन्त परे कहा जाता है । वह परमात्मा बोध स्वरूप, जानने के योग्य एंव तत्व ज्ञान से प्राप्त करने योग्य है और सबके ह्रदय में विशेष रूप से स्थित है ।। १७ […]

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अध्याय १३ शलोक १६

अध्याय १३ शलोक १६ The Gita – Chapter 13 – Shloka 16 Shloka 16  वह परमात्मा विभाग रहित एक रूप से आकाश के सद्र्श परिपूर्ण होने पर भी चराचर सम्पूर्ण भूतों में विभक्त्त सा स्थित प्रतीत होता है ; तथा वह जानने योग्य परमात्मा विष्णु रूप से भूतों को धारण-पोषण करने वाला और रुद्र रूप संहार करने वाला

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अध्याय १३ शलोक १५

अध्याय १३ शलोक १५ The Gita – Chapter 13 – Shloka 15 Shloka 15  वह चराचर सब भूतों के बाहर-भीतर परिपूर्ण है और चर-अचर रूप भी वही है ; और वह सूक्ष्म होने से अविज्ञेय है तथा अति समीप में और दूर में भी स्थित वही है ।। १५ ।। He is outside and inside

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अध्याय १३ शलोक १४

अध्याय १३ शलोक १४ The Gita – Chapter 13 – Shloka 14 Shloka 14  वह सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयों को जानने वाला है, परन्तु वास्तव में सब इन्द्रियों से रहित है तथा आसक्ति रहित होने पर भी सबका धारण-पोषण करने वाला और निर्गुण होने पर भी गुणों को भोगने वाला है ।। १४ ।। Shining

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अध्याय १३ शलोक १३

अध्याय १३ शलोक १३ The Gita – Chapter 13 – Shloka 13 Shloka 13  वह सब ओर हाथ-पैर वाला, सब ओर नेत्र, सिर और मुख वाला तथा सब ओर कान वाला है । क्योंकि वह संसार में सब को व्याप्त करके स्थित है ।। १३ ।। With hands and feet everywhere, with eyes, heads and mouths

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अध्याय १३ शलोक १२

अध्याय १३ शलोक १२ The Gita – Chapter 13 – Shloka 12 Shloka 12  जो जानने योग्य है तथा जिसको जानकर मनुष्य परमानन्द को प्राप्त होता है, उसको भली भाँति कहूँगा । वह अनादि वाला परम ब्रह्म न सत् ही कहा जाता है, न असत् ही ।। १२ ।। I shall now state that which

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अध्याय १३ शलोक ११

अध्याय १३ शलोक ११ The Gita – Chapter 13 – Shloka 11 Shloka 11  अध्यात्म ज्ञान में नित्य स्थिति और तत्व ज्ञान के अर्थ रूप परमात्मा को ही देखना —–यह सब ज्ञान है और जो इससे विपरीत है,वह अज्ञान है —-ऐसा कहा है ।। ११ ।। Constant awareness of the Self (self-knowledge),perception of the end

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अध्याय १३ शलोक १०

अध्याय १३ शलोक १० The Gita – Chapter 13 – Shloka 10 Shloka 10  मुझ परमेश्वर में अनन्य योग के द्वारा अव्यभिचारिणी भक्त्ति तथा एकान्त और शुद्ध देश में रहने का स्वभाव और विषयासक्त्त मनुष्यों के समुदाय में प्रेम का न होना ।। १० ।। Unflinching devotion to Me by the Yoga of non-separation, resort

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अध्याय १३ शलोक ९

अध्याय १३ शलोक ९ The Gita – Chapter 13 – Shloka 9 Shloka 9  पुत्र, स्त्री, घर और धन आदि में आसक्ति का अभाव, ममता का न होना तथा प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना ।। ९ ।। Non-attachment, non-identification of self with son, wife, house, and the rest,

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अध्याय १३ शलोक ८

अध्याय १३ शलोक ८ The Gita – Chapter 13 – Shloka 8 Shloka 8  इस लोक और परलोक के सम्पूर्ण भोगों में आसक्ति का अभाव और अहंकार का भी अभाव, जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में दुःख और दोषों का बार-बार विचार करना ।। ८ ।। Indifference to the sense-objects (such as sound, touch,

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