अध्याय १४ शलोक १३
अध्याय १४ शलोक १३ The Gita – Chapter 14 – Shloka 13 Shloka 13 हे अर्जुन ! तमोगुण के बढ़ने पर अन्त:करण और इन्द्रियों में अप्रकाश, कर्तव्य कर्मों में अप्रवृति और प्रमाद अर्थात् व्यर्थ चेष्टा और निद्रादि, अन्त:करण की मोहिनी वृतियाँ — ये सब ही उत्पन्न होते हैं ।। १३ ।। Dullness, inactivity, laziness, negligence, […]