श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १४ शलोक २३

अध्याय १४ शलोक  २३ The Gita – Chapter 14 – Shloka 23 Shloka 23  जो साक्षी के सदृश स्थित हुआ गुणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता और गुण ही गुणों में बरतते है —-ऐसा समझता हुआ जो सच्चिदानन्दधन परमात्मा में एकीभाव से स्थिर रहता है एवं उस स्थिति से कभी विचलित नहीं होता […]

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अध्याय १४ शलोक २२

अध्याय १४ शलोक  २२ The Gita – Chapter 14 – Shloka 22 Shloka 22  श्रीभगवान् बोले —–हे अर्जुन ! जो पुरुष सत्वगुण के कार्य रूप प्रकाश को, और रजोगुण के कार्य रूप प्रवृति को तथा तमोगुण के कार्य रूप मोह को भी न तो प्रवृत्त होने पर न तो उनसे करता है और न निवृत्त

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अध्याय १४ शलोक २१

अध्याय १४ शलोक  २१ The Gita – Chapter 14 – Shloka 21 Shloka 21  अर्जुन बोले ! इन तीनों गुणों से अतीत पुरुष किन-किन लक्षणों से युक्त्त होता है और किस प्रकार के आचरणों वाला होता है ; तथा हे प्रभो ! मनुष्य किस उपाय से इन तीनों गुणों से अतीत होता है ।। २१ ।।

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अध्याय १४ शलोक २०

अध्याय १४ शलोक २० The Gita – Chapter 14 – Shloka 20 Shloka 20  यह पुरुष शरीर की, उत्पत्ति के कारण इन तीनो गुणों को उल्लघन करके जन्म, मृत्यु, वृद्बावस्था और सब प्रकार के दु:खों से मुक्त्त हुआ परमानन्द को प्राप्त होता है ।। २० ।। A person whose soul has risen above these three

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अध्याय १४ शलोक १९

अध्याय १४ शलोक १९ The Gita – Chapter 14 – Shloka 19 Shloka 19  जिस समय द्रष्टा तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता और तीनो गुणों से अत्यन्त परे सच्चिदानन्धन स्वरूप मुझ परमात्मा को तत्व से जानता है, उस समय वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है ।। १९ ।। When

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अध्याय १४ शलोक १८

अध्याय १४ शलोक १८ The Gita – Chapter 14 – Shloka 18 Shloka 18  सत्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकों को जाते हैं ; रजोगुण में स्थित राजस पुरुष मध्य में अर्थात् मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्य रूप निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित तामस पुरुष अधोगति अर्थात् कीट, पशु

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अध्याय १४ शलोक १७

अध्याय १४ शलोक १७ The Gita – Chapter 14 – Shloka 17 Shloka 17  सत्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है और रजोगुण से निस्संदेह लोभ तथा तमोगुण से प्रमाद और मोह उत्पन्न होते है और अज्ञान भी होता है ।। १७ ।। From the SATTVIC state of human nature one receives wisdom, from the RAJAS

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अध्याय १४ शलोक १६

अध्याय १४ शलोक १६ The Gita – Chapter 14 – Shloka 16 Shloka 16  श्रेष्ठ कर्म का तो सात्विक अर्थात् सुख, ज्ञान और वैराग्यादि निर्मल फल कहा है ; राजस कर्म का फल दुःख एवं तामस कर्म का फल अज्ञान कहा है ।। १६ ।। The purity of SATTVA is characterized by the rewards that

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अध्याय १४ शलोक १५

अध्याय १४ शलोक १५ The Gita – Chapter 14 – Shloka 15 Shloka 15  रजोगुण के बढ़ने पर मृत्यु को प्राप्त होकर कर्मों की आसक्ति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ; तथा तमोगुण के बढ़ने पर मरा हुआ मनुष्य कीट, पशु आदि मूढ़ योनियों में उत्पन्न होता है ।। १५ ।। Should a person

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अध्याय १४ शलोक १४

अध्याय १४ शलोक १४ The Gita – Chapter 14 – Shloka 14 Shloka 14  जब यह गुण सत्वगुण की वृद्भि में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब तो उत्तम कार्य करने वालों के निर्मल दिव्य स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होता है ।। १४ ।। If a being is SATTVIC at the time that his soul

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