श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १५ शलोक  १६

अध्याय १५ शलोक  १६ The Gita – Chapter 15 – Shloka 16 Shloka 16  इस संसार में नाशवान् और अविनाशी भी ये दो प्रकार के पुरुष हैं । इनमे सम्पूर्ण भूत प्राणियों के शरीर तो नाशवान् और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है ।। १६ ।। There are two souls or spirits in this universe O […]

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अध्याय १५ शलोक  १५

अध्याय १५ शलोक  १५ The Gita – Chapter 15 – Shloka 15 Shloka 15  मैं ही सब प्राणियों के ह्रदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझ से ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है और सब वेदों द्वारा मैं ही जानने के योग्य हूँ तथा वेदान्त का कर्ता और वेदों को जानने वाला

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अध्याय १५ शलोक  १४

अध्याय १५ शलोक  १४ The Gita – Chapter 15 – Shloka 14 Shloka 14  मैं ही सब प्राणियों के शरीर के स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त्त वैश्वानर अग्निरूप होकर चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ ।। १४ ।। O Arjuna, at the same time, I also become the fire of life

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अध्याय १५ शलोक  १३

अध्याय १५ शलोक  १३ The Gita – Chapter 15 – Shloka 13 Shloka 13  और मैं ही पृथ्वी में प्रवेश करके अपनी शक्त्ति से सब भूतों को धारण करता हूँ और रस स्वरूप अर्थात् अमृत मय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण ओषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ ।। १३ ।। Upon entering into this world

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अध्याय १५ शलोक  १२

अध्याय १५ शलोक  १२ The Gita – Chapter 15 – Shloka 12 Shloka 12  सूर्य में स्थित जो तेज सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है तथा जो तेज चन्द्रमा में है और जो अग्नि में है —उसको तू मेरा ही तेज जान ।। १२ ।। The Blessed Lord spoken in His Divine Voice: Arjuna, you

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अध्याय १५ शलोक  ११

अध्याय १५ शलोक  ११ The Gita – Chapter 15 – Shloka 11 Shloka 11  यत्न करने वाले योगी जन भी अपने ह्रदय में स्थित इस आत्मा को तत्व से जानते हैं ; किंतु जिन्होंने अपने अन्त:करण को शुद्ध नहीं किया है, ऐसे अज्ञानी जन तो यत्न करते रहने पर भी इस आत्मा को नहीं जानते

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अध्याय १५ शलोक  १०

अध्याय १५ शलोक १० The Gita – Chapter 15 – Shloka 10 Shloka 10  शरीर को छोड़ कर जाते हुए को अथवा शरीर में स्थित हुए को अथवा विषयों को भोगते हुए को इस प्रकार तीनों गुणों से युक्त्त हुए को भी अज्ञानी जन नहीं जानते, केवल ज्ञान रूप नेत्रों वाले विवेक शील ज्ञानी ही

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अध्याय १५ शलोक  ९

अध्याय १५ शलोक  ९ The Gita – Chapter 15 – Shloka 9 Shloka 9  यह जीवात्मा श्रोत्र, चक्षु और त्वचा को तथा रसना, घ्राण और मन को आश्रय करके ——अर्थात् इन सब के सहारे से ही विषयों का सेवन करता है ।। ९ ।। Therefore, O Arjuna, after I enter the body of a particular being

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अध्याय १५ शलोक  ८

अध्याय १५ शलोक  ८ The Gita – Chapter 15 – Shloka 8 Shloka 8  वायु गन्ध के स्थान से गन्ध को जैसे ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादि का स्वामी जीवात्मा भी जिस शरीर का त्याग करता है, उससे इन मन सहित इन्द्रियों को ग्रहण करके फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है

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अध्याय १५ शलोक  ७

अध्याय १५ शलोक  ७ The Gita – Chapter 15 – Shloka 7 Shloka 7  इस देह में यह सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षण करता है ।। ७ ।। The Blessed Lord confided: O Arjuna, in this world, a certain fraction of My

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