श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १६ शलोक  ६

अध्याय १६ शलोक  ६ The Gita – Chapter 16 – Shloka 6 Shloka 6  हे अर्जुन ! इस लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है, एक तो दैवी प्रकृति वाला, दूसरा आसुरी प्रकृति वाला । उनमे से दैवी प्रकृति वाला तो विस्तार पूर्वक कहा गया, अब तू आसुरी प्रकृति […]

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अध्याय १६ शलोक  ५

अध्याय १६ शलोक  ५ The Gita – Chapter 16 – Shloka 5 Shloka 5  दैवी-सम्पदा मुक्त्ति के लिये और आसुरी-सम्पदा बाँधने के लिये मानी गयी है । इसलिये हे अर्जुन ! तू शोक मत कर ; क्योंकि तू दैवी-सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुआ है ।। ५ ।। The qualities that exist within a person with

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अध्याय १६ शलोक  ४

अध्याय १६ शलोक  ४ The Gita – Chapter 16 – Shloka 4 Shloka 4  हे पार्थ ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी —-ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं ।। ४ ।। Characteristics such as deceitfulness, arrogance, excessive pride, anger, harshness, rudeness and ignorance are

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अध्याय १६ शलोक  ३

अध्याय १६ शलोक  ३ The Gita – Chapter 16 – Shloka 3 Shloka 3  तेज, क्षमा, धैर्य, बाहर की शुद्भि एवं किसी में भी शत्रु भाव का न होना और अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव —–ये सब तो हे अर्जुन ! दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं ।। ३

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अध्याय १६ शलोक  २

अध्याय १६ शलोक  २ The Gita – Chapter 16 – Shloka 2 Shloka 2  मन, वाणी और शरीर किसी प्रकार भी किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण, अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध का न होना, कर्मों में कर्तापन के अभिमान का त्याग, अन्त:करण की उपरति अर्थात् चित्त की चञ्चलता का

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अध्याय १६ शलोक  १

अध्याय १६ शलोक  १ The Gita – Chapter 16 – Shloka 1 Shloka 1  श्रीभगवान् बोले —–भय का सर्वथा अभाव, अन्त:करण की पूर्ण निर्मलता, तत्व ज्ञान के लिये ध्यान योग में निरन्तर दृढ. स्थिति और सात्विक दान, इन्द्रियों का दमन, भगवान्, देवता और गुरुजनों की पूजा तथा अग्निहोत्र आदि उत्तम कर्मों का आचरण एवं वेद

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अध्याय १५ शलोक  २०

अध्याय १५ शलोक  २० The Gita – Chapter 15 – Shloka 20 Shloka 20  हे निष्पाप अर्जुन ! इस प्रकार यह अति रहस्ययुक्त्त गोपनीय शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया, इसको तत्व से जान कर मनुष्य ज्ञानवान् और कृतार्थ हो जाता है ।। २० ।। Dear Arjuna, I have thus revealed to you, the most secret

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अध्याय १५ शलोक  १९

अध्याय १५ शलोक  १९ The Gita – Chapter 15 – Shloka 19 Shloka 19  भारत ! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्व से पुरुषोतम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है ।। १९ ।। He who has a clear vision and is constantly occupied with

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अध्याय १५ शलोक  १८

अध्याय १५ शलोक  १८ The Gita – Chapter 15 – Shloka 18 Shloka 18  क्योंकि मैं नाशवान् जड. वर्ग क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिये लोक में और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ ।। १८ ।। Lord Krishna explained: Because I am beyond all

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अध्याय १५ शलोक  १७

अध्याय १५ शलोक  १७ The Gita – Chapter 15 – Shloka 17 Shloka 17  इन दोनों से उत्तम पुरुष तो अन्य ही है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर और परमात्मा इस प्रकार गया है ।। १७ ।। However dear Arjuna, there is another spirit that is the

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