श्रीमद भगवद गीता हिन्दी

अध्याय १७ शलोक १३

अध्याय १७ शलोक  १३ The Gita – Chapter 17 – Shloka 13 Shloka 13  शास्त्र विधि से हीन, अन्नदान से रहित, बिना मन्त्रों के, बिना दक्षिणा और बिना श्रद्धा के किये जाने वाले यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं ।। १३ ।। Finally, My dear Devotee, the lowest type of sacrifice that exists is that […]

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अध्याय १७ शलोक १२

अध्याय १७ शलोक  १२ The Gita – Chapter 17 – Shloka 12 Shloka 12  परन्तु हे अर्जुन ! केवल दम्भाचरण के लिये अथवा फल को भी दृष्टि में रखकर जो यज्ञ किया जाता है, उस यज्ञ को तू राजस जान ।। १२ ।। However, O Bharata, a sacrifice that is done purely with the intention

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अध्याय १७ शलोक ११

अध्याय १७ शलोक  ११ The Gita – Chapter 17 – Shloka 11 Shloka 11  जो शास्त्र विधि से नियत, यज्ञ करना ही कर्तव्य है —- इस प्रकार मन को समाधान करके, फल न चाहने वाले पुरुषों द्वारा किया जाता है, वह सात्विक है ।। ११ ।। A pure sacrifice is one where the religious offerings

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अध्याय १७ शलोक  १०

अध्याय १७ शलोक  १० The Gita – Chapter 17 – Shloka 10 Shloka 10  जो भोजन अधपका, रस रहित, दुर्गन्ध युक्त्त बासी और उच्छिष्ट है तथा जो अपवित्र भी है, वह भोजन तामस पुरुष को प्रिय होता है ।। १० ।। Those people who strive on darkness and evil, eat foods that are impure, often

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अध्याय १७ शलोक  ९

अध्याय १७ शलोक  ९ The Gita – Chapter 17 – Shloka 9 Shloka 9  कड़वे, खट्टे, लवण युक्त्त् बहुत गरम तीखे, रूखे, दाहकारक और दुःख, चिन्ता तथा रोगों को उत्पन्न करने वाले आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ राजस पुरुष को प्रिय होते हैं ।। ९ ।। The foods that appeal to the passionate people

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अध्याय १७ शलोक  ८

अध्याय १७ शलोक  ८ The Gita – Chapter 17 – Shloka 8 Shloka 8  आयु, बुद्भि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले रस युक्त्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय —- ऐसे आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ सात्विक पुरुष को प्रिय होते हैं ।। ८ ।।

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अध्याय १७ शलोक  ७

अध्याय १७ शलोक  ७ The Gita – Chapter 17 – Shloka 7 Shloka 7  भोजन भी सबको अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का प्रिय होता है । और वैसे ही यज्ञ, तप और दान भी तीन-तीन प्रकार के होते हैं । उनके इस पृथक्-पृथक् भेद को तू मुझसे सुन ।। ७ ।। O Arjuna,

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अध्याय १७ शलोक  ६

अध्याय १७ शलोक  ६ The Gita – Chapter 17 – Shloka 6 Shloka 6  जो शरीर रूप से स्थित भूत समुदाय को और अन्त:करण में स्थित मुझ परमात्मा को भी कृश करने वाले हैं, उन अज्ञानियों को तू असुर स्वभाव वाले जान ।। ६ ।। …and those who foolishly suppress the pure and natural life-giving

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अध्याय १७ शलोक  ५

अध्याय १७ शलोक  ५ The Gita – Chapter 17 – Shloka 5 Shloka 5  जो मनुष्य शास्त्र विधि से रहित केवल मन:कल्पित घोर तप को तपते हैं तथा दम्भ और अहंकार से युक्त्त एवं कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त्त हैं ।। ५ ।। Those men who are selfish, corrupt, conceited, and

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अध्याय १७ शलोक  ४

अध्याय १७ शलोक  ४ The Gita – Chapter 17 – Shloka 4 Shloka 4  सात्विक पुरुष देवों को पूजते हैं, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसों को तथा अन्य जो तामस मनुष्य हैं, वे प्रेत और भूत गणों को पूजते हैं ।। ४ ।। Beings who are pure in heart and mind, who are good- natured

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