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अध्याय १८ शलोक २४

अध्याय १८ शलोक  २४ The Gita – Chapter 18 – Shloka 24 Shloka 24  परन्तु जो कर्म बहुत परिश्रम से युक्त्त होता है तथा भोगों को चाहने वाले पुरुष द्वारा या अहंकार युक्त्त पुरुष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा गया है ।। २४ ।। But when any task is completed with selfish […]

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अध्याय १८ शलोक २३

अध्याय १८ शलोक  २३ The Gita – Chapter 18 – Shloka 23 Shloka 23  जो कर्म शास्त्र विधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभिमान से रहित हो तथा फल न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग-द्बेष के किया गया हो, वह सात्विक कहा जाता है ।। २३ ।। The Blessed Lord explained: When

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अध्याय १८ शलोक २२

अध्याय १८ शलोक  २२ The Gita – Chapter 18 – Shloka 22 Shloka 22  परन्तु जो ज्ञान एक कार्य रूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त्त है तथा जो बिना युक्त्ति वाला, तात्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है —- वह तामस कहा गया है ।। २२ ।। However dear Arjuna, if one selfishly

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अध्याय १८ शलोक २१

अध्याय १८ शलोक  २१ The Gita – Chapter 18 – Shloka 21 Shloka 21  किंतु जो ज्ञान अर्थात् जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण भूतों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान ।। २१ ।। However, Partha, if one can only see the multitude of things

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अध्याय १८ शलोक  २०

अध्याय १८ शलोक  २० The Gita – Chapter 18 – Shloka 20 Shloka 20  जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक्-पृथक् सब भूतों में एक अविनाशी परमात्मा को विभागरहित स्वभाव से स्थित देखता है, उस ज्ञान को तो तू सात्विक जान ।। २० ।। When one can see Eternity, Infinity, and an undivided spiritual nature in things

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अध्याय १८ शलोक  १९

अध्याय १८ शलोक  १९ The Gita – Chapter 18 – Shloka 19 Shloka 19  गुणों की संख्या करने वाले शास्त्र में ज्ञान और कर्म तथा कर्ता गुणों के भेद से तीन-तीन प्रकार के ही कहे गये हैं ; उनको भी तू मुझसे भली भाँति सुन ।। १९ ।। Now Arjuna, listen as I tell you

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अध्याय १८ शलोक  १८

अध्याय १८ शलोक  १८ The Gita – Chapter 18 – Shloka 18 Shloka 18  ज्ञाता, ज्ञान, और ज्ञेय यह तीन प्रकार की कर्म-प्रेरणा है और कर्ता, करण तथा क्रिया यह तीन प्रकार का कर्म-संग्रह है ।। १८ ।। Arjuna, there are three instigators (stimuli) of action in this world namely, knowledge itself (that which is

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अध्याय १८ शलोक  १७

अध्याय १८ शलोक  १७ The Gita – Chapter 18 – Shloka 17 Shloka 17  जिस पुरुष के अन्त:करण में ‘मैं कर्ता हूँ’ ऐसा भाव नहीं है तथा जिसकी बुद्भि सांसारिक पदार्थो में और कर्मों में लिपायमान नहीं होतीं, वह पुरुष इन सब लोकों को मार कर भी वास्तव में न तो मारता है और न

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अध्याय १८ शलोक  १६

अध्याय १८ शलोक  १६ The Gita – Chapter 18 – Shloka 16 Shloka 16  परन्तु ऐसा होने पर भी जो मनुष्य अशुद्भ बुद्भि होने के कारण उस विषय में यानि कर्मों के होने में केवल शुद्भ स्वरूप आत्मा को कर्ता समझता है, वह मलिन बुद्भि वाला अज्ञानी यथार्थ नहीं समझता ।। १६ ।। Therefore dear

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अध्याय १८ शलोक  १५

अध्याय १८ शलोक  १५ The Gita – Chapter 18 – Shloka 15 Shloka 15  मनुष्य मन, वाणी और शरीर से शास्त्रानुकूल अथवा विपरीत जो कुछ भी कर्म करता है —- उसके ये पांचों कारण हैं ।। १५ ।। Whether a being’s means of actions are his body, mind, or speech, all of his actions whether

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