परिस्थिति

शांति ढूँढना

शांति ढूँढना अध्याय – 2 – श्लोक – 66 न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में निश्चयात्मिका बुद्भि नहीं होती और उस अयुक्त्त मनुष्य के अन्त:करण में भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन मनुष्यों को शान्ति नहीं मिलती और शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है ।। ६६ ।। अध्याय – […]

शांति ढूँढना Read More »

अहंकार

अहंकार अध्याय – 16 – श्लोक -4 हे पार्थ ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी —-ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं ।। ४ ।। अध्याय – 16 – श्लोक -13 वे सोचा करते हैं कि मैंने आज यह प्राप्त कर लिया है और अब

अहंकार Read More »

भूलना

भूलना अध्याय – 15 – श्लोक -15 मैं ही सब प्राणियों के ह्रदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझ से ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है और सब वेदों द्वारा मैं ही जानने के योग्य हूँ तथा वेदान्त का कर्ता और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूँ ।। १५ ।।

भूलना Read More »

ईर्ष्या करना

ईर्ष्या करना अध्याय – 12 – श्लोक -13-14 जो पुरुष सब भूतों द्बेष-भाव से रहित, स्वार्थ रहित सबका प्रेमी और हेतुरहित दयालु हैं तथा ममता से रहित, अहंकार से रहित सुख-दुःख़ों की प्राप्ति में सम और क्षमावान् हैं अर्थात् अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला हैं ; तथा जो योगी निरन्तर संतुष्ट है

ईर्ष्या करना Read More »

क्षमा करना

क्षमा करना अध्याय – 11 – श्लोक -44 अतएव हे प्रभो ! मैं शरीर को भली भांति चरणों में निवेदित कर प्रणाम करके स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना करता हूँ, हे देव ! पिता जैसे पुत्र के, सखा जैसे सखा के और पति जैसे प्रियतमा पत्त्नी के अपराध सहन

क्षमा करना Read More »

अधर्मी

अधर्मी अध्याय – 4 – श्लोक – 36 यदि तू अन्य सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, तो भी तू ज्ञान रूप नौका द्वारा नि:संदेह सम्पूर्ण पाप समुद्र से भली भाँति तर जायगा ।। ३६ ।। अध्याय – 4 – श्लोक – 37 क्योंकि हे अर्जुन ! जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधनों को

अधर्मी Read More »

भृमित होना

भृमित होना अध्याय – 2 – श्लोक -7 इसलिये कायरतारूप दोष से उपहत हुए स्वभाववाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये ; क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिये आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिये ।। ७ ।। अध्याय –

भृमित होना Read More »

लालसा

लालसा अध्याय – 3 – श्लोक -37 श्रीभगवान् बोले —- रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है, यह बहुत खाने वाला अर्थात् भोगों से कभी न अघाने वाला और बड़ा पापी है, इसको ही तू इस विषय में वैरी जान ।। ३७ ।। अध्याय – 3 – श्लोक -41 इसलिये हे अर्जुन !

लालसा Read More »

चिंता

चिंता अध्याय – 4 – श्लोक -10 पहले भी, जिनके राग, भय और क्रोध सर्वथा नष्ट हो गये थे और जो मुझ में अनन्य प्रेम पूर्वक स्थिर रहते थे, ऐसे मेरे आश्रित रहने वाले बहुत से भक्त्त उपर्युक्त्त ज्ञान रूप ताप से पवित्र होकर मेरे स्वरूप को प्राप्त हो चुके हैं ।। १० ।। अध्याय

चिंता Read More »

क्रोध

क्रोध अध्याय – 2 – श्लोक -56 दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्बेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा नि:स्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, ऐसा मुनि स्थिर बुद्भि कहा जाता है ।। ५६ ।। अध्याय – 2 – श्लोक – 62 विषयों का

क्रोध Read More »

Scroll to Top