अध्याय ९

अध्याय ९ शलोक १४

अध्याय ९  शलोक १४ The Gita – Chapter 9 – Shloka 14 Shloka 14  वे द्रढ निश्च्य वाले भक्क्त जन निरन्तर मेरे नाम और गुणो का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिये यत्न्न करते हुए और मुझको बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान मे युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते है […]

अध्याय ९ शलोक १४ Read More »

अध्याय ९ शलोक १३

अध्याय ९  शलोक १३ The Gita – Chapter 9 – Shloka 13 Shloka 13  परन्तु हे कुन्ती पुत्र !देवी प्रक्रति के आश्रित महात्त्मा जन मुझको सब भुतो का सनातन कारण और नाशरहित अक्षर स्वरुप जान कर अनन्य मन से युक्त होकर निरन्तर भजते है ॥१३॥ But, Arjuna, always heed that all saints, Yogis and wise men,

अध्याय ९ शलोक १३ Read More »

अध्याय ९ शलोक १२

अध्याय ९  शलोक १२ The Gita – Chapter 9 – Shloka 12 Shloka 12  वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वालॆ विक्षिप्त चित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रक्रति को ही धारण किये रहते है ॥१२॥ The Lord spoke onward: These ignorant people with futile hopes, vain actions (Karma), and false knowledge (spiritual and

अध्याय ९ शलोक १२ Read More »

अध्याय ९ शलोक ११

अध्याय ९  शलोक ११ The Gita – Chapter 9 – Shloka 11 Shloka 11  मेरे परम भाव को न जानने वाले मूढ लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले मुझ सम्पुर्ण भुतो के महान् ईश्वर को तुच्छ समझते है अर्थात अपनी योग माया से उद्भार के लिये मनुष्य रुप मे विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण

अध्याय ९ शलोक ११ Read More »

अध्याय ९ शलोक १०

अध्याय ९  शलोक १० The Gita – Chapter 9 – Shloka 10 Shloka 10  हे अर्जुन ! मुझ अधिष्ठाता के प्रकाश से प्रकृति चराचर सहित सर्व जगत् को रचती है और इस हेतु से ही संसार चक्र घूम रहा है ।। १० ।। Dear Arjuna, under My supervision, it is through My Maya (nature) that the

अध्याय ९ शलोक १० Read More »

अध्याय ९ शलोक ९

अध्याय ९  शलोक ९ The Gita – Chapter 9 – Shloka 9 Shloka 9  हे अर्जुन ! उन कर्मों में आसक्त्तिरहित और उदासीन के सदृश* स्थित मुझ परमात्मा को वे कर्म नहीं बांधते ।। ९ ।। Dear Arjuna, Karma has no affect on Me whatsoever. I am unattached and indifferent to Karma. I have no bondage to

अध्याय ९ शलोक ९ Read More »

अध्याय ९ शलोक ८

अध्याय ९  शलोक ८ The Gita – Chapter 9 – Shloka 8 Shloka 8  अपनी प्रकृति को अङीग्कार करके स्वभाव के बल से परतन्त्र हुए इस सम्पूर्ण भूत समुदाय को बार-बार उनके कर्मों के अनुसार रचता हूँ ।। ८ ।। O Arjuna, I create all beings again and again according to their karma (performed actions in

अध्याय ९ शलोक ८ Read More »

अध्याय ९ शलोक ७

अध्याय ९  शलोक ७ The Gita – Chapter 9 – Shloka 7 Shloka 7  हे अर्जुन ! कल्पों के अन्त में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात् प्रकृति में लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूँ ।। ७ ।। O Arjuna, all beings realize and attain My

अध्याय ९ शलोक ७ Read More »

अध्याय ९ शलोक ६

अध्याय ९  शलोक ६ The Gita – Chapter 9 – Shloka 6 Shloka 6  जैसे आकाश से उत्पन्न सर्वत्र विचरने वाला महान् वायु सदा आकाश में ही स्थित है, वैसे ही मेरे संकल्प द्वारा उत्पन्न होने से सम्पूर्ण भूत मुझ में स्थित हैं, ऐसा जान ।। ६ ।। Arjuna, you must clearly understand that just as the

अध्याय ९ शलोक ६ Read More »

अध्याय ९ शलोक ५

अध्याय ९  शलोक ५ The Gita – Chapter 9 – Shloka 5 Shloka 5 वे सब भूत मुझ में स्थित नहीं हैं, किंतु मेरी ईश्वरीय योग शक्त्ति को देख कि भूतों का धारण-पोषण करने वाला और भूतों को उत्पन्न करने वाला भी मेरा आत्मा वास्तव में भूतों में स्थित नहीं है ।। ५ ।। O Arjuna,

अध्याय ९ शलोक ५ Read More »

Scroll to Top