अध्याय ९

अध्याय ९ शलोक २४

अध्याय ९  शलोक २४ The Gita – Chapter 9 – Shloka 24 Shloka 2  क्य़ोकि सम्पूर्ण यज्ञो का भोक्ता और स्वामी भी मै ही हूँ, परन्तु वे मुझे परमेश्वर को तत्व से नही जानते, इसी से गिरते है अर्थात्त् पुनर्जन्म को प्राप्त होते है  ।। २४ ।। Arjuna, I am the Supreme Lord and receiver of all sacred […]

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अध्याय ९ शलोक २३

अध्याय ९  शलोक २३ The Gita – Chapter 9 – Shloka 23 Shloka 23  हे अर्जुन ! यधपि श्रद्भा से युक्त्त जो सकाम भक्त्त दुसरे देवताओ को पूजते है, वे भी मुझको ही पूजते है, किन्तु उनका वह पुजन अविधि पूर्वक अर्थात्त्  अज्ञान पूर्वक है ।। २३ ।। Arjuna, all of those devotees of mine who

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अध्याय ९ शलोक २२

अध्याय ९  शलोक २२ The Gita – Chapter 9 – Shloka 22 Shloka 22  जो अनन्य प्रेमी भक्क्त जन मुझ परमेश्वर को निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते है, उन नित्य- निरन्तर मेरा चिन्तन करने वाले पुरुषो का योग क्षेम मै स्वयं प्राप्त कर देता हूँ ।। २२ ।। However, Arjuna, for those beings

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अध्याय ९ शलोक २१

अध्याय ९  शलोक २१ The Gita – Chapter 9 – Shloka 21 Shloka 21  वे उस विशाल स्वर्ग लोक को भोग कर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते है । इस प्रकार स्वर्ग के साधन रुप तीनो वेदो मे कहे हुए सकाम कर्म का आश्रय लेने वाले और भोगो की कामना वाले पुरुष

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अध्याय ९ शलोक २०

अध्याय ९  शलोक २० The Gita – Chapter 9 – Shloka 20 Shloka 20  तीनो वेदो मे विधान किये हुए सकाम कर्मो को करने वाले, सोम रस को पीने वाले, पाप रहित पुरुष* मुझको यज्ञो के द्वारा पूज कर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते है, वे पुरुष अपने पुण्यो के फल रुप स्वर्ग लोक को प्राप्त होकर

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अध्याय ९ शलोक १९

अध्याय ९  शलोक १९ The Gita – Chapter 9 – Shloka 19 Shloka 19  मै ही सुर्य रुप से तपता हूँ , वर्षा का आकर्षण करता हूँ , और उसे बरसाता हूँ । हे अर्जुन ! मै ही अमृत और मृत्त्यु हूँ और सत्त् असत्त् भी मै हूँ ॥१९॥ O Arjuna, I am the giver of

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अध्याय ९ शलोक १८

अध्याय ९  शलोक १८ The Gita – Chapter 9 – Shloka 18 Shloka 18  प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सब का स्वामी, शुभाशुभ को देखने वाला, सबका वास स्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पति प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान और अविनाशी कारण भी मै ही

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अध्याय ९ शलोक १७

अध्याय ९  शलोक १७ The Gita – Chapter 9 – Shloka 17 Shloka 17  इस सम्पूर्ण जगत्त् का धाता अर्थात धारण करने वाला एव कर्मॊ के फल देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद, और यजुर्वेद भी मै ही हू ।।१७॥ I am the sustainer, the father,mother, and grandfather of the

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अध्याय ९ शलोक १६

अध्याय ९  शलोक १६ The Gita – Chapter 9 – Shloka 16 Shloka 16  ऋतु मै हूँ, यज्ञ मै हूँ, स्वधा मै हूँ,  मन्त्र मै हूँ, धृत मै हूँ, अग्नि मै हूँ, और हवन रूप किया भी मै ही हूँ ।।१६॥ Arjuna, you must understand that I am everything in this world. I am the Vedic

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अध्याय ९ शलोक १५

अध्याय ९  शलोक १५ The Gita – Chapter 9 – Shloka 15 Shloka 15  दूसरे ज्ञान योगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्रा का ज्ञान यज्ञ के द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते है और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट् स्वरुप परमेश्वर का पृथक् भाव से उपासना करते है ॥१५॥ Several people

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