अध्याय ९

अध्याय ९ शलोक ३४

अध्याय ९  शलोक ३४ The Gita – Chapter 9 – Shloka 34 Shloka 34  मुझ मे मन वाला हो, मेरा भक्त्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर । इस प्रकार आत्मा को मुझ मे नियुक्त्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा ।। ३४ ।। Arjuna, fix your mind only on […]

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अध्याय ९ शलोक ३३

अध्याय ९  शलोक ३३ The Gita – Chapter 9 – Shloka 33 Shloka 33  फिर इसमे कहना ही क्या है, जो पुण्य शील ब्राह्मण तथा राजषि भक्त्त जन मेरी शरण होकर परम गति को प्राप्त होते है । इसलिये तू सुखरहित और क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरन्तर मेरा ही भजन कर ।। ३३ ।। O

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अध्याय ९ शलोक ३२

अध्याय ९  शलोक ३२ The Gita – Chapter 9 – Shloka 32 Shloka 32  हे अर्जुन ! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पाप योनि— चाण्डालादि जो कोई भी हो, मेरे शरण होकर परम गति को ही प्राप्त होते है ।। ३२ ।। Dear Arjuna, by taking refuge in Me, (the true path to bliss and joy), a sinful

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अध्याय ९ शलोक ३१

अध्याय ९  शलोक ३१ The Gita – Chapter 9 – Shloka 31 Shloka 31  वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है । हे अर्जुन ! तू निश्च्य पूर्वक सच जान कि मेरा भक्त्त नष्ट नही होता ।। ३१ ।। This evil man will then soon become

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अध्याय ९ शलोक ३०

अध्याय ९  शलोक ३० The Gita – Chapter 9 – Shloka 30 Shloka 30  यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त्त होकर मुझको भजता है तो साधु ही मानने योग्य है; क्योकि वह यथार्थ निश्चय वाला है । अर्थात्त् उसने भली भांति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर भजन के समान अन्य कुछ

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अध्याय ९ शलोक २९

अध्याय ९  शलोक २९ The Gita – Chapter 9 – Shloka 29 Shloka 29  मै सब भूतो मे सम भाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है; परन्तु जो भक्त्त मुझको प्रेम से भजते है, वे मुझ मे है और मै भी   उनमे प्रत्यक्ष प्रकट हूँ ।। २९ ।। I regard all

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अध्याय ९ शलोक २८

अध्याय ९  शलोक २८ The Gita – Chapter 9 – Shloka 28 Shloka 28  इस प्रकार, जिसमे समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते है —-ऎसे सन्यास योग से युक्त्त चित्त वाला तू शुभाशुभ फल रुप कर्म बन्धन से मुक्त्त हो जायगा और उनसे मुक्त्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा  ।। २८ ।। With your mind

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अध्याय ९ शलोक २७

अध्याय ९  शलोक २७ The Gita – Chapter 9 – Shloka 27 Shloka 27  हे अर्जुन ! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर  ।। २७ ।। Arjuna, whatever you do, whatever your actions are, whatever you

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अध्याय ९ शलोक २६

अध्याय ९  शलोक २६ The Gita – Chapter 9 – Shloka 26 Shloka 26  जो कोई भक्त्त मेरे प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल, आदि अर्पण करता है, उस शुद्भ बुद्भि निष्काम प्रेमी भक्त्त का प्रेम पुर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मै सगुण रुप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ  ।। २६ ।। I

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अध्याय ९ शलोक २५

अध्याय ९  शलोक २५ The Gita – Chapter 9 – Shloka 25 Shloka 25  देवताओ को पूजने वाले देवताओ को प्राप्त होते है, पितरो को पूजने वाले पितरो को प्राप्त होते है,भुतो को पूजने वाले भुतो को प्राप्त होते है और मेरा पुजन करने वाले भक्त्त मुझको ही प्राप्त होते है । इसलिये मेरे भक्त्तो का

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