अध्याय ८

अध्याय ८ शलोक ७

अध्याय ८  शलोक ७ The Gita – Chapter 8 – Shloka 7 Shloka 7  इसलिये हे अर्जुन ! तू सब समय में निरन्तर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर । इस प्रकार मुझ में अर्पण किये हुए मन बुद्भि से युक्त्त होकर तू नि:संदेह मुझको ही प्राप्त होगा ।। ७ ।। Therefore,O Arjuna, think of […]

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अध्याय ८ शलोक ६

अध्याय ८  शलोक ६ The Gita – Chapter 8 – Shloka 6 Shloka 6  हे कुन्ती पुत्र अर्जुन ! यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, उस-उस को ही प्राप्त होता है, क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है ।। ६ ।। O Arjuna, whatever

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अध्याय ८ शलोक ५

अध्याय ८  शलोक ५ The Gita – Chapter 8 – Shloka 5 Shloka 5  जो पुरुष अन्तकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरूप को प्राप्त होता है —- इसमें कुछ भी संशय नहीं है ।। ५ ।। Lord Krishna solemnly proclaimed: O Arjuna, he who

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अध्याय ८ शलोक ४

अध्याय ८  शलोक ४ The Gita – Chapter 8 – Shloka 4 Shloka 4  उत्त्पति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन ! इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ ।। ४ ।। The Lord further explained: Adhibhutam represents all perishable or temporary

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अध्याय ८ शलोक ३

अध्याय ८  शलोक ३ The Gita – Chapter 8 – Shloka 3 Shloka 3  श्रीभगवान् ने कहा — परम अक्षर ‘ब्रह्म’ है, अपना स्वरूप अर्थात् जीवात्मा ‘अध्यात्म’ नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह ‘कर्म’ नाम से कहा गया है ।। ३ ।। The Lord replied:

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अध्याय ८ शलोक २

अध्याय ८  शलोक २ The Gita – Chapter 8 – Shloka 2 Shloka 2  हे मधुसूदन ! यहाँ अधियज्ञ कौन है ? और वह इस शरीर में कैसे है ? तथा युक्त्त चित्त वाले पुरुषों द्वारा अन्त समय में आप किस प्रकार जानने में आते हैं ।। २ ।। Arjuna continued: Furthermore, O Krishna, I am puzzld

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अध्याय ८  शलोक १

अध्याय ८  शलोक १ The Gita – Chapter 8 – Shloka 1 Shloka 1  अर्जुन ने कहा —- हे पुरुषोत्तम ! वह ब्रह्म क्या है ? अध्यात्म क्या है ? कर्म क्या है ? अधिभूत नाम से क्या कहा गया है और अधिदैव किस को कहते हैं ।। १ ।। Arjuna asked the Lord: Dear Krishna, I

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