अध्याय ८

अध्याय ८ शलोक १८

अध्याय ८  शलोक १८ The Gita – Chapter 8 – Shloka 18 Shloka 18  सम्पूर्ण चराचर भूत गण ब्रह्मा के दिन के प्रवेश काल में अव्यक्त्त से अर्थात् ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेश काल में उस अव्यक्त्त नामक ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में ही लीन हो जाते […]

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अध्याय ८ शलोक १७

अध्याय ८  शलोक १७ The Gita – Chapter 8 – Shloka 17 Shloka 17  ब्रह्मा का जो एक दिन है, उसको एक हजार चतुर्युगीतक की अवधि वाला और रात्रि को भी एक हजार चतुर्युगीतक की अवधि वाली जो पुरुष तत्त्व से जानते हैं, वे योगी जन काल के तत्त्व को जानने वाले हैं ।। १७ ।।

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अध्याय ८ शलोक १६

अध्याय ८  शलोक १६ The Gita – Chapter 8 – Shloka 16 Shloka 16  हे अर्जुन ! ब्रह्मलोकपर्यन्त सब लोक पुनरावर्ती हैं, परन्तु हे कुन्ती पुत्र ! मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता ; क्योंकि मैं कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादि के लोक काल के द्वारा सीमित होने से अनित्य हैं ।। १६ ।। All

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अध्याय ८ शलोक १५

अध्याय ८  शलोक १५ The Gita – Chapter 8 – Shloka 15 Shloka 15  परम सिद्भि को प्राप्त महात्मा जन मुझको प्राप्त होकर दुःखों के घर एवं क्षणभंगुर पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त होते ।। १५ ।। O Arjuna, the great sages (wise men,Yogis) having achieved Supreme perfection in their life, come to Me, and do not

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अध्याय ८ शलोक १४

अध्याय ८  शलोक १४ The Gita – Chapter 8 – Shloka 14 Shloka 14  हे अर्जुन ! जो पुरुष मुझ में अनन्य-चित्त होकर सदा ही निरन्तर मुझ पुरुषोत्तम को स्मरण करता है, उस नित्य-निरन्तर मुझ में युक्त्त हुए योगी के लिये मैं सुलभ हूँ, अर्थात् उसे सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ ।। १४ ।। O

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अध्याय ८ शलोक १२,१३

अध्याय ८  शलोक १२,१३ The Gita – Chapter 8 – Shloka 12,13 Shloka 12,13  सब इन्द्रियों के द्वारों को रोक कर तथा मन को ह्रध्शे में स्थिर करके, फिर उस जीते हुए मन के द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, परमात्मा सम्बन्धी योग धारणा में स्थित होकर जो पुरुष ‘ओउम्’ इस एक अक्षर रूप ब्रह्म

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अध्याय ८ शलोक ११

अध्याय ८  शलोक ११ The Gita – Chapter 8 – Shloka 11 Shloka 11  वेद के जानने वाले विद्बान जिस सच्चिदानन्दधन रूप परम पद को अविनाशी कहते हैं, आसक्त्तिरहित यत्नशील संन्यासी महात्मा जन जिसमें प्रवेश करते हैं और जिस परम पद को चाहने वाले ब्रह्मचारी लोग ब्रह्मचर्य का आचरण करते हैं, उस परम पद को मैं

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अध्याय ८ शलोक १०

अध्याय ८  शलोक १० The Gita – Chapter 8 – Shloka 10 Shloka 10  वह भक्त्ति युक्त्त पुरुष अन्त काल में भी योग बल से भृकुटी के मध्य में प्राण को अच्छी प्रकार स्थापित करके फिर निश्चल मन से स्मरण करता हुआ उस दिव्य रूप परम पुरुष परमात्मा को ही प्राप्त होता हैं ।। १० ।।

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अध्याय ८ शलोक ९

अध्याय ८  शलोक ९ The Gita – Chapter 8 – Shloka 9 Shloka 9  जो पुरुष सर्वज्ञ, अनादि, सबके नियन्ता*, सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म, सबके धारण-पोषण करने वाले, अचिन्त्य स्वरूप, सूर्य के सदृश नित्य चेतन प्रकाश रूप और अविद्या से परे, शुद्भ सच्चिदानन्दधन परमेश्वर का स्मरण करता है ।। ९ ।। Dear Arjuna, one who

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अध्याय ८ शलोक ८

अध्याय ८  शलोक ८ The Gita – Chapter 8 – Shloka 8 Shloka 8  हे पार्थ ! यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यास रूप योग से युक्त्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाश रूप दिव्य पुरुष को अर्थात् परमेश्वर को ही प्राप्त होता है ।।

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