अध्याय ८

अध्याय ८ शलोक २८

अध्याय ८  शलोक २८ The Gita – Chapter 8 – Shloka 28 Shloka 28  योगी पुरुष इस रहस्य को तत्त्व से जानकर वेदों के पढ़ने में तथा यज्ञ, तप और दानादि के करने में जो पुण्य फल कहा है, उस सबको नि:संदेह उल्लंघन कर जाता है और सनातन परम पद को प्राप्त होता है  ।। २८ […]

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अध्याय ८ शलोक २७

अध्याय ८  शलोक २७ The Gita – Chapter 8 – Shloka 27 Shloka 27  हे पार्थ ! इस प्रकार इन दोनों मार्गों को तत्त्व से जान कर कोई भी योगी मोहित नहीं होता । इस कारण हे अर्जुन ! तू सब काल में सम बुद्भि रूप योग से युक्त्त हो अर्थात् निरन्तर मेरी प्राप्ति के लिये

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अध्याय ८ शलोक २५

अध्याय ८  शलोक २५ The Gita – Chapter 8 – Shloka 25 Shloka 25  जिस मार्ग में घूमाभिमानी देवता है, रात्रि अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छ: महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मर कर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपर्युक्त्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया

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अध्याय ८ शलोक २६

अध्याय ८  शलोक २६ The Gita – Chapter 8 – Shloka 26 Shloka 26  क्योंकि जगत् के ये दो प्रकार के — शुक्ल और कृष्ण अर्थात् देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गये हैं । इनमें एक के द्वारा गया हुआ — जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता, उस परम गति को प्राप्त होता है और दूसरे

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अध्याय ८ शलोक २४

अध्याय ८  शलोक २४ The Gita – Chapter 8 – Shloka 24 Shloka 24  जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता है, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उतरायण के छ: महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मर कर गये हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपर्युक्त्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाये

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अध्याय ८ शलोक २३

अध्याय ८  शलोक २३ The Gita – Chapter 8 – Shloka 23 Shloka 23  हे अर्जुन ! जिस काल में* शरीर त्याग कर गये हुए योगी जन तो वापस न लौटने वाली गति को और जिस काल में गये हुए वापस लौटने वाली गति को ही प्राप्त होते हैं, उस काल को अर्थात् दोनों मार्गो को

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अध्याय ८ शलोक २२

अध्याय ८  शलोक २२ The Gita – Chapter 8 – Shloka 22 Shloka 22  हे पार्थ ! जिस परमात्मा के अन्तर्गत सर्व भूत हैं और जिस सच्चिदानन्दधन परमात्मा से यह समस्त जगत् परिपूर्ण है, वह सनातन अव्यक्त्त परम पुरुष तो अनन्य भक्त्ति से ही प्राप्त होने योग्य है ।। २२ ।। Dear Arjuna, that God within

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अध्याय ८ शलोक २१

अध्याय ८  शलोक २१ The Gita – Chapter 8 – Shloka 21 Shloka 21  जो अव्यक्त्त ‘अक्षर’ इस नाम से कहा गया है, उसी अक्षर नामक अव्यक्त्त भाव को परम गति कहते हैं तथा जिस सनातन अव्यक्त्त भाव को प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं आते, वह मेरा परम धाम है ।। २१ ।। The unmanifest (uncreated) is

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अध्याय ८ शलोक २०

अध्याय ८  शलोक २० The Gita – Chapter 8 – Shloka 20 Shloka 20  उस अव्यक्त्त से भी अति परे दूसरा अर्थात् विलक्षण जो सनातन अव्यक्त्त भाव है, वह परम दिव्य पुरुष सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता ।। २० ।। O Arjuna, one should always remember that there is a path

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अध्याय ८ शलोक १९

अध्याय ८  शलोक १९ The Gita – Chapter 8 – Shloka 19 Shloka 19  हे पार्थ ! यही यह भूत समुदाय उत्पन्न हो-होकर प्रकृति के वश में हुआ रात्रि के प्रवेश काल में लीन होता है और दिन के प्रवेश काल में फिर उत्पन्न होता है ।। १९ ।। O Arjuna, all beings in this world, by

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