अध्याय ७

अध्याय ७ शलोक २०

अध्याय ७  शलोक २० The Gita – Chapter 7 – Shloka 20 Shloka 20  उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके  अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात् पूजते हैं ।। २० ।। Driven by the desires which exist in their nature, ignorant […]

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अध्याय ७ शलोक १९

अध्याय ७  शलोक १९ The Gita – Chapter 7 – Shloka 19 Shloka 19  बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में तत्त्व ज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही है —- इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है ।। १९ ।। A Gyani or wise man who worship Me with great love and

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अध्याय ७ शलोक १८

अध्याय ७  शलोक १८ The Gita – Chapter 7 – Shloka 18 Shloka 18  ये सभी उदार हैं, परन्तु ज्ञानी तो साक्षात् मेरा स्वरूप ही है —- ऐसा मेरा मत है ; क्योंकि वह मदगत मन बुद्भि वाला ज्ञानी भक्त्त अति उत्तम गति स्वरूप मुझ में ही अच्छी प्रकार स्थित है  ।। १८ ।। Although all

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अध्याय ७ शलोक १७

अध्याय ७  शलोक १७ The Gita – Chapter 7 – Shloka 17 Shloka 17  उनमें नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेम भक्त्ति वाला ज्ञानी भक्त्त अति उत्तम है ; क्योंकि मुझको तत्त्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय हैं ।। १७ ।। Among all of these, O Arjuna,

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अध्याय ७ शलोक १६

अध्याय ७  शलोक १६ The Gita – Chapter 7 – Shloka 16 Shloka 16  हे भरत वंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन ! उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी, आर्त्त, जिज्ञासु, और ज्ञानी — ऐसे चार प्रकार के भक्त्त जन मुझ को भजते हैं ।। १६ ।। In this world there are only four types of pure and divine (pious)

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अध्याय ७ शलोक १५

अध्याय ७  शलोक १५ The Gita – Chapter 7 – Shloka 15 Shloka 15  माया के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है ऐसे आसुर स्वभाव को धारण किये हुए मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते ।। १५ ।। Those who have lost their Gyan (wisdom) because of the pursuit of

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अध्याय ७ शलोक १४

अध्याय ७  शलोक १४ The Gita – Chapter 7 – Shloka 14 Shloka 14  क्योंकि यह अलौकिक अर्थात् अति अद्बूत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है ; परन्तु जो पुरुष केवल मुझको ही निरन्तर भजते हैं, वे इस माया को उल्लंघन कर जाते हैं, अर्थात् संसार से तर जाते हैं ।। १४ ।। Because My divine nature (many) consisting

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अध्याय ७ शलोक १३

अध्याय ७  शलोक १३ The Gita – Chapter 7 – Shloka 13 Shloka 13  गुणों के कार्य रूप सात्त्विक, राजस और तामस —- इन तीनों प्रकार के भावों से यह सारा संसार—-प्राणि- समुदाय मोहित हो रहा है, इसीलिये इन तीनों गुणों से परे मुझ अविनाशी को नहीं जानता ।। १३ ।। The whole universe, o Son of

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अध्याय ७ शलोक १२

अध्याय ७  शलोक १२ The Gita – Chapter 7 – Shloka 12 Shloka 12  और भी जो सत्त्व गुण से उत्पन्न होने वाले भाव हैं और जो रजोगुण से तथा तमोगुण से होने वाले भाव हैं, उन सबको तू ‘मुझ से ही होने वाले हैं‘ ऐसा जान । परन्तु वास्तव में उन में मैं और वे मुझ

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अध्याय ७ शलोक ११

अध्याय ७  शलोक ११ The Gita – Chapter 7 – Shloka 11 Shloka 11   हे भरत श्रेष्ठ ! मैं बलवानों का आसक्त्ति और कामनाओं से रहित बल अर्थात् सामर्थ्य हूँ और सब भूतों में धर्म के अनुकूल अर्थात् शास्त्र के अनुकूल काम हूँ ।। ११ ।। Arjuna, my dear devotee, I am the strength in those that are strong

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