अध्याय ७

अध्याय ७ शलोक ३०

अध्याय ७  शलोक ३० The Gita – Chapter 7 – Shloka 30 Shloka 30  जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव के सहित तथा अधियज्ञ के सहित (सब का आत्म रूप ) मुझे अन्तकाल में भी जानते हैं, वे युक्त्त चित्त वाले पुरुष मुझे जानते हैं अर्थात् प्राप्त हो जाते हैं ।। ३०।। Only those wise men (Yogis) who truly […]

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अध्याय ७ शलोक २९

अध्याय ७  शलोक २९ The Gita – Chapter 7 – Shloka 29 Shloka 29  जो मेरे शरण होकर जरा और मरण से छूटने के लिये यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को, सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं ।। २९ ।। Arjuna, those who make an effort to attain Me and take refuge in

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अध्याय ७ शलोक २८

अध्याय ७  शलोक २८ The Gita – Chapter 7 – Shloka 28 Shloka 28  परन्तु निष्काम भाव से श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करने वाले जिन पुरुषों का पाप नष्ट हो गया है, वे राग द्बेष जनित द्बन्द्ब रूप मोह से मुक्त्त दृढ़ निश्चयी भक्त्त मुझ को सब प्रकार से भजते हैं ।। २८ ।।   O Arjuna,

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अध्याय ७ शलोक २७

अध्याय ७  शलोक २७ The Gita – Chapter 7 – Shloka 27 Shloka 27  हे भरत वंशी अर्जुन ! संसार में इच्छा और द्बेष से उत्पन्न सुख-दुःखादि द्बन्द्ब रूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञता को प्राप्त हो रहे हैं ।। २७ ।। Arjuna, in this world, most beings are confused and deluded by the doubts created by

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अध्याय ७ शलोक २६

अध्याय ७  शलोक २६ The Gita – Chapter 7 – Shloka 26 Shloka 26  हे अर्जुन ! पूर्व में व्यतीत हुए और वर्तमान में स्थित तथा आगे होने वाले सब भूतों को मैं जानता हूँ, परन्तु मुझको कोई भी श्रद्बा भक्त्ति रहित पुरुष नहीं जानता ।। २६ ।। O Arjuna, although I know of every single being

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अध्याय ७ शलोक २५

अध्याय ७  शलोक २५ The Gita – Chapter 7 – Shloka 25 Shloka 25  अपनी योग माया से छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिये यह अज्ञानी जन समुदाय मुझ जन्म रहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात् मुझको जन्मने मरने वाला समझता है ।। २५ ।। Shrouded by My own Yogmaya (divine powers), I am not

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अध्याय ७ शलोक २४

अध्याय ७  शलोक २४ The Gita – Chapter 7 – Shloka 24 Shloka 24  बुद्भि हीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दधन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्म कर व्यक्त्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं ।। २४ ।। Dear Arjuna, those people who have little

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अध्याय ७ शलोक २३

अध्याय ७  शलोक २३ The Gita – Chapter 7 – Shloka 23 Shloka 23  परन्तु उन अल्प बुद्भि वालों का वह फल नाशवान् है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं ।। २३ ।। The Lord said solemnly:

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अध्याय ७ शलोक २२

अध्याय ७  शलोक २२ The Gita – Chapter 7 – Shloka 22 Shloka 22  वह पुरुष उस श्रद्बा से युक्त्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किये हुए उन इच्छित भोगों को नि:संदेह प्राप्त करता है ।। २२ ।। Thus, once these people have been given their

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अध्याय ७ शलोक २१

अध्याय ७  शलोक २१ The Gita – Chapter 7 – Shloka 21 Shloka 21  जो-जो सकाम भक्त्त जिस-जिस देवता के स्वरूप को श्रद्बा से पूजना चाहता है, उस-उस भक्त्त की श्रद्बा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ ।। २१ ।। Whichever god (deity) a person wishes to worship with faith, O Arjuna, I am

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