अध्याय ६

अध्याय ६ शलोक ७

अध्याय ६  शलोक ७ The Gita – Chapter 6 – Shloka 7 Shloka 7  सरदी-गरमी और सुख-दुःखादि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्त:करण की वृत्तियाँ भली भाँति शान्त हैं, ऐसे स्वाधीन आत्मा वाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानन्दधन परमात्मा सम्यक् प्रकार से स्थित है, अर्थात् उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवाय कुछ है ही […]

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अध्याय ६ शलोक ६

अध्याय ६  शलोक ६ The Gita – Chapter 6 – Shloka 6 Shloka 6  जिस जीवात्मा द्वारा मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह आप ही मित्र है, और जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिये वह आप ही शत्रु के सदृश शत्रुता में

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अध्याय ६ शलोक ५

अध्याय ६  शलोक ५ The Gita – Chapter 6 – Shloka 5 Shloka 5  अपने द्वारा अपना संसार समुद्र से उद्बार करे और अपने को अधोगति में न डाले ; क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है ।। ५ ।। Dear Arjuna, one should lift himself through his

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अध्याय ६ शलोक ४

अध्याय ६  शलोक ४ The Gita – Chapter 6 – Shloka 4 Shloka 4  जिस काल में न तो इन्द्रियों के भोगों में और न कर्मों में ही आसक्त्त होता है, उस काल में सर्व संकल्पों का त्यागी पुरुष योगारूढ़ कहा जाता है ।। ४ ।। When one is no longer attached to sensual objects or to

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अध्याय ६ शलोक ३

अध्याय ६  शलोक ३ The Gita – Chapter 6 – Shloka 3 Shloka 3  योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशील पुरुष के लिये योग की प्राप्ति में निष्काम भाव से कर्म करना ही  हेतु कहा जाता है और योगारूढ़ हो जाने पर उस योगारूढ़ पुरुष का जो सर्व संकल्पों का अभाव है, वही कल्याण

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अध्याय ६ शलोक २

अध्याय ६  शलोक २ The Gita – Chapter 6 – Shloka 2 Shloka 2  हे अर्जुन ! जिसको संन्यास ऐसा कहते हैं, उसी को तू योग जान । क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता ।। २ ।। O Arjuna, consider Sannyaas and Yoga as one and the same; just

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अध्याय ६  शलोक १

अध्याय ६  शलोक १ The Gita – Chapter 6 – Shloka 1 Shloka 1  श्रीभगवान् बोले —- जो पुरुष कर्म का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है ।। १

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