अध्याय ६

अध्याय ६ शलोक १७

अध्याय ६  शलोक १७ The Gita – Chapter 6 – Shloka 17 Shloka 17  दुःखों का नाश करने वाला योग तो यथा योग्य आहार विहार करने वाले का, कर्मों में यथा योग्य चेष्टा करने वाले का और यथा योग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है ।। १७ ।। O Arjuna, only those people […]

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अध्याय ६ शलोक १६

अध्याय ६  शलोक १६ The Gita – Chapter 6 – Shloka 16 Shloka 16  हे अर्जुन ! यह योग न तो बहुत खाने वाले का, न बिल्कुल खाने वाले का, न बहुत शयन करने के स्वभाव वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है ।। १६ ।। There must be a constant

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अध्याय ६ शलोक १५

अध्याय ६  शलोक १५ The Gita – Chapter 6 – Shloka 15 Shloka 15  वश में किये हुए मन वाला योगी इस प्रकार आत्मा को निरन्तर मुझ परमेश्वर के स्वरूप में लगाता हुआ मुझ में रहने वाली परमानन्द की पराकाष्ठा रूप शान्ति को प्राप्त होता है ।। १५ ।। In this way, the true, self-controlled Yogi. Will

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अध्याय ६ शलोक १४

अध्याय ६  शलोक १४ The Gita – Chapter 6 – Shloka 14 Shloka 14  ब्रह्मचारी व्रत में स्थित , भयरहित तथा भलीभांति शांत अन्त: करणवाला सावधान योगी मन को रोककर मुझ में चितवाला और मेरे परायण होकर स्थित होंवे ||१४ ||   The Gita in Sanskrit, Hindi, Gujarati, Marathi, Nepali and English – The Gita.net

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अध्याय ६ शलोक १३

अध्याय ६  शलोक १३ The Gita – Chapter 6 – Shloka 13 Shloka 13  काया, सिर और गले को समान एवं अचल धारण करके और स्थिर होकर, अपनी नासिका के अग्र भाग पर दृष्टि जमा कर, अन्य दिशाओं को न देखता हुआ ।। १३ ।। The Lord instructed Arjuna: While meditating one must keep the head,

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अध्याय ६ शलोक १२

अध्याय ६  शलोक १२ The Gita – Chapter 6 – Shloka 12 Shloka 12  उस आसन पर बैठ कर चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके अन्त:करण की शुद्भि के लिये योग का अभ्यास करे ।। १२ ।। He should then practice Yoga for the purpose of purifying his mind

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अध्याय ६ शलोक ११

अध्याय ६  शलोक ११ The Gita – Chapter 6 – Shloka 11 Shloka 11  शुद्भ भूमि में, जिसके ऊपर क्रमश: कुशा, मृगछाला और वस्त्र बिछे हैं, जो न बहुत ऊँचा है और न बहुत नीचा, ऐसे अपने आसन को स्थिर स्थापन करके —– ।। ११ ।। For proper meditation, the Yogi should seek a clear spot,

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अध्याय ६ शलोक १०

अध्याय ६  शलोक १० The Gita – Chapter 6 – Shloka 10 Shloka 10  मन और इन्द्रियों सहित शरीर को वश में रखने वाला, आशा रहित और संग्रह रहित योगी अकेला ही एकान्त स्थान में स्थित होकर आत्मा को निरन्तर परमात्मा में लगावे  ।। १० ।। The Lord proclaimed: A Yogi who is free of all

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अध्याय ६ शलोक ९

अध्याय ६  शलोक ९ The Gita – Chapter 6 – Shloka 9 Shloka 9  सुह्रद्, मित्र, वैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्बेष्य और बन्धु गणों में, धर्मात्माओं में और पापियों में भी समान भाव रखने वाला अत्यन्त श्रेष्ठ है ।। ९ ।। One who thinks about and behaves with dear ones, friends, enemies, neutral ones, mediators malicious people,

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अध्याय ६ शलोक ८

अध्याय ६  शलोक ८ The Gita – Chapter 6 – Shloka 8 Shloka 8  जिसका अन्त:करण ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है, जिसकी स्थिति विकार रहित है, जिसकी इन्द्रियाँ भली भाँति जीती हुई हैं और जिसके लिये मिट्टी, पत्थर और सुवर्ण समान हैं, वह योगी युक्त्त अर्थात्  भगवत्प्राप्त है, ऐसे कहा जाता है ।। ८ ।। The Lord explained:

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