अध्याय ६

अध्याय ६ शलोक २७

अध्याय ६  शलोक २७ The Gita – Chapter 6 – Shloka 27 Shloka 27  क्योंकि जिसका मन भली प्रकार शान्त है, जो पाप से रहित है और जिसका रजोगुण शान्त हो गया है, ऐसे इस सच्चिदानन्दधन  ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को उत्तम आनन्द प्राप्त होता है  ।। २७ ।। Lord Krishna explained: The true […]

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अध्याय ६ शलोक २६

अध्याय ६  शलोक २६ The Gita – Chapter 6 – Shloka 26 Shloka 26  यह स्थिर न रहने वाला और चञ्चल मन जिस-जिस शब्दादि विषय के निमित्त से संसार में विचरता है, उस-उस विषय से रोक कर यानी हटा कर इसे बार-बार परमात्मा में ही विषय से निरुद्भ करे ।। २६ ।। The unsteady, wandering and constantly

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अध्याय ६ शलोक २५

अध्याय ६  शलोक २५ The Gita – Chapter 6 – Shloka 25 Shloka 25  कम-कम से अभ्यास करता हुआ उपरति को प्राप्त हो धैर्ययुक्त्त बुद्भि के द्वारा मन को परमात्मा में स्थित परमात्मा के सिवा और कुछ भी चिन्तन न करे ।। २५ ।। Once one has completely given up all desires created from his imagination

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अध्याय ६ शलोक २४

अध्याय ६  शलोक २४ The Gita – Chapter 6 – Shloka 24 Shloka 24  संकल्प से उत्पन्न होने वाली सम्पूर्ण कामनाओं को नि:शेष रूप से त्याग कर और मन के द्वारा इन्द्रियों के समुदाय को सभी ओर से भली भांति रोक कर —- ।। २४ ।। Once one has completely given up all desires created from

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अध्याय ६ शलोक २३

अध्याय ६  शलोक २३ The Gita – Chapter 6 – Shloka 23 Shloka 23  जो दुःख रूप संसार के संयोग से रहित है तथा जिसका नाम योग है, उसको जानना चाहिये । वह योग न उकताये हुए अर्थात् धैर्य और उत्साह युक्त्त चित्त से निश्चय पूर्वक करना कर्तव्य है ।। २३ ।। Yoga is the means

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अध्याय ६ शलोक २२

अध्याय ६  शलोक २२ The Gita – Chapter 6 – Shloka 22 Shloka 22  परमात्मा की प्राप्ति रूप जिस लाभ को प्राप्त होकर उससे अधिक दूसरा कुछ भी लाभ नहीं मानता और परमात्मप्राप्ति रूप जिस अवस्था में स्थित योगी बड़े भारी दुःख से भी चलायमान नहीं होता ।। २२ ।। Having achieved this divine state of

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अध्याय ६ शलोक २१

अध्याय ६  शलोक २१ The Gita – Chapter 6 – Shloka 21 Shloka 21  इन्द्रियों से अतीत, केवल शुद्भ हुई सूक्ष्म बुद्भि द्वारा ग्रहण करने योग्य जो अनन्त आनन्द है ; उसको जिस अवस्था में अनुभव करता है और जिस अवस्था में स्थित यह योगी परमात्मा के स्वरूप से विचलित होता ही नहीं ।। २१ ।।

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अध्याय ६ शलोक २०

अध्याय ६  शलोक २० The Gita – Chapter 6 – Shloka 20 Shloka 20  योग के अभ्यास से निरुद्भ चित्त जिस अवस्था में उपराम हो जाता है और जिस अवस्था में परमात्मा के ध्यान से शुद्भ हुई सूक्ष्म बुद्भि द्वारा परमात्मा को साक्षात् करता हुआ सच्चिदानन्दधन परमात्मा में ही संतुष्ट रहता है ।। २० ।। By

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अध्याय ६ शलोक १९

अध्याय ६  शलोक १९ The Gita – Chapter 6 – Shloka 19 Shloka 19  जिस प्रकार वायु रहित स्थान में स्थित दीपक चलायमान नहीं होता, वैसी ही उपमा परमात्मा के ध्यान में लगे हुए योगी के जीते हुए चित्त की कही गयी है  ।। १९ ।। The Almighty explained: Just as the flame of a lamp

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अध्याय ६ शलोक १८

अध्याय ६  शलोक १८ The Gita – Chapter 6 – Shloka 18 Shloka 18  अत्यन्त वश में किया हुआ चित्त जिस काल में परमात्मा में ही भली भांति स्थित हो जाता है, उस काल में सम्पूर्ण भोगों से स्पृह रहित पुरुष योग युक्त्त है, ऐसा कहा जाता है ।। १८ ।। When one has freed himself

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