अध्याय ६

अध्याय ६ शलोक ३७

अध्याय ६  शलोक ३७ The Gita – Chapter 6 – Shloka 37 Shloka 37  अर्जुन बोले — हे श्रीकृष्ण ! जो योग में श्रद्बा रखने वाला है ; किंतु संयमी नहीं है, इस कारण जिसका मन अन्तकाल  में योग से विचलित हो गया है, ऐसा साधक योग की सिद्भि को अर्थात् भगवत् साक्षात्कार को न प्राप्त […]

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अध्याय ६ शलोक ३६

अध्याय ६  शलोक ३६ The Gita – Chapter 6 – Shloka 36 Shloka 36  जिसका मन वश में किया हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग दुष्प्राप्य है और वश में किये हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा साधन से उसका प्राप्त होना सहज है —- यह मेरा मत है ।। ३६ ।। Lord Krishna continued:

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अध्याय ६ शलोक ३५

अध्याय ६  शलोक ३५ The Gita – Chapter 6 – Shloka 35 Shloka 35  श्रीभगवान् बोले —- हे महाबाहो ! नि:संदेह मन चञ्चल और कठिनता से वश में करने वाला है ; हे कुन्ती पुत्र अर्जुन ! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है ।। ३५ ।। Lord Krishna divinely replied: Dear Arjuna, undoubtedly,

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अध्याय ६ शलोक ३४

अध्याय ६  शलोक ३४ The Gita – Chapter 6 – Shloka 34 Shloka 34  क्योंकि हे श्रीकृष्ण ! यह मन बड़ा चञ्चल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान् है । इसलिये उसका वश में करना मैं वायु को रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ ।। ३४ ।। Dear Krishna, the mind is truly very unstable,

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अध्याय ६ शलोक ३३

अध्याय ६  शलोक ३३ The Gita – Chapter 6 – Shloka 33 Shloka 33  अर्जुन बोले ! हे मधुसूदन ! जो यह योग आपने सम भाव से कहा है, मन के चञ्चल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ  ।। ३३ ।। Arjuna asked Shri Krishna: Dear Lord, I simply cannot regard the

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अध्याय ६ शलोक ३२

अध्याय ६  शलोक ३२ The Gita – Chapter 6 – Shloka 32 Shloka 32  हे अर्जुन ! जो योगी अपनी भांति सम्पूर्ण भूतों में सम देखता है और सुख अथवा दुःख को भी सब में सम देखता है, वह योगी परम श्रेष्ठ माना गया है ।। ३२ ।। Dear Arjuna, the Yogi who looks upon all beings

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अध्याय ६ शलोक ३१

अध्याय ६  शलोक ३१ The Gita – Chapter 6 – Shloka 31 Shloka 31  जो पुरुष एकीभाव में स्थित होकर सम्पूर्ण भूतों में आत्म रूप से स्थित मुझ सच्चिदानन्दधन वासुदेव को भजता है, वह योगी सब प्रकार से बरतता हुआ भी मुझमें बरतता है ।। ३१ ।। The Lord proclaimed: O Arjuna, I am present in all

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अध्याय ६ शलोक ३०

अध्याय ६  शलोक ३० The Gita – Chapter 6 – Shloka 30 Shloka 30  जो पुरुष सम्पूर्ण भूतों में सबके आत्मरूप मुझ वासुदेव को ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतों को मुझ वासुदेव के अन्तर्गत* देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।। ३० ।। The Lord explained: O

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अध्याय ६ शलोक २९

अध्याय ६  शलोक २९ The Gita – Chapter 6 – Shloka 29 Shloka 29  सर्व व्यापी अनन्त चेतन में एकीभाव से स्थिति रुप योग से युक्त्त आत्मा वाला तथा सब में समभाव से देखने वाला योगी आत्मा को सम्पूर्ण भूतों में स्थित और सम्पूर्ण भूतों को आत्मा में कल्पित देखता है ।। २९  ।। The wiseman who

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अध्याय ६ शलोक २८

अध्याय ६  शलोक २८ The Gita – Chapter 6 – Shloka 28 Shloka 28  वह पापरहित योगी इस प्रकार निरन्तर आत्मा को परमात्मा में लगाता हुआ सुखपूर्वक परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति रूप अनन्त आनन्द का अनुभव करता है ।। २८ ।। The sinless Yogi is constantly engaged in Yoga, and experiences no difficulty in achieving the

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