अध्याय ६

अध्याय ६ शलोक ४७

अध्याय ६  शलोक ४७ The Gita – Chapter 6 – Shloka 47 Shloka 47  सम्पूर्ण योगियों में भी जो श्रद्बावान् योगी मुझ में लगे हुए अन्तरात्मा से मुझको निरन्तर भजता है, वह योगी मुझे परम श्रेष्ठ मान्य है ।। ४७ ।। Of all the Yogis, the one who has complete faith in Me, whose mind is […]

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अध्याय ६ शलोक ४६

अध्याय ६  शलोक ४६ The Gita – Chapter 6 – Shloka 46 Shloka 4  योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, शास्त्र ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और सकाम कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है ; इससे हे अर्जुन ! तू योगी हो ।। ४६ ।। Lord Krishna stated: O Arjuna, the Yogi is superior

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अध्याय ६ शलोक ४५

अध्याय ६  शलोक ४५ The Gita – Chapter 6 – Shloka 45 Shloka 45  परन्तु प्रयत्न पूर्वक अभ्यास करने वाला योगी तो पिछले अनेक जन्मों के संस्कार बल से इसी जन्म में संसिद्ब होकर सम्पूर्ण पापों से रहित हो, फिर तत्काल ही परम गति को प्राप्त हो जाता है ।। ४५ ।। After practicing Yoga during

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अध्याय ६ शलोक ४४

अध्याय ६  शलोक ४४ The Gita – Chapter 6 – Shloka 44 Shloka 4  वह श्रीमानों के घर में जन्म लेने वाला योग भ्रष्ट पराधीन हुआ भी उस पहले के अभ्यास से ही नि:संदेह भगवान् की ओर आकर्षित किया जाता है तथा समबुद्भि रूप योग का जिज्ञासु भी वेद में कहे हुए सकाम कर्मों के फल

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अध्याय ६ शलोक ४३

अध्याय ६  शलोक ४३ The Gita – Chapter 6 – Shloka 43 Shloka 43  वहाँ उस पहले शरीर में संग्रह किये हुए बुद्भि संयोग को अर्थात् सम बुद्भि रूप योग के संस्कारों को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे कुरुनन्दन ! उसके प्रभाव से वह फिर परमात्मा की प्राप्ति रूप सिद्भि के लिये पहले

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अध्याय ६ शलोक ४२

अध्याय ६  शलोक ४२ The Gita – Chapter 6 – Shloka 42 Shloka 42  अथवा वैराग्यवान् पुरुष उन लोकों में न जाकर ज्ञानवान् योगियों के कुल में जन्म लेता है । परन्तु इस प्रकार जो यह जन्म है, सो संसार में नि:संदेह अत्यन्त दुर्लभ है ।। ४२ ।। Dear Arjuna, if he does not take birth

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अध्याय ६ शलोक ४१

अध्याय ६  शलोक ४१ The Gita – Chapter 6 – Shloka 41 Shloka 41  योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यवानों के लोकों को अर्थात् स्वर्गादि उत्तम लोकों को प्राप्त होकर उनमें बहुत वर्षों तक निवास करके फिर शुद्भ आचरण वाले श्रीमान् पुरुषों के घर में जन्म लेता है ।। ४१ ।। The unsuccessful person in Yoga, Dear Arjuna, achieves

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अध्याय ६ शलोक ४०

अध्याय ६  शलोक ४० The Gita – Chapter 6 – Shloka 40 Shloka 40  श्रीभगवान् बोले —– हे पार्थ ! उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही ; क्योंकि हे प्यारे ! आत्मोद्वार के लिये अर्थात् भगवतप्राप्ति के लिये कर्म करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को

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अध्याय ६ शलोक ३९

अध्याय ६  शलोक ३९ The Gita – Chapter 6 – Shloka 39 Shloka 39  हे श्रीकृष्ण ! मेरे इस संशय को सम्पूर्ण रूप से छेदन करने के लिये आप ही योग्य हैं ; क्योंकि आपके सिवा दूसरा इस संशय का छेदन करने वाला मिलना सम्भव नहीं है ।। ३९ ।। Lord Krishna, this is one of

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अध्याय ६ शलोक ३८

अध्याय ६  शलोक ३८ The Gita – Chapter 6 – Shloka 38 Shloka 38  हे महाबाहो ! क्या वह भगवतप्राप्ति के मार्ग में मोहित और आश्रय रहित पुरुष छिन्न-भिन्न बादल की भाँति दोनों ओर से भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता ? ।। ३८ ।। Arjuna continued: What happens to a man who can no

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