अध्याय ५

अध्याय ५ शलोक ७

अध्याय ५  शलोक ७ The Gita – Chapter 5 – Shloka 7 Shloka 7  जिसका मन अपने वश में है, जो जितेन्द्रिय एवं विशुद्भ अन्त:करण वाला है और सम्पूर्ण प्राणियों का आत्मरूप परमात्मा ही जिसका आत्मा है, ऐसा कर्म योगी कर्म करता हुआ भी लिप्त नहीं होता ।। ७ ।। The Lord spoke onwards: The Karmyogi […]

अध्याय ५ शलोक ७ Read More »

अध्याय ५ शलोक ६

अध्याय ५  शलोक ६ The Gita – Chapter 5 – Shloka 6 Shloka 6  परन्तु हे अर्जुन ! कर्मयोग के बिना संन्यास अर्थात् मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाले सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन का त्याग प्राप्त होना कठिन है और भगवत्स्वरूप को मनन करने वाला कर्म योगी पर ब्रह्म परमात्मा को शीघ्र ही प्राप्त हो

अध्याय ५ शलोक ६ Read More »

अध्याय ५ शलोक ५

अध्याय ५  शलोक ५ The Gita – Chapter 5 – Shloka 5 Shloka 5  ज्ञान योगियों द्वारा जो परम धाम प्राप्त किया जाता है, कर्मयोगियों द्वारा भी वही प्राप्त किया जाता है । इसलिये जो पुरुष ज्ञान योग और कर्म योग को फलरूप में एक देखता है, वही यथार्थ देखता है ।। ५ ।। Yoga or

अध्याय ५ शलोक ५ Read More »

अध्याय ५ शलोक ४

अध्याय ५  शलोक ४ The Gita – Chapter 5 – Shloka 4 Shloka 4  उपर्युक्त्त संन्यास और कर्मयोग को मूर्ख लोग पृथक्-पृथक् फल देने वाले कहते हैं न कि पण्डितजन ; क्योंकि दोनों में से एक में भी सम्यक् प्रकार से स्थित पुरुष दोनों के फलरूप परमात्मा को प्राप्त होता है ।। ४ ।। Oh Arjuna,

अध्याय ५ शलोक ४ Read More »

अध्याय ५ शलोक ३

अध्याय ५  शलोक ३ The Gita – Chapter 5 – Shloka 3 Shloka 3  हे अर्जुन ! जो पुरुष न किसी से  द्बेष करता है और न किसी की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी सदा संन्यासी ही समझने योग्य है ; क्योंकि राग-द्बेषादि द्बन्द्बों से रहित पुरुष सुख पूर्वक संसार बन्धन से मुक्त्त हो जाता है

अध्याय ५ शलोक ३ Read More »

अध्याय ५ शलोक २

अध्याय ५  शलोक २ The Gita – Chapter 5 – Shloka 2 Shloka 2  श्रीभगवान्  बोले —- कर्म संन्यास और कर्म योग —- ये दोनों ही परम कल्याण के करने वाले हैं, परन्तु उन दोनों में भी संन्यास से कर्म योग साधन में सुगम होने से श्रेष्ठ है ।। २ ।। Oh Arjuna, both the paths

अध्याय ५ शलोक २ Read More »

अध्याय ५ शलोक १

अध्याय ५  शलोक १ The Gita – Chapter 5 – Shloka 1 Shloka 1  अर्जुन बोले —- कृष्ण ! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं । इसलिये इन दोनों में से जो एक मेरे लिये भली भाँति निश्चित कल्याण कारक साधन हो, उस को कहिये ।। १ ।। Arjuna asked

अध्याय ५ शलोक १ Read More »

Scroll to Top