अध्याय ५

अध्याय ५ शलोक १८

अध्याय ५  शलोक १८ The Gita – Chapter 5 – Shloka 18 Shloka 18  वे ज्ञानी जन विद्या और विनय युक्त्त ब्राह्मण में तथा गौ, हाथी, कुत्ते और चाण्डाल में भी समदर्शी ही होते हैं ।। १८ ।। The wise men treat everybody as equals O Arjuna, whether it be a learned and cultured Brahman, a […]

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अध्याय ५ शलोक १७

अध्याय ५  शलोक १७ The Gita – Chapter 5 – Shloka 17 Shloka 17  जिनका मन तद्रू प हो रहा है, जिनकी बुद्भि तद्रू प हो रही है और सच्चिदानन्दधन परमात्मा में ही जिनकी निरन्तर एकीभाव से स्थिति है, ऐसे तत्परायण पुरुष ज्ञान के द्वारा पाप रहित होकर अपुनरावृति को अर्थात् परम गति को प्राप्त होते

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अध्याय ५ शलोक १६

अध्याय ५  शलोक १६ The Gita – Chapter 5 – Shloka 16 Shloka 16  परन्तु जिनका वह अज्ञान परमात्मा के तत्त्व ज्ञान द्वारा नष्ट कर दिया गया है, उनका वह ज्ञान सूर्य के सदृश उस सच्चिदानन्दधन परमात्मा को प्रकाशित कर देता है ।। १६ ।। The Lord continued: People’s achievement of knowledge of their SELF has

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अध्याय ५ शलोक १५

अध्याय ५  शलोक १५ The Gita – Chapter 5 – Shloka 15 Shloka 15  सर्वव्यापी परमेश्वर भी न किसी के पाप कर्म को और न किसी के शुभ कर्म को ही ग्रहण करता है, किंतु अज्ञान के द्वारा ज्ञान ढका हुआ है, उसी से सब अज्ञानी मनुष्य मोहित हो रहे हैं ।। १५ ।। I, the all

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अध्याय ५ शलोक १४

अध्याय ५  शलोक १४ The Gita – Chapter 5 – Shloka 14 Shloka 14  परमेश्वर मनुष्यों के न तो कर्तापन की, न कर्मों की और न कर्म फल के संयोग की ही रचना करते हैं, किंतु स्वभाव ही बर्त रहा है ।। १४ ।। The Lord does not create the performance of actions (or Karma ),

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अध्याय ५ शलोक १३

अध्याय ५  शलोक १३ The Gita – Chapter 5 – Shloka 13 Shloka 13  अन्त:करण जिसके वश में है, ऐसा सांख्य योग का आचरण करने वाला पुरुष न करता हुआ और न करवाता हुआ ही नव द्वारों वाले शरीर रुप घर में सब कर्मों को मन से त्याग कर आनन्द पूर्वक सच्चिदानन्दधन परमात्मा के स्वरूप में

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अध्याय ५ शलोक १२

अध्याय ५  शलोक १२ The Gita – Chapter 5 – Shloka 12 Shloka 12  कर्म योगी कर्म के फल का त्याग करके भगवत्प्राप्ति रूप शान्ति को प्राप्त होता है और सकाम पुरुष कामना की प्रेरणा से फल में आसक्त्त होकर बँधता है ।। १२ ।। When a Yogi has reached a state of true self-realization by

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अध्याय ५ शलोक ११

अध्याय ५  शलोक ११ The Gita – Chapter 5 – Shloka 11 Shloka 11  कर्मयोगी ममत्व बुद्भि रहित केवल इन्द्रिय, मन, बुद्भि और शरीर द्वारा भी आसक्त्ति को त्याग कर अन्त:करण की शुद्भि के लिये कर्म करते हैं ।। ११ ।। O Arjuna, Yogis purify their souls by abolishing any feelings of attachment within themselves by

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अध्याय ५ शलोक १०

अध्याय ५  शलोक १० The Gita – Chapter 5 – Shloka 10 Shloka 10  जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके और आसक्त्ति को त्याग कर कर्म करता है, वह पुरुष जल से कमल पत्ते की भाँति पाप से लिप्त नहीं होता ।। १० ।। The Lord declared: One who leaves all the results

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अध्याय ५ शलोक ८,९

अध्याय ५  शलोक ८,९ The Gita – Chapter 5 – Shloka 8,9 Shloka 8,9  तत्त्व को जानने वाला सांख्य योगी तो देखता हुआ, सुनता हुआ, स्पर्श करता हुआ ; सूंघता हुआ, भोजन करता हुआ, गमन करता हुआ, सोता हुआ, श्वास लेता हुआ, बोलता हुआ, त्यागता हुआ, ग्रहण करता हुआ तथा आँखों को खोलता और मूंदता हुआ

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