अध्याय ५

अध्याय ५ शलोक २९

अध्याय ५  शलोक २९ The Gita – Chapter 5 – Shloka 29 Shloka 29  मेरा भक्त्त मुझको सब यज्ञ और तपों का भोगने वाला, सम्पूर्ण लोकों के ईश्वरों का भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण भूत प्राणियों का सुह्रद् अर्थात् स्वार्थ रहित दयालु और प्रेमी, ऐसा तत्त्व से जान कर शान्ति को प्राप्त होता है ।। २९ ।। […]

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अध्याय ५ शलोक २७,२८

अध्याय ५  शलोक २७,२८ The Gita – Chapter 5 – Shloka 27,28 Shloka 27,28  बाहर के विषय भोगों को न चिन्तन करता हुआ बाहर ही निकाल कर और नेत्रों की दृष्टि को भृकुटी के बीच में स्थित करके तथा नासिका में विचरने वाले प्राण और अपान वायु को सम करके जिसकी इन्द्रियाँ, मन और बुद्भि जीती

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अध्याय ५ शलोक २६

अध्याय ५  शलोक २६ The Gita – Chapter 5 – Shloka 26 Shloka 26  काम क्रोध से रहित, जीते हुए चित्त वाले परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किये हुए ज्ञानी पुरुषों के लिये सब ओर से शान्त परब्रह्म परमात्मा ही परिपूर्ण हैं ।। २६ ।। O Arjuna, all of those wise men (Yogis) who have learned to

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अध्याय ५ शलोक २५

अध्याय ५  शलोक २५ The Gita – Chapter 5 – Shloka 25 Shloka 25  जिनके सब पाप नष्ट हो गये हैं, जिनके सब संशय ज्ञान के द्वारा निवृत हो गये हैं, जो सम्पूर्ण प्राणियों के हित में रत हैं और जिनका जीता हुआ मन निश्चल भाव से परमात्मा में स्थित है, वे ब्रह्मवेत्ता पुरुष शान्त ब्रह्म

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अध्याय ५ शलोक २४

अध्याय ५  शलोक २४ The Gita – Chapter 5 – Shloka 24 Shloka 24  जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुख वाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में हीं ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दधन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्य योगी शान्त ब्रह्म को प्राप्त होता है  ।। २४

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अध्याय ५ शलोक २३

अध्याय ५  शलोक २३ The Gita – Chapter 5 – Shloka 23 Shloka 23  जो साधक इस मनुष्य शरीर से, शरीर का नाश होने से पहले-पहले ही काम क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष योगी है और वही सुखी है ।। २३ ।। A person who

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अध्याय ५ शलोक २२

अध्याय ५  शलोक २२ The Gita – Chapter 5 – Shloka 22 Shloka 22  जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तो भी दुःख के ही हेतु हैं और आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं । इसलिये हे अर्जुन ! बुद्भिमान

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अध्याय ५ शलोक २१

अध्याय ५  शलोक २१ The Gita – Chapter 5 – Shloka 21 Shloka 21  बाहर के विषयों में आसक्त्ति रहित अन्त:करण वाला साधक आत्मा में स्थित जो ध्यान जनित सात्त्विक आनन्द है, उसको प्राप्त होता है ; तदनन्तर वह सच्चिदानन्दधन परब्रह्म परमात्मा  के ध्यान रूप योग में अभिन्न भाव से स्थित पुरुष अक्षय आनन्द का अनुभव

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अध्याय ५ शलोक २०

अध्याय ५  शलोक २० The Gita – Chapter 5 – Shloka 20 Shloka 20  जो पुरुष प्रिय को प्राप्त होकर हर्षित नहीं हो और अप्रिय को प्राप्त होकर उद्भिग्न न हो, वह स्थिर बुद्भि संशय रहित ब्रह्म वेत्ता पुरुष सच्चिदानन्दधन परब्रह्म परमात्मा में एकीभाव से नित्य स्थिति है ।। २० ।। One truly becomes established in

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अध्याय ५ शलोक १९

अध्याय ५  शलोक १९ The Gita – Chapter 5 – Shloka 19 Shloka 19  जिनका मन सम भाव में स्थित है, उनके द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया है ; क्योंकि सच्चिदानन्दधन परमात्मा निर्दोष और सम है, इससे सच्चिदानन्दधन परमात्मा में ही स्थित हैं ।। १९ ।। O Arjuna, those who

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