अध्याय ४

अध्याय ४ शलोक ३२

अध्याय ४  शलोक ३२ The Gita – Chapter 4 – Shloka 32 Shloka 32  इसी प्रकार और भी बहुत तरह के यज्ञ वेद की वाणी में विस्तार से कहे गये हैं । उन सब को तू मन, इन्द्रिय और शरीर की क्रिया द्वारा सम्पन्न होने वाले जान, इस प्रकार तत्त्व से जान कर उनके अनुष्ठान […]

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अध्याय ४ शलोक ३१

अध्याय ४  शलोक ३१ The Gita – Chapter 4 – Shloka 31 Shloka 31  हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन ! यज्ञ से बचे हुए अमृत का अनुभव करने वाले योगी जन सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं और यज्ञ न करने वाले पुरुष के लिये तो यह मनुष्य लोक भी सुखदायक नहीं है, फिर परलोक कैसे

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अध्याय ४ शलोक २९,३०

अध्याय ४  शलोक २९,३० The Gita – Chapter 4 – Shloka 29,30 Shloka 29,30  दूसरे कितने ही योगी जन अपान वायु में प्राणवायु को हवन करते हैं । वैसे ही अन्य योगी जन प्राणवायु में अपान वायु को हवन करते हैं तथा अन्य कितने ही नियमित आहार करने वाले प्राणायाम परायण पुरुष प्राण और अपान की

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अध्याय ४ शलोक २८

अध्याय ४  शलोक २८ The Gita – Chapter 4 – Shloka 28 Shloka 28  कई पुरुष द्रव्य सम्बन्धी यज्ञ करने वाले हैं, कितने ही तपस्या रूप यज्ञ करने वाले हैं, तथा दूसरे कितने ही योगरूप यज्ञ करने वाले हैं, कितने ही अहिंसादि तीक्ष्ण व्रतों से युक्त्त यत्नशील पुरुष स्वाध्याय रूप ज्ञान यज्ञ करने वाले हैं ।।

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अध्याय ४ शलोक २७

अध्याय ४  शलोक २७ The Gita – Chapter 4 – Shloka 27 Shloka 27  दूसरे योगी जन इन्द्रियों की सम्पूर्ण क्रियाओं को और प्राणों की समस्त क्रियाओं को ज्ञान से प्रकाशित आत्म संयम योग रूप अग्नि में हवन किया करते हैं ।। २७ ।। Some Yogis sacrifice all the functions of their senses ans all their

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अध्याय ४ शलोक २६

अध्याय ४  शलोक २६ The Gita – Chapter 4 – Shloka 26 Shloka 26  अन्य योगी जन श्रोत्र आदि समस्त इन्द्रियों को संयम रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं और दूसरे योगी लोग शब्दादि समस्त विषयों का इन्द्रिय रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं ।। २६ ।। Some offer, in the fire of self-control,

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अध्याय ४ शलोक २५

अध्याय ४  शलोक २५ The Gita – Chapter 4 – Shloka 25 Shloka 25  दूसरे योगी जन देवताओं के पूजन रूप यज्ञ का ही भली भांति अनुष्ठान किया करते हैं और अन्य योगी जन पर ब्रह्म परमात्मा रूप अग्नि में अभेद दर्शन रूप यज्ञ के द्वारा ही आत्म-रूप यज्ञ का हवन किया करते हैं* ।। २५

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अध्याय ४ शलोक २४

अध्याय ४  शलोक २४ The Gita – Chapter 4 – Shloka 24 Shloka 24  जिस यज्ञ में अर्पण अर्थात् स्त्रुवा आदि भी ब्रह्म है और हवन किये जाने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है तथा ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा ब्रह्मरूप अग्नि में आहुति देना रूप क्रिया भी ब्रह्म है —- उस ब्रह्म कर्म में स्थित रहने वाले

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अध्याय ४ शलोक २३

अध्याय ४  शलोक २३ The Gita – Chapter 4 – Shloka 23 Shloka 23  जिसकी आसक्त्ति सर्वथा नष्ट हो गयी है, जो देहाभिमान और ममता से रहित हो गया है, जिसका चित्त निरन्तर परमात्मा के ज्ञान में स्थित रहता है — ऐसा केवल यज्ञ सम्पादन के लिये कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म भली भाँति

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अध्याय ४ शलोक २२

अध्याय ४  शलोक २२ The Gita – Chapter 4 – Shloka 22 Shloka 22  जो बिना इच्छा के अपने आप प्राप्त हुए पदार्थ में सदा संतुष्ट रहता है, जिसमें ईष्र्या का सर्वथा अभाव हो गया है जो हर्ष-शोक आदि द्बन्द्बों से सर्वथा अतीत हो गया है —- ऐसा सिद्भि और असिद्भि में सम रहने वाला कर्मयोगी

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