अध्याय ४

अध्याय ४ शलोक ४२

अध्याय ४  शलोक ४२ The Gita – Chapter 4 – Shloka 42 Shloka 42  इसलिये हे भरतवंशी अर्जुन ! तू ह्रदय में स्थित इस अज्ञान जनित अपने संशय का विवेक ज्ञान रूप तलवार द्वारा छेदन करके समत्व रूप कर्मयोग में स्थित हो जा ।। ४२ ।। Hence, be established in yoga by cutting the ignorance born […]

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अध्याय ४ शलोक ४१

अध्याय ४  शलोक ४१ The Gita – Chapter 4 – Shloka 41 Shloka 41  हे धनञ्जय ! जिसने कर्मयोगी की विधि से समस्त कर्मों को परमात्मा में अर्पण कर दिया है और जिसने विवेक द्वारा समस्त संशयों का नाश कर दिया है, ऐसे वश में किये हुए अन्त:करण वाले पुरुष को कर्म नहीं बाँधते ।। ४१

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अध्याय ४ शलोक ४०

अध्याय ४  शलोक ४० The Gita – Chapter 4 – Shloka 40 Shloka 40  विवेकहीन और श्रद्बारहित संशययुक्त्त मनुष्य परमार्थ से अवश्य भ्रष्ट हो जाता है । ऐसे संशययुक्त्त मनुष्य के लिये न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है ।। ४० ।। If a person is ignorant of the Knowledge of

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अध्याय ४ शलोक ३९

अध्याय ४  शलोक ३९ The Gita – Chapter 4 – Shloka 39 Shloka 39  जितेन्द्रिय साधन परायण और श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है तथा ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलम्ब के — तत्काल ही भगवत्प्राप्ति रूप परम शान्ति को प्राप्त हो जाता है ।। ३९ ।। To abtain Gyan, one must conquer

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अध्याय ४ शलोक ३८

अध्याय ४  शलोक ३८ The Gita – Chapter 4 – Shloka 38 Shloka 38  इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला नि:संदेह कुछ भी नहीं है । उस ज्ञान को कितने ही काल से कर्मयोग के द्वारा शुद्बान्त:करण हुआ मनुष्य अपने आप ही आत्मा में पा लेता है ।। ३८ ।। In this

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अध्याय ४ शलोक ३७

अध्याय ४  शलोक ३७ The Gita – Chapter 4 – Shloka 37 Shloka 37  क्योंकि हे अर्जुन ! जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधनों को भस्ममय कर देता है, वैसे ही ज्ञान रूप अग्नि सम्पूर्ण कर्मों को भस्ममय कर देता है ।। ३७ ।। O Arjuna, as the burnig fire reduces fuel to ashes, in this same

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अध्याय ४ शलोक ३६

अध्याय ४  शलोक ३६ The Gita – Chapter 4 – Shloka 36 Shloka 36  यदि तू अन्य सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, तो भी तू ज्ञान रूप नौका द्वारा नि:संदेह सम्पूर्ण पाप समुद्र से भली भाँति तर जायगा ।। ३६ ।। O Arjuna, even if you are the greatest sinner in

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अध्याय ४ शलोक ३५

अध्याय ४  शलोक ३५ The Gita – Chapter 4 – Shloka 35 Shloka 35  जिसको जान कर फिर तू इस प्रकार मोह को नहीं प्राप्त होगा तथा हे अर्जुन ! जिस ज्ञान के द्वारा तू सम्पूर्ण भूतों को नि:शेष भाव से पहले अपने में और पीछे मुझ सच्चिदानन्दधन परमात्मा में देखेगा ।। ३५ ।। The

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अध्याय ४ शलोक ३४

अध्याय ४  शलोक ३४ The Gita – Chapter 4 – Shloka 34 Shloka 34  उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भली भाँति दण्डवत्-प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलता पूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्मा तत्त्व को भली भाँति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्व

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अध्याय ४ शलोक ३३

अध्याय ४  शलोक ३३ The Gita – Chapter 4 – Shloka 33 Shloka 33  हे परंतप अर्जुन ! द्रव्य मय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञान यज्ञ अत्यन्त श्रेष्ठ है तथा यावन्मात्र सम्पूर्ण कर्म ज्ञान में समाप्त हो जाते हैं ।। ३३ ।। O Arjuna, sacrifice of wisdom (Gyan) is always better than sacrifice of material objects

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