अध्याय ३

अध्याय ३ शलोक १२

अध्याय ३ शलोक १२ The Gita – Chapter 3 – Shloka 12 Shloka 12  यज्ञ के द्वारा बढाये हुए देवता तुम लोगों को बिना मांगे ही इच्छित भोग निश्चय ही देते रहेंगे । इस प्रकार उन देवताओं के द्वारा दिये हुए भोगों को जो पुरुष उनको बिना दिये स्वयं भोगता है, वह चोर ही है […]

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अध्याय ३ शलोक ११

अध्याय ३ शलोक ११ The Gita – Chapter 3 – Shloka 11 Shloka 11  तुम लोग इस यज्ञ के द्वारा देवताओं को उन्नत करो और वे देवता तुम लोगों को उन्नत करें । इस प्रकार नि:स्वार्थ भाव से एक-दूसरे को उन्नत करते हुए तुम लोग परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे ।। ११ ।। The

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अध्याय ३ शलोक १०

अध्याय ३ शलोक १० The Gita – Chapter 3 – Shloka 10 Shloka 10  प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को रच कर उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ के द्वारा वृदी  को प्राप्त होओ और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोग प्रदान करने वाला हो ।। १० ।। Brahma

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अध्याय ३ शलोक ९

अध्याय ३ शलोक ९ The Gita – Chapter 3 – Shloka 9 Shloka 9  यज्ञ के निमित्त किये जाने वाले कर्मों से अतिरिक्त्त दूसरे कर्मों में लगा हुआ ही यह मनुष्य समुदाय कर्मों से बंधता है । इसलिये हे अर्जुन ! तू आसक्त्ति से रहित होकर उस यज्ञ के निमित्त ही भली भांति कर्तव्य कर्म

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अध्याय ३ शलोक ८

अध्याय ३ शलोक ८ The Gita – Chapter 3 – Shloka 8 Shloka 8  तू शास्त्र विहित कर्तव्य कर्म कर ; क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्भ होगा ।। ८ ।। Perform the actions that you have been obliged to

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अध्याय ३ शलोक ७

अध्याय ३ शलोक ७ The Gita – Chapter 3 – Shloka 7 Shloka 7  किंतु हे अर्जुन ! जो पुरुष मन से इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त्त हुआ समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है ।। ७ ।। The Blessed Lord spoke: O Arjuna, one who has fully learned to

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अध्याय ३ शलोक ६

अध्याय ३ शलोक ६ The Gita – Chapter 3 – Shloka 6 Shloka 6  जो मूढ़बुद्भि मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठ पूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी कहा जाता है ।। ६ ।। O Arjuna, those who have learned to control the

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अध्याय ३ शलोक ५

अध्याय ३ शलोक ५ The Gita – Chapter 3 – Shloka 5 Shloka 5  नि:संदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षण मात्र भी बिना कर्म किये नहीं रहता, क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिये बाध्य किया जाता है ।। ५ ।। Lord Krishna continued: There

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अध्याय ३ शलोक ४

अध्याय ३ शलोक ४ The Gita – Chapter 3 – Shloka 4 Shloka 4  मनुष्य न तो कर्मों का आरम्भ किये बिना निष्कर्मता को यानी योगनिष्ठा को प्राप्त होता है और न कर्मों के केवल त्याग मात्र से सिद्भि यानी सांख्य निष्ठा को ही प्राप्त होता है ।। ४ ।। O Arjuna, it is not

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अध्याय ३ शलोक ३

अध्याय ३ शलोक ३ The Gita – Chapter 3 – Shloka 3 Shloka 3  श्रीभगवान् बोले — हे निष्पाप ! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले की गयी है । उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान से और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से होती है ।। ३ ।। The

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