अध्याय ३

अध्याय ३ शलोक ३३

अध्याय ३ शलोक ३३ The Gita – Chapter 3 – Shloka 33 Shloka 33  सब प्राणी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात् अपने स्वभाव के परवश हुए कर्म करते हैं । ज्ञानवान् भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है । फिर इसमें किसी का हठ क्या करेगा ।। ३३ ।। All beings, wise or […]

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अध्याय ३ शलोक ३२

अध्याय ३ शलोक ३२ The Gita – Chapter 3 – Shloka 32 Shloka 32  परन्तु जो मनुष्य मुझ में दोषारोपण करते हुए मेरे इस मत के अनुसार नहीं चलते हैं, उन मूर्खों को तू सम्पूर्ण ज्ञानों में मोहित और नष्ट हुए ही समझ ।। ३२ ।। On the other hand, O Arjuna, those of poor

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अध्याय ३ शलोक ३१

अध्याय ३ शलोक ३१ The Gita – Chapter 3 – Shloka 31 Shloka 31  जो कोई मनुष्य दोष दृष्टि से रहित और श्रद्बा युक्त्त होकर मेरे इस मत का सदा अनुसरण करते हैं, वे भी सम्पूर्ण कर्मों से छुट जाते हैं ।। ३१ ।। Those wise people, with faith in Me, and those who follow

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अध्याय ३ शलोक ३०

अध्याय ३ शलोक ३० The Gita – Chapter 3 – Shloka 30 Shloka 30  मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझ में अर्पण करके आशा रहित ममता रहित और संताप रहित होकर युद्ध कर ।। ३० ।। Dedicate and surrender all your actions unto me Oh Arjuna. Fix your mind

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अध्याय ३ शलोक २९

अध्याय ३ शलोक २९ The Gita – Chapter 3 – Shloka 29 Shloka 29  प्रकृति के गुणों से अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मों में आसक्त्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्द बुद्भि अज्ञानियों को पूर्णतया जानने वाला ज्ञानी विचलित न करे ।। २९ ।। The Lord spoke: Those who are

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अध्याय ३ शलोक २८

अध्याय ३ शलोक २८ The Gita – Chapter 3 – Shloka 28 Shloka 28  परन्तु हे महाबाहो ! गुण विभाग और कर्म विभाग के तत्व को जानने वाला ज्ञानयोगी सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे हैं, ऐसा समझकर उनमें आसक्त्त नहीं होता ।। २८ ।। He who understands fully, O Arjuna, the objects of

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अध्याय ३ शलोक २७

अध्याय ३ शलोक २७ The Gita – Chapter 3 – Shloka 27 Shloka 27  वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं तो भी जिसका अन्त:करण अहंकार से मोहित हो रहा है, ऐसा अज्ञानी ‘मैं कर्ता हूँ’ ऐसा मानता है ।। २७ ।। The Blessed Lord Krishna spoke: O

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अध्याय ३ शलोक २६

अध्याय ३ शलोक २६ The Gita – Chapter 3 – Shloka 26 Shloka 26  परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिये कि वह शास्त्र विहित कर्मों में आसक्त्ति वाले अज्ञानियों की बुद्भि में भ्रम अर्थात् कर्मों में अश्रद्बा उत्पन्न न करे । किन्तु स्वयं शास्त्र विहित समस्त कर्म भली-भाँति करता हुआ

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अध्याय ३ शलोक २५

अध्याय ३ शलोक २५ The Gita – Chapter 3 – Shloka 25 Shloka 25  हे भारत ! कर्म में आसक्त्त हुए अज्ञानी जन जिस प्रकार कर्म करते हैं, आसक्त्ति रहित विद्बान् भी लोक संग्रह करना चाहता हुआ उसी प्रकार कर्म करे ।। २५ ।। The Blessed Lord said: Just as the ignorant perform actions with

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अध्याय ३ शलोक २४

अध्याय ३ शलोक २४ The Gita – Chapter 3 – Shloka 24 Shloka 24  इसलिये यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जायँ और मैं संकरता का करने वाला होऊँ तथा इस समस्त प्रजा को नष्ट करने वाला बनूं  ।। २४ ।। These worlds would if I did no do action, I

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