अध्याय २

अध्याय २ शलोक १०

अध्याय २ शलोक १० The Gita – Chapter 2 – Shloka 10 Shloka 10  हे भरतवंशी धृतराष्ट्र ! अन्तर्यामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए से यह वचन बोले ।। १० ।। “O ARJUNA,” HRISHIKESA spoke smilingly, as ARJUNA stood between the two armies: The Gita […]

अध्याय २ शलोक १० Read More »

अध्याय २ शलोक ९

अध्याय २ शलोक ९ The Gita – Chapter 2 – Shloka 9 Shloka 9  संजय बोले —– हे राजन् ! निद्रा को जीतने वाले अर्जुन अन्तर्यामी श्रीकृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर फिर श्री गोविन्द भगवान् से ‘युद्ध नहीं करूँगा’ यह स्पष्ट कहकर चुप हो गये ।। ९ ।। Sanjaya said: Dear Dhrtarashtra, my

अध्याय २ शलोक ९ Read More »

अध्याय २ शलोक ८

अध्याय २ शलोक ८ The Gita – Chapter 2 – Shloka 8 Shloka 8  क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके ।। ८ ।। I cannot find any

अध्याय २ शलोक ८ Read More »

अध्याय २ शलोक ७

अध्याय २ शलोक ७ The Gita – Chapter 2 – Shloka 7 Shloka 7  इसलिये कायरतारूप दोष से उपहत हुए स्वभाववाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये ; क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिये आपके शरण हुए मुझको शिक्षा

अध्याय २ शलोक ७ Read More »

अध्याय २ शलोक ६

अध्याय २ शलोक ६ The Gita – Chapter 2 – Shloka 6 Shloka 6  हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिये युद्ध करना और न करना इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है अथवा यह भी नहीं जानते की उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे । और जिनको मारकर हम जीना भी नहीं

अध्याय २ शलोक ६ Read More »

अध्याय २ शलोक ५

अध्याय २ शलोक ५ The Gita – Chapter 2 – Shloka 5 Shloka 5  इसलिये इन महानुभाव गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ ; क्योंकि गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ और कामरूप भोगों को ही तो भोगूंगा ।। ५

अध्याय २ शलोक ५ Read More »

अध्याय २ शलोक ४

अध्याय २ शलोक ४ The Gita – Chapter 2 – Shloka 4 Shloka 4  अर्जुन बोले — हे मधुसूदन ! मैं रणभूमि में किस प्रकार बाणों से भीष्मपितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्भ लडूंगा ! क्योंकि हे अरिसूदन ! वे दोनों ही पूजनीय हैं ।। ४ ।। Arjuna asked the Lord: O Madhusudana (Lord Krishna), the

अध्याय २ शलोक ४ Read More »

अध्याय २ शलोक ३

अध्याय २ शलोक ३ The Gita – Chapter 2 – Shloka 3 Shloka 3  इसलिये हे अर्जुन ! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती । हे परंतप ! ह्रदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिये खड़ा हो जा ।।३ ।। The great Lord Krishna continued: O Arjuna, be

अध्याय २ शलोक ३ Read More »

अध्याय २ शलोक २

अध्याय २ शलोक २ The Gita – Chapter 2 – Shloka 2 Shloka 2  श्रीभगवान् बोले —- हे अर्जुन ! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ ! क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है

अध्याय २ शलोक २ Read More »

अध्याय २ शलोक १

अध्याय २ शलोक १ The Gita – Chapter 2 – Shloka 1 Shloka 1 संजय बोले —- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रोंवाले शोकयुक्त्त उस अर्जुन के प्रति भगवान् मधुसूधन ने यह वचन कहा ।। १ ।। Sanjay recounted: MADHUSUDANA (Lord Krishna) then spoke in his divine voice unto

अध्याय २ शलोक १ Read More »

Scroll to Top