अध्याय २

अध्याय २ शलोक २०

अध्याय २ शलोक २० The Gita – Chapter 2 – Shloka 20 Shloka 20  यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है । क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है ; शरीर के मारे जाने पर भी […]

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अध्याय २ शलोक १९

अध्याय २ शलोक १९ The Gita – Chapter 2 – Shloka 19 Shloka 19  जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते ; क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है ।। १९

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अध्याय २ शलोक १८

अध्याय २ शलोक १८ The Gita – Chapter 2 – Shloka 18 Shloka 18  उस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये सब शरीर नाशवान् कहे गये हैं । इसलिये हे भरतवंशी अर्जुन ! तू युद्ध कर ।। १८ ।। The Blessed Lord explained: O ARJUNA, only the body can be destroyed; but the soul is

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अध्याय २ शलोक १७

अध्याय २ शलोक १७ The Gita – Chapter 2 – Shloka 17 Shloka 17  नाशरहित तो तू उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत् दृश्यवर्ग व्याप्त है । इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है ।। १७ ।। He who is completely indestructible, present everywhere in the universe, and is imperishable, regard

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अध्याय २ शलोक १६

अध्याय २ शलोक १६ The Gita – Chapter 2 – Shloka 16 Shloka 16  असत् वस्तु की सत्ता नहीं है और सत् का अभाव नहीं है । इस प्रकार इन दोनों का ही तत्त्व तत्त्वज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है ।। १६ ।। The Blessed Lord stated: The unreal does not exist and the real

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अध्याय २ शलोक १५

अध्याय २ शलोक १५ The Gita – Chapter 2 – Shloka 15 Shloka 15  क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ठ ! दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है ।। १५ ।। Only he who is not affected by these senses and

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अध्याय २ शलोक १४

अध्याय २ शलोक १४ The Gita – Chapter 2 – Shloka 14 Shloka 14  हे कुन्तीपुत्र ! सर्दी, गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिये हे भारत तू उनको सहन कर ।। १४ ।। The Blessed Lord continued: O son of KUNTI (Arjuna), when the

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अध्याय २ शलोक १३

अध्याय २ शलोक १३ The Gita – Chapter 2 – Shloka 13 Shloka 13  जैसे जीवात्मा इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्बावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है ; उस विषय में धीर पुरुष मोहित नही होता ।। १३ ।। Lord Krishna continued: Dear ARJUNA, the wise never get confused

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अध्याय २ शलोक १२

अध्याय २ शलोक १२ The Gita – Chapter 2 – Shloka 12 Shloka 12  न तो ऐसा ही है की मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजालोग नहीं थे और न ऐसा ही है की इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे ।। १२ ।। “ARJUNA”, always remember, there has never

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अध्याय २ शलोक ११

अध्याय २ शलोक ११ The Gita – Chapter 2 – Shloka 11 Shloka 11  श्रीभगवान् बोले — हे अर्जुन ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिये शोक करता है और पण्डितो के से वचनों को कहता है ; परंतु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिए और जिनके प्राण नहीं चले गये हैं, उनके

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