अध्याय २

अध्याय २ शलोक ४०

अध्याय २ शलोक ४० The Gita – Chapter 2 – Shloka 40 Shloka 40  इस कर्मयोग में आरम्भ का अर्थात् बीज का नाश नहीं है और उल्टा फलरूप दोष भी नहीं है, बल्कि इस कर्मयोग रूप धर्म का थोड़ा-सा भी साधन जन्म मृत्युरूप, महान् भय से रक्षा कर लेता है ।। ४० ।। When one […]

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अध्याय २ शलोक ३९

अध्याय २ शलोक ३९ The Gita – Chapter 2 – Shloka 39 Shloka 39  हे पार्थ ! यह बुद्भि तेरे लिये ज्ञानयोग के विषय में कही गयी और अब तू इसको कर्मयोग के विषय में सुन —– जिस बुद्बि से युक्त्त हुआ तू कर्मों के बन्धन को भलीभाँति त्याग देगा अर्थात् सर्वथा नष्ट कर डालेगा

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अध्याय २ शलोक ३८

अध्याय २ शलोक ३८ The Gita – Chapter 2 – Shloka 38 Shloka 38  जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःखों को समान समझकर उसके वाद युद्ध के लिये तैयार हो जा : इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा ।। ३८ ।। The Blessed Lord spoke unto Arjuna: O ARJUNA, by considering victory

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अध्याय २ शलोक ३७

अध्याय २ शलोक ३७ The Gita – Chapter 2 – Shloka 37 Shloka 37  या तो तू युद्ध में मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा संग्राम में जीतकर पृथ्वी का राज्य भोगेगा । इस कारण हे अर्जुन ! तू युद्ध के लिए निश्चित करके खड़ा हो जा ।। ३७ ।। O ARJUNA, if you

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अध्याय २ शलोक ३६

अध्याय २ शलोक ३६ The Gita – Chapter 2 – Shloka 36 Shloka 36  तेरे वैरी लोग तेरे सामर्थ्य की निन्दा करते हुए तुझे बहुत से न कहने योग्य वचन भी कहेंगे ; उससे अधिक दुःख और क्या होगा ।। ३६ ।। You will experience tremendous pain when your enemies laugh at your lack of

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अध्याय २ शलोक ३५

अध्याय २ शलोक ३५ The Gita – Chapter 2 – Shloka 35 Shloka 35  और जिनकी दृष्टि में तू पहले बहुत सम्मानित होकर अब लघुता को प्राप्त होगा, वे महारथी लोग तुझे भय के कारण युद्ध से हटा हुआ मानेंगे ।। ३५ ।। O ARJUNA, your high esteem and reputation will become ruined if you do

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अध्याय २ शलोक ३४

अध्याय २ शलोक ३४ The Gita – Chapter 2 – Shloka 34 Shloka 34  तथा सब लोग तेरी बहुत कालतक रहने वाली अपकीर्ति का भी कथन करेंगे और मानवीय पुरुष के लिये अपकीर्ति मरण से भी बढ़कर है ।। ३४ ।। People will talk and look upon you, O ARJUNA, with disrespect. There is only

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अध्याय २ शलोक ३३

अध्याय २ शलोक ३३ The Gita – Chapter 2 – Shloka 33 Shloka 33  किंतु यदि तू इस धर्मयुक्त्त युद्ध को नहीं करेगा तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा ।। ३३ ।। By not fighting this war, O ARJUNA, you are committing a sin because you fail to perform your duty

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अध्याय २ शलोक ३२

अध्याय २ शलोक ३२ The Gita – Chapter 2 – Shloka 32 Shloka 32  हे पार्थ ! अपने-आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वार रूप इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान् क्षत्रिय लोग ही पाते है ।। ३२ ।। Dear ARJUNA, you should consider yourself a very lucky warrior to fight in a

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अध्याय २ शलोक ३१

अध्याय २ शलोक ३१ The Gita – Chapter 2 – Shloka 31 Shloka 31  तथा अपने धर्म को देखकर भी तू शोक करने के योग्य नहीं है अर्थात् तुझे भय नहीं करना चाहिये ; क्योंकि क्षत्रिय के लिये धर्मयुक्त्त युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है ।। ३१ ।। Looking upon your duty,

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